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कथा बाबरी के विध्वंस की – कैसे श्रीराम जन्मभूमि परिसर को मुक्ति मिली

यह कथा सुनानी महत्वपूर्ण है!

Aniket Raj द्वारा Aniket Raj
5 December 2021
in समीक्षा
Babri Masjid

Source- Google

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मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम भारतीयों के व्यक्तित्व के संविधान हैं। उनका “राम राज्य” एक शासक के लिए सर्वोत्तम आदर्श है। परन्तु, मानवता के लिए 14 वर्ष का वनवास भोगने वाले प्रभु राम को हम लोगो ने 450 वर्षों का वनवास दिया। अंततः “होईहि सोई जो राम रची राखा” की कहावत चरितार्थ हुई और लोगों ने 6 दिसम्बर 1992 को रामजन्म भूमि को उनके आशीर्वाद से मुक्त करा लिया। यह दिवस भारतवर्ष  के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आरंभ था। 6 दिसंबर आ रहा है, मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। परन्तु, इस शौर्य दिवस को हमें अपने स्मृतियों में समेटने की आवश्यकता है, क्योंकि कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है। तो आइए हम आपको इस विजय गाथा की एक झांकी दिखाते हैं। 

1528 : बाबरी मस्जिद का निर्माण

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। इस मस्जिद का निर्माण भगवान राम के जन्मस्थान की याद में बनाए गए मंदिर की नींव पर किया गया था।

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1949: बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां स्थापित की गई

दिसंबर 1949 में, बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां ‘प्रकट’ हुई। इसके कारण व्यापक विरोध हुआ। दोनों पक्षों द्वारा मामले दर्ज कराए गए। बाद के वर्षों में हाशिम अंसारी ने मुसलमानों के लिए और निर्मोही अखाड़े ने हिंदुओं के लिए एक मुकदमा दायर किया। सरकार ने स्थल को विवादित घोषित कर ताला लगा दिया।

1984: एक्शन में विश्व हिंदू परिषद

साल 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि आंदोलन को जारी रखने का प्रण किया। तब भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को स्थल पर एक भव्य ‘राम मंदिर’ के निर्माण के अभियान का नेता और चेहरा बनाया गया और विश्व हिन्दू परिषद की कमान अशोक सिंघल ने संभाला।

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1986: हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति

फैजाबाद में जिला जज ने विवादित ढांचे के दरवाजे खोलने के आदेश दिए, ताकि हिंदू प्रवेश कर प्रार्थना कर सकें।

1989: राजीव गांधी और शिलान्यास 1.0

साल 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को एक समारोह आयोजित करने की अनुमति दी, जिसे शिलान्यास (प्रतिष्ठापन) कहा जाता है। यह नवंबर 1989 में हुआ था, जब हिंदुत्व आंदोलन अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा था और देश में संसदीय चुनाव शुरू होने वाले थे। इसके साथ-साथ मुसलमानों को खुश करने के लिए शाहबानो का मामला पलटने के कारण राजीव सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप भी लग रहे थे।

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1990: बाबरी मस्जिद विध्वंस का पहला प्रयास विफल

विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के लिए लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देश भर में रथयात्रा निकाली। यह वह वर्ष भी था, जब विहिप के स्वयंसेवकों ने बाबरी मस्जिद को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया था। तब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे और केंद्र में जनता दल की सरकार थी।

30 अक्टूबर 1990 को मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को बाबरी मस्जिद की ओर मार्च कर रहे हिंदुत्ववादी भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, जिसमें सरकार के अनुसार 16 कारसेवक मारे गए थे।

6 दिसंबर : शौर्य दिवस

फिलहाल 6 दिसंबर पर आते हैं, इस दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे। जिसके बाद वो विवादित स्थल की ओर रवाना हुए। मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ आडवाणी उस जगह पर पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी। वहां, उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया। इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए, जो उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था। वहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था, यह स्थल विवादित ढांचे के ठीक सामने था। उल्लेखनीय बात है कि उस समय तेजी से उभरती भाजपा की युवा नेता उमा भारती भी वहां उपस्थित थी। वो सिर के बाल कटवाकर आई थी, ताकि सुरक्षाबलों से बच सकें।

RSS और उसके सहयोगियों ने विवादित ढांचे के स्थल पर 1,50,000 वीएचपी और भाजपा के कार सेवकों को शामिल करते हुए एक रैली का आयोजन किया। वहीं, मुलायम सरकार और पुलिस अत्याचार के कारण रैली के पहले कुछ घंटों के दौरान ही भीड़ धीरे-धीरे बेचैन हो गई और नारेबाजी करने लगी।

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ढांचे को सुरक्षित करने के लिए ढांचे के चारों ओर पुलिस की घेराबंदी कर दी गई थी। हालांकि, दोपहर के आसपास एक युवक भगवा झंडा लहराते हुए घेरा को पार करने और संरचना पर चढ़ने में कामयाब रहा। इसे भीड़ द्वारा एक संकेत के रूप में देखा गया, जिन्होंने तब संरचना पर धावा बोल दिया। पुलिस इतने अत्यधिक संख्या में और हमले के आकार के लिए तैयार नहीं थी, अतः पुलिस को पीछे हटना पड़ा।

भीड़ ने कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से इमारत पर धावा बोल दिया और कुछ ही घंटों में मिट्टी और चाक से बने पूरे ढांचे को समतल कर दिया गया। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो उस दिन कोई ऐसा नहीं था जिसने ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष न किया हो, यहां तक कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मी भी नारे लगा रहे थे।

छाया रहा सरकारी सन्नाटा

इस मामले के बाद केंद्र में नरसिंह राव सरकार गजब की चुप्पी साधे हुए थी। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने दावा किया था कि कुछ नहीं होगा। राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी भी आश्वस्त थे कि कुछ नहीं होने वाला। यानी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल तीनों स्तरों पर सन्नाटा था। यह तो तब था जब विश्व हिंदू परिषद 06 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के पास कार सेवा का ऐलान कर चुकी थी। देश भर से कारसेवक अयोध्या कूच कर रहे थे। तमाम इन्टेलिजेंस रिपोर्ट कुछ और कह रही थी। तब केंद्र में गृह सचिव थे माधव गोडबोले। हालांकि, केंद्र सरकार ने उनसे एक आकस्मिक प्लान तैयार करने को कहा था, जिसके बाद उन्होंने एक बड़ा प्लान तैयार भी किया था।

उस प्लान में कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करने तक की बात कही गई थी। उसकी वजह यह थी कि कारसेवा की तारीख घोषित हो गई थी। देश में अलग  माहौल बनने लगा था। राज्य की पुलिस के हाथ से स्थिति बाहर होते जा रही थी, उस हालात से निपटने के लिए भारी तदाद में अर्धसुरक्षा बलों की जरूरत थी। प्लान के मुताबिक 207 कंपनियों की तैनाती का सुझाव था। बाबरी मस्जिद पर पूरा सुरक्षा घेरा बना लेने की बात थी। 4 दिसंबर को बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने भी प्रधानमंत्री को फोन किया था। आशंका जताई थी कि बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाया जा सकता है और उसे बचाने के लिए गंभीर कोशिशें होनी चाहिए।

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वहीं, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भांप रहे थे कि केंद्र कुछ भी कर सकता है। उन्होेंने धमकी दे डाली थी कि अगर केंद्र सरकार ढांचे को अपने कब्जे में लेने की कोशिश करती है या राष्ट्रपति शासन लगाती है तो हम उसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकते। कुछ दिन पहले ही राज्यपाल सत्यनारायण रेड्डी ने 01 दिसंबर को इस मामले को लेकर राष्ट्रपति को पत्र भी लिखा था।

ढांचा गिराए जाने के बाद बने रामलला के अस्थायी मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए सुरक्षाबलों की लंबी कतारें लगी हुई थी। उच्च अधिकारियों की चेतावनी का भी वहां मौजूद जवानों पर कोई असर नहीं हो रहा था। यही नहीं, उस अस्थायी मंदिर के आसपास तैनात जवानों ने अपने जूते उतारे दिए थे। जवानों की श्रद्धा से भरी आंखें और नंगे पांव वहां के हालात बयां कर रहे थे। इस घटना के बाद केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया। खबरें तो ऐसी भी थी कि यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बर्खास्तगी की सिफारिश से करीब तीन घंटे पहले ही अपना इस्तीफा दे चुके थे।

दर्ज हुई थी दो प्राथमिकी

इस मामले में हजारों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी संख्या-197 दर्ज की गई, जिसमें डकैती, चोट पहुंचाने, सार्वजनिक पूजा स्थलों को नुकसान पहुंचाने/अपवित्र करने, धर्म के आधार पर दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने आदि का आरोप लगाया गया था। राम कथा कुंज सभा मंच से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में भाजपा, विहिप, बजरंग दल और आरएसएस के आठ लोगों के खिलाफ एफआईआर-198 दर्ज की गई थी।

आठ नामित आरोपियों में लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी रितांबरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया थे। इन आठ में से अशोक सिंघल और गिरिराज किशोर का निधन हो गया है। प्राथमिकी में IPC की धारा 153-ए, 153-बी और धारा-505 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। परन्तु, अब सभी लोगों को बरी कर दिया गया है।

6 दिसम्बर से शुरु हुई राम मंदिर की नींव रखे जाने की कहानी सांस्कृतिक पुनर्जागरण से सांस्कृतिक प्रबोधन कि राष्ट्रीय यात्रा है। आनंद लीजिए, अयोध्या में भारत की अंतरात्मा निर्मित हो रही है। 6 दिसम्बर को इस धर्मयुद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए कुछ योद्धा साक्षात रामलाला के चरणों में बैठकर उनका अभिनंदन करेंगे। पर, आप लोग भी कम भाग्यशाली नहीं हैं, जिनकी आंखें और आत्मा दोनों राम मंदिर को देखकर धन्य होंगी!

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