एस. जयशंकर ने अपनी श्रेष्ठता और सार्थकता दोनों सिद्ध कर दी है। विदेश मंत्री के पद पर उनकी नियुक्ति इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आखिर क्यों भारत के अहम मंत्रालय को संभालने की जिम्मेदारी एक पढ़े-लिखे व्यक्ति को मिलनी चाहिए? उन्होंने सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ना सिर्फ भारत के पक्ष को मजबूती से रखा है बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि चाहे कुछ भी हो भारत झुकेगा नहीं। पहले यूरोप फिर अमेरिका, ब्रिटेन, इस्लामिक राष्ट्रों के संगठन और अब चीन को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आईना दिखाया है।
एस. जयशंकर ने चीन से लगते भारत के सीमाई क्षेत्रों पर अपने दावों को स्पष्ट रूप से रखते हुए शी जिनपिंग को अपनी हद में रहने की चेतावनी दी। उन्होंने चीन ही नहीं अपितु समस्त विश्व को बिना लाग लपेट के यह बता दिया कि अगर भारतीय सेना के शौर्य के साथ उन्नत रक्षा तकनीक मिल जाए तो वह दुनिया की अजेय सेना बन जाती है और भारत की सीमाई क्षेत्रों को एकतरफा रूप से बदलने की चीन की विस्तारवादी नीति स्वयं उसके लिए खतरनाक सिद्ध होगी।
भारत इतिहास का गुलाम नहीं
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि हम भारत की सीमाओं को हर स्थिति में सुरक्षित रखेंगे। “यथास्थिति को एकतरफा रूप से बदलने” के किसी भी प्रयास को कभी स्वीकार नहीं किया जायेगा और अगर ऐसा हुआ तो हम भीषण रूप से प्रतिक्रिया देंगे।
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उन्होंने विश्व मुख्यरूप से चीन को चुनौती देते हुए कहा कि अगर कुछ देशों को ऐसा लगता है कि वो वीटो का प्रयोग करके किसी भी मुद्दे को अपने पक्ष और भारत के विपक्ष में मोड़ लेंगे तो वो भ्रम में हैं। आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर चीन पिछले दो साल से भारत के साथ उलझा हुआ है। वह मोदी सरकार के आठ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में विदेशी राजनयिक कोर को संबोधित कर रहे थे।
जयशंकर ने इस मौके पर उन साझेदारों को भी धन्यवाद दिया जो हमेशा भारत के साथ खड़े रहे। उन्होंने कहा कि भारत अब अपने इतिहास का गुलाम नहीं है। जब भारत की सुरक्षा की बात आती है तो हम वही करेंगे जो राष्ट्रहित सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। मैं विश्वसनीय भागीदारों की भूमिका को स्वीकार करता हूं जो भारत की महत्ता को बनाए रखने में मदद करने के लिए काम करते हैं। हमने इतिहास की झिझक को दूर कर लिया है और किसी को भी अपनी पसंद पर वीटो नहीं करने देंगे।”
15 दौर की वार्ता हुई पूरी
जयशंकर का यह बयान चीन द्वारा भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढांचा विकसित करने की कोशिशों के मद्देनजर आया है। इस समय दोनों देश एक कटु सीमा विवाद में उलझे हुए हैं। भारत लगातार वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का सम्मान करने के लिए चीन को चेतावनी दे रहा है, जबकि चीन हमारे खिलाफ चालें चल रहा है। सीमा विवाद उस समय अपने चरम पर पहुंच गया जब चीन ने मई 2020 में सीमा पर एक आक्रामक अभियान शुरू करके कोविड -19 महामारी का फायदा उठाने की कोशिश की।
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गलवान घाटी हमले के बाद दोनों देशों के बीच कुल 15 दौर की बातचीत हो चुकी है। तीसरे दौर की बैठक के बाद भारत और चीन दोनों गलवान घाटी के पेट्रोलिंग पॉइंट 15 और पेट्रोलिंग पॉइंट 17 A में संघर्ष को हल करने पर सहमत हुए थे।
चीनी आक्रमण और भारत का प्रतिवाद
इसके अलावा, पीएलए की पश्चिमी कमान ने हाल ही में इस क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियों को दोगुना कर दिया है। चीन ने हाल ही में पैंगोंग त्सो क्षेत्र में एक पुल का निर्माण किया है जो इस क्षेत्र में चीनी सैनिकों को रणनीतिक गतिशीलता प्रदान करता है। चीनी सेना सीमा पर सड़कें और आवासीय इकाइयां बनाने की भी कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर प्रतिवाद के रूप में भारत भी आसपास के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा दे रहा है। इसके अलावा, चीन को कमजोर करने के लिए, भारत ने चौतरफा प्रयास किया है। चीन के खिलाफ भारत के राजनयिक और आर्थिक अपराधों के परिणामस्वरूप पुराने सहयोगी चीन को भारत के लिए छोड़ रहे हैं। हाल ही में अमेरिकी सेना के पैसिफिक कमांडिंग जनरल चार्ल्स ए फ्लिन ने भारतीय सीमाओं के आसपास के क्षेत्रों में चीनी परियोजनाओं के खिलाफ एक स्पष्ट रुख अपनाया और चीन की सैन्य गतिविधियों को खतरनाक बताया।
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चीन मित्रविहीन देश है। यह दुनिया के किसी भी एक देश पर भरोसा नहीं कर सकता जो जरूरत के समय उसके बचाव में आएगा। जिन देशों को चीन मित्र कहता है, वे इसके संसाधनों पर पर पलने वाले परजीवी ही हैं। जाहिर तौर चीन इसके लिए खुद जिम्मेदार हैं। हाल के दिनों में साम्यवादी राष्ट्र ने लगभग हर सहयोगी की पीठ में छुरा घोंपा है।
उसकी मित्रविहीन प्रतिष्ठा को देखते हुए, उसकी कमजोर अर्थव्यवस्था को देखते हुए, और भारत की बढ़ती ताकत को देखते हुए, चीन को भारत से सावधान रहने की जरूरत है। चीन के किसी भी दुस्साहस का भारत और कड़ा जवाब देगा। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे स्पष्ट कर दिया है।
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