बाइडेन ने अपने पूरे कार्यकाल में अब तक की सबसे बड़ी नीतिगत भूल की है। उन्होंने इंडो-पैसिफिक में भारत की भूमिका को कम करने की कोशिश की है। एक के बाद एक कि जा रही उनकी नीतिगत भूल का परिणाम यह हुआ है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में सैन्य तैनाती बढ़ानी शुरू कर दी है। बाइडेन जिस नीति पर चल रहे हैं उस पर चलकर अमेरिका जल्द ही पूरा दक्षिणी चीन सागर का क्षेत्र चीन के हाथ सौंप देगा।
बाइडेन करते जा रहे हैं नीतिगत भूल
बाइडेन की पहली नीतिगत भूल यह है कि उन्होंने नाटो और क्वाड की तुलना की और भारत द्वारा रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की आलोचना न करने के कारण भारत को ‛अस्थिर’ कह दिया। उन्होंने बयान दिया कि “हमने (अमेरिका) नाटो से लेकर प्रशांत तक एक संयुक्त मोर्चा प्रस्तुत किया है।” उन्होंने कहा “भारत जो कि अस्थिर रहा है उस अपवाद को छोड़कर पुतिन के आक्रामक रुख से निपटने के लिए क्वाड (मौजूद) रहा। जापान बहुत ही अधिक शक्ति के साथ रहा, वैसे ही ऑस्ट्रेलिया भी उपस्थित रहा।”
इस प्रकार बाइडेन ने अपने एक वक्तव्य में दो बार भारत को नजरअंदाज करने का प्रयास किया। उन्होंने भारत को अस्थिर कहा ही, इंडो पैसिफिक की जगह केवल पैसिफिक शब्द का प्रयोग करके भारत की स्थिति कमजोर करने की कोशिश करने का यह पहला अवसर नहीं है। इसके पूर्व कोरोना काल में भारत की सहायता करने में हिचकिचाहट, उसके बाद आंतरिक मामलों पर टिप्पणी, ऐसे कई कार्य हैं, जिससे भारत अमेरिका संबंधों में खटाई आए।
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भारत की भूमिका को कमजोर करना चाहते हैं बाइडेन
इस बार बाइडेन के बयान और शब्दों के चुनाव से पता चलता है कि वह इस क्षेत्र में भारत की भूमिका को कमजोर करना चाहते हैं। बाइडेन की नीति ना केवल ट्रंपकालीन अमेरिकी विदेश नीति के विपरीत है बल्कि उन्होंने इस भौगोलिक सत्य को भी नजरअंदाज कर दिया है कि हिंद प्रधान क्षेत्र में पश्चिम की ओर से प्रवेश का द्वार भारत ही है। भारत के बिना हिंद महासागर की स्थिरता की कल्पना करना मूर्खता है।
भारत द्वारा यूरोप में चल रहे रूस यूक्रेन संग्राम में किसी पक्ष में न उतरने का निर्णय एशिया की राजनीति में स्थिरता को ध्यान में रखकर लिया गया है। किंतु अमेरिका यदि एशिया में भारत की स्थिति कमजोर करने का प्रयास करता है तो यह सीधे तौर पर चीन को इस क्षेत्र में मजबूत करेगा। भारत और अमेरिका के बीच मतभेद, चीन को अधिक सशक्त आक्रामक और निर्भीक बनाएंगे। एक ऐसे समय में जब एक महाशक्ति ने एक कमजोर देश पर आक्रमण किया।
भारत के लिए यह बाध्यता नहीं है कि वह अमेरिका की विदेश नीति के अनुरूप अपनी विदेश नीति का निर्माण करे। भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान की तरह अमेरिका का औपचारिक सहयोग ‛formal US ally’ नहीं है। हमारा अमेरिका से कोई सैन्य समझौता नहीं है। भारत और अमेरिका अपनी समरूपता के कारण एक दूसरे का सहयोग करते हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास दोनों देशों को बांधता है किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत को अपने हितों को दांव पर लगाकर अमेरिका का सहयोग करना चाहिए।
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चीन ने शुरू की सैन्य तैनाती
रूस के आक्रमण और बाइडेन की खोखली बयानबाजी ने चीन का मनोबल बढ़ा दिया है। चीन ने दक्षिणी चीन सागर में अपने द्वारा बनाए गए तीन मानवकृत दीपों पर सैन्य तैनाती बढ़ा दी है। इन तीन द्वीपों पर एंटी शिप और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लेजर एंड जैमिंग उपकरण और फाइटर जेट तैनात कर दिए गए हैं। इस प्रकार दक्षिणी चीन सागर पर अधिकार मानने वालों को अप्रत्यक्ष चेतावनी दे दी गई है।
चीन ने ओबामा के शासन के दौरान इन मानवकृत ‛आर्टिफिशियल’ द्वीपों का निर्माण किया था। चीन द्वारा उन क्षेत्रों में जहां भूमि जलसतह के थोड़ा नीचे थी, वहां ऐसे द्वीप बनाए गए। इस प्रकार फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई और ताइवान जैसे देशों द्वारा समुद्र के जिन इलाकों पर अधिकार बताया जाता था, उन पर चीन ने अधिकार कर लिया है। इन द्वीपों का प्रयोग कर संपूर्ण दक्षिणी चीन सागर पर अधिकार करना चाहता है। 2016 में international arbitration tribunal ने स्पष्ट किया था कि चीन का इन क्षेत्रों पर अधिकार अवैध है। साथ ही यह भी निर्णय दिया था कि आर्टिफिशियल द्वीप का निर्माण अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है।
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चीन अंतर्राष्ट्रीय प्राधिकरण के नियमों को पहले ही नहीं मानता था किंतु बाइडेन प्रशासन द्वारा उसका मनोबल बढ़ाना भारत के लिए नहीं बल्कि अमेरिका के हितों के लिए घातक होगा। यदि चीन का मनोबल बढ़ेगा तो ताइवान को चीनी आक्रमकता और संभावित आक्रमण का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका अफगानिस्तान और यूक्रेन से भागकर अपनी छवि धूमिल कर चुका है। ताइवान पर चीनी आक्रमण उसकी वैश्विक महाशक्ति की छवि पर अंतिम प्रहार होगा।