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October Kranti क्या है? दिनांक को लेकर मतभेद के कारण

TFI Desk द्वारा TFI Desk
3 December 2021
in मुझे हिंदी में खबर बताओ
october kranti

File: sabrangindia

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October Kranti क्या है? 

रूसी क्रांति को अक्टूबर क्रांति (October Kranti) भी कहते हैं और इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता है कि ये 25 अक्टूबर 1917 को घटित हुई थी. अक्टूबर क्रांति को अधिकारिक तौर पर सोवियत साहित्य में ग्रेट अक्टूबर सोशलिस्ट क्रांति के रूप में जाना जाता है और आमतौर पर यह अक्टूबर विद्रोह , बोल्शेविक क्रांति , या बोल्शेविक कूप के रूप में अक्टूबर क्रांति (October Kranti) को जाना जाता है. इसका कारण बेहद सामान्य हैः जब रूसी क्रांति घटित हुई तो उस समय रूसी साम्राज्य में जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल होता था.

उसके अनुसार से ये तारीख़ थी- 25 अक्टूबर. लेकिन पश्चिमी दुनिया में, जहां ग्रेगोरियन कैलेंडर इस्तेमाल किया जाता था, उसमें इसे 7 नवंबर कहना जारी रखा गया. बोल्शेविक और व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में रूस में October Kranti हुई थी. जब व्लादिमीर लेनिन ने सत्ता संभाली तो उन्होंने अन्य चीजों के साथ ही जूलियन कैलेंडर को भी समाप्त कर दिया और इस तरह से रूस ने खुद अक्टूबर क्रांति (October Kranti) की सालगिरह को नवंबर में मनाना शुरू कर दिया.

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ग्रेगोरियन कैलेंडर को 16वीं शताब्दी में मान्य बनाया गया. हालांकि 1917 में जब रूसी क्रांति (October Kranti) हुई, उस समय भी इस देश में पंचांग गणना के पुराने तरीक़े ही इस्तेमाल होते रहे.इसकी मुख्य वजह धार्मिक थी. ग्रेगोरिनय कैलेंडर को मान्यता देने का मतब था कैथोलिक चर्च के प्राधिकार को मानना.इसलिए प्रोटेस्टेंट और एंग्लिकन देशों में जूलियन कैलेंडर को अलविदा कहने में कई सदियां लग गईं.और इसीलिए, एक शताब्दी पहले जब रूस में October Kranti हुई, तो इसे छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में ये महीना नवंबर का था.

और पढ़े: Rashtriya Ekta Diwas- सरदार पटेल के महान योगदान को समर्पित पर्व

October Kranti की दिनांक को लेकर मतभेद 

जूलियन कैलेंडर का नाम रोम के नेता जूलियस सीज़र के नाम पर रखा गया था. सीज़र ने ही मिस्र को फ़तह करने के बाद, 45 ईसापूर्व में इसे शुरू किया था. इसमें पहले के कैलेंडरों की कुछ ग़लतियों को सुधारा गया था. जैसे कि रोमन कैलैंडर में 304 दिन हुआ करते थे और और जबतक 355 दिनों के साल का विचार नहीं आया, इसमें 10 महीने हुआ करते थे.ये भी खगोलीय गणना की सटीकता के क़रीब नहीं था.

असल में पृथ्वी सूरज का एक पूरा चक्कर लगाने में 365 दिन, पांच घंटे, 48 मिनट और 45.16 सेकेंड का समय लगाती है.इसलिए, मौसम के मुताबिक और हर मौसम में मनाए जाने वाले रोम के पर्वों के हिसाब से एक ज़्यादा सटीक पंचाग बनाया गया.

Also Read: फ्रांस की राजधानी कहाँ है? इतिहास, एवं प्रमुख दर्शनीय स्थल

जूलियन कैलेंडर में 365 दिनों को 12 महीनों में बांटा गया था, जैसा आज हम इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसमें भी आज के कैलेंडर के मुकाबले थोड़ी भिन्नता थी. चूंकि लीप वर्ष में 366 दिन होते हैं, इसीलिए जूलियन कैलैंडर के अनुसार, इन्हें हर चार साल में इस अंतर को शामिल किया जाता है.

1917 में रूस में फरवरी और अक्टूबर में दो क्रांतियां हुईं. पहले में राजशाही को उखाड़ फेंका गया और दूसरी (Second October Kranti) क्रांति पहली क्रांति की रक्षा के लिए हुई. यह पूंजीवाद के खिलाफ और समाजवाद के पक्ष में था. अप्रैल में लेनिन की वापसी ने इसकी पृष्ठभूमि तैयार की. अप्रैल के अंत तक बोल्शेविक पार्टी ने सोवियत सरकार के गठन की रूपरेखा रखी. मजदूरों और सैनिकों की इस सरकार में बड़े जमींदारों और बुर्जआ की कोई भूमिका नहीं थी.

और पढ़े: कुछ जरूरी तथ्य जो आपको जानना जरूरी है पढ़े हिंदी में

क्या था यह संघर्ष?

1917 तक बोल्शेविक ने वामपंथी समाजवादी क्रांतिकारियों से मिलकर कई सोवियत में बहुमत हासिल कर लिया. इससे निर्णयकारी संघर्ष के वक्त वे मजबूत रहे और विंटर पैलेस पर कब्जा जमाने में कामयाब रहे. स्थिति ऐसी बन गई कि सत्ताधारी शासन करने में सक्षम नहीं थे और लोग ऐसा शासन बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थे.

हालांकि, अक्टूबर क्रांति (October Kranti) को उस वक्त झटका लगा जब वामपंथी पार्टी ने ब्रेस्ट-लिटोवस्क समझौते का विरोध करते हुए बोल्शेविकों से अलग होने का निर्णय मार्च 1918 में ले लिया. इसके बाद जुलाई से गृह युद्ध की शुरुआत हुई. इससे यह तय होना था कि रूस में किसका शासन रहेगा. दोनों पक्षों के बीच कोई समझौता संभव नहीं था. संघर्ष तय था. इतिहासकार मोशे लेविन कहते हैं कि 1914 से 1921 के बीच रूस में जो हुआ उसका नुकसान रूस को लंबे समय तक उठाना पड़ा.

पॉल ली ब्लांक ने 1989 में ‘लेनिन एंड दि रिवोल्यूशनरी पार्टी’ लिखी है. पार्टी को लेकर भी अलग-अलग वक्त पर लेनिन की राय अलग रही है. समय के साथ इसमें बदलाव हुए हैं. लेनिन की समाजवाद की अवधारणा दीर्घावधि की सोच पर आधारित रही जो वर्तमान की सच्चाइयों के साथ व्यावहारिक तालमेल पर आधारित थी. इसमें किसानों के प्रति संवेदना और तानाशाही शासन तंत्र की खामियों को दूर करना शामिल था.

और पढ़े: Savinay Avagya Andolan Information in Hindi

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