इतिहास साक्षी है की प्रखर राष्ट्रवादी लोगों को दुनिया ने हमेशा से फासीवादी कहा है। नरेंद्र मोदी की सरकार पर भी हमेशा से विपक्षियों ने यही आरोप लगाए, लेकिन देश की एकता अखंडता और भौगोलिक सुरक्षा जितनी भाजपा सरकार ने सुनिश्चित कराई है उतनी शायद ही किसी अन्य सरकार ने कभी की होगी, मोदी सरकार ने ही अनुच्छेद 370 को खत्म किया, बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद सुलझाया, पूर्वोत्तर के राज्यों मुख्य रूप से नागा विद्रोहियों के साथ शांति समझौता किया, विदेश नीति को निष्पक्ष रखा और भारत की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करने वाले चीन को भी सबक सिखाई. एक और जहां कांग्रेस आलाकमान अपने मुख्यमंत्रियों के बीच के कल को शांत करने में नाकाम रहा है, वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार ने धीरे-धीरे भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों के माध्यम से असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद को सुलझा दिया है.
हाल ही में असम और मेघालय सरकारों ने मंगलवार को 12 में से छह स्थानों पर अपने 50 साल पुराने सीमा विवाद को हल करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे पूर्वोत्तर के लिए “ऐतिहासिक दिन” कहा। समझौते पर शाह तथा असम और मेघालय के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और कोनराड संगमा की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।
शाह ने नई दिल्ली में गृह मंत्रालय में आयोजित समारोह में कहा, “यह पूर्वोत्तर के लिए एक ऐतिहासिक दिन है।” हाल के दिनों में असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयासों में तेजी आई है।
क्या है असम और मेघालय सीमा विवाद?
मेघालय को 1972 में असम से अलग राज्य के रूप में बनाया गया था, लेकिन नए राज्य ने असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 को चुनौती दी थी, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में 12 स्थानों पर विवाद हुआ था। 12 स्थान कौन से हैं? अपर ताराबारी, गज़ांग रिजर्व फ़ॉरेस्ट, हाहिम, लंगपीह, बोर्डुआर, बोकलापारा, नोंगवाह, मातमुर, खानापारा-पिलंगकाटा, देशदेमोराह ब्लॉक I और ब्लॉक II, खंडुली और रेटचेरा।
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विवाद का प्रमुख बिंदु
पश्चिम गारो हिल्स में असम के कामरूप जिले की सीमा से लगा मेघालय का लंगपीह जिला दो पड़ोसी राज्यों के बीच सीमा विवाद का एक प्रमुख बिंदु है। लंगपीह ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान कामरूप जिले का हिस्सा था, लेकिन 1947 में भारत की आजादी के बाद, यह गारो हिल्स और मेघालय का हिस्सा बन गया। विवाद का एक अन्य बिंदु मिकिर हिल्स है, जिसे असम अपना हिस्सा मानता है। मेघालय ने मिकिर हिल्स के ब्लॉक पर सवाल उठाया है, जो अब कार्बी आंगलोंग क्षेत्र है, जो असम का हिस्सा है। मेघालय का कहना है कि ये तत्कालीन यूनाइटेड खासी और जयंतिया हिल्स जिलों के हिस्से थे।
अब तक किए गए प्रयास?
असम और मेघालय ने सीमा विवाद निपटान समितियों का गठन किया है। हाल ही में सरमा और संगमा ने सीमा विवाद को चरणबद्ध तरीके से सुलझाने के लिए दो क्षेत्रीय पैनल गठित करने का फैसला किया था। सरमा के अनुसार, सीमा विवाद को हल करने में पांच पहलुओं पर विचार किया जाना था-ऐतिहासिक तथ्य, जातीयता, प्रशासनिक सुविधा, संबंधित लोगों की मनोदशा, भावनाएं और भूमि की निकटता। पहले चरण में ताराबारी, गिजांग, हाहिम, बकलापारा, खानापारा-पिलिंगकाटा और रातचेरा सहित छह बिंदुओं पर विचार किया गया था।
मंगलवार को क्या हुआ?
असम और मेघालय के बीच विवाद के 12 बिंदुओं में से अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण अंतर वाले छह क्षेत्रों को पहले चरण में लिया गया था। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि समझौते पर हस्ताक्षर होने से असम और मेघालय के बीच 70 फीसदी सीमा विवाद सुलझ गया है। छह स्थानों में 36 गांव हैं, जो 36.79 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हैं, जिसके संबंध में समझौता हो गया है।
दोनों राज्यों ने पिछले साल अगस्त में जटिल सीमा प्रश्न पर जाने के लिए तीन-तीन समितियां बनाई थीं। पैनल के गठन ने सरमा और संगमा के बीच दो दौर की बातचीत का पालन किया था जहां पड़ोसी राज्यों ने चरणबद्ध तरीके से विवाद को सुलझाने का संकल्प लिया था।
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समितियों द्वारा की गई संयुक्त अंतिम सिफारिशों के अनुसार, पहले चरण में निपटान के लिए लिए गए 36.79 वर्ग किमी विवादित क्षेत्र में से, असम को 18.51 वर्ग किमी और मेघालय को 18.28 वर्ग किमी का पूर्ण नियंत्रण मिलेगा। सीमा विवाद के इतने जटिल मुद्दों को सुलझाने के लिए एक सरकार में अद्भुत और राजनीतिक शक्ति और दृढ़ता होनी चाहिए मोदी सरकार अभी यही दृढ़ता दिखा रही है यह न सिर्फ समकालीन समय बल्कि आने वाले हमारी पीढ़ियों के लिए भी सुगम और सुलभ होगा।