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मोतीलाल वोरा की आत्मा के साथ TFI फ़ाउंडर अतुल मिश्रा की ख़ास बातचीत

कांग्रेस पार्टी अब अपने ‘पाप’ स्वर्गीय मोतीलाल वोरा के ऊपर डाल रही है, ऐसे में TFI संस्थापक अतुल कुमार मिश्रा ने मोतीलाल वोरा की आत्मा से बातचीत की है।

Atul Kumar Mishra द्वारा Atul Kumar Mishra
21 June 2022
in चर्चित, समीक्षा
मोतीलाल वोरा की आत्मा के साथ TFI फ़ाउंडर अतुल मिश्रा की ख़ास बातचीत
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यह एक व्यंगात्मक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति को ठेस पहुंचाना नहीं है। कृपया लाइट लें।

मोतीलाल वोरा: हूहूहूहू

अतुल मिश्रा: मोतीलाल जी डराइए मत, हम आपसे एकदम नहीं डरते।

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कांग्रेस की डर की राजनीति: जिसने भारत के सैनिकों से उनका गौरव छीन लिया

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मोतीलाल वोरा: हमसे आज तक डरा ही कौन है, जब ज़िंदा थे तब भी कोई नहीं डरा, जब मर गए तब भी कोई नहीं डरता। मिश्राजी आप सवाल पूछिये।

अतुल मिश्रा: आपका टीएफ़आई पर बहुत-बहुत स्वागत है, ऊपर सब आनंद से है?

मोतीलाल वोरा: हाँ यहाँ ठीक है, यहाँ बिना पढ़े किसी डॉक्यूमेंट पर साइन नहीं करवाते। स्वर्ग वाले देवता लोग भले हैं, हमारे पृथ्वी वाले देवता थोड़े जटिल प्रवृत्ति के थे।

अतुल मिश्रा: पृथ्वी वाले देवता माने?

मोतीलाल वोरा: माने जवाहर जी…आ हा हा हा…अचकन पे गुलाब खोंस के, मुंह पे एडविना का नाम लेकर, साक्षात कामदेव लगते थे।

अतुल मिश्रा: तो आपकी नेहरू जी से बातचीत थी।

मोतीलाल वोरा: न न उन्हें तो दूर से बस निहारा, बातचीत तो इन्दिरा जी से शुरू हुई थी। नया-नया पोता हुआ था उनके, उसे खेलाने का काम दिया गया था।

अतुल मिश्रा: ऐसे नहीं चलेगा वोरा जी, शुरू से सुनाइये

मोतीलाल वोरा: 1928 में जन्म हुआ था मेरा, तब जोधपुर स्टेट हुआ करता था अंग्रेजों के अंदर। रायपुर में पढ़ाई की, बड़ा छोटा-सा शहर था रायपुर तब तो। जब तक कांग्रेस वालों के हाथ में था तब तक छोटा ही रहा, बाद में भाजपा वाले आ के बड़ा कर गए। फिर कलकत्ते गया पढ़ने। तब ममता वाली मार कटाई नहीं चलती थी वहाँ। 1968 में राजनीति ज्वॉइन कर ली लेकिन मन तो नेहरू जी के अचकन में ही अटका था।

अतुल मिश्रा: काँग्रेस कब ज्वॉइन किया?

मोतीलाल वोरा: हमारा एक मित्र था प्रभात तिवारी, वही ससुर लेके गया हमको कांग्रेस के किशोरीलाल शुक्ल जी के यहाँ, वहीं से काँग्रेस से हमारा गठजोड़ हो गया। हम भी ब्राह्मण, प्रभात भी ब्राह्मण और किशोरीलाल भी ब्राह्मण। ब्राह्मण पार्टी हुआ करती थी कांग्रेस तब। 1968 में इन्दिरा की तूती बोलती थी, हम भी घुस गए अपना भाग्य आजमाने। 2 साल बाद राहुल बाबा प्रकट हो गए। अद्भुत बालक थे वो।

अतुल मिश्रा: अरे राहुल को छोड़िए, अपना बताइये।

मोतीलाल वोरा: राहुल को कैसे छोड़ें, उनके कारण ही तो हमारा पॉलिटिकल करियर आगे बढ़ा। उनका डायपर साफ करना, डकार लगवाना, मालिश करना सब हमारा ही तो काम था। इस भक्तिपूर्ण सेवा से प्रसन्न होकर हमें पार्टी ने टिकट दिया और 1972 में हम बने विधायक, 77 और 80 में भी जीते। लगा कि हम जीवन में कच्छे धोने के अलावा भी कुछ कर जाएँगे।

अतुल मिश्रा: अच्छा ठीक है, आगे बोलिए।

मोतीलाल वोरा: ए मिश्रा जी तमीज़ से, याद रखिए मैं आत्मा हूँ, कुछ भी कर सकता हूँ।

अतुल मिश्रा: अच्छा आत्मा जी, आगे की कथा बाँचने का कष्ट करें बंधु।

मोतीलाल वोरा: हाँ, तब आए अर्जुन सिंह। वैसे तो राजा थे, लेकिन थे कॉंग्रेस के परम सेवक। उनके कैबिनेट में मंत्रालय मिला। और सन 1985 में हम बने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री।

अतुल मिश्रा: वाह डायपर बदलने वाले रोल से सीधा मुख्यमंत्री। करियर तो सही गया आपका गुरु।

मोतीलाल वोरा: अरे आगे सुनिए महाराज। असली ट्रेजेडी आगे है।

अतुल मिश्रा: अच्छा सुनाइए, चाय पानी मँगवाए।

मोतीलाल वोरा: ऊपर सोमरस मिल जाता है, चाय वगैरह की ज़रूरत नहीं पड़ती। खैर सन 1985 में हम बने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और ठीक तीन साल बाद दे दिया इस्तीफा।

अतुल मिश्रा: काहे भाई?

मोतीलाल वोरा: हमारे जीवन में हाई-कमान योग शुरू हो चुका था। सन 85 के बाद वो जो कहते थे मैं करता जाता था। हमने मीडिया को कहा की राष्ट्रीय दायित्व निभाने के लिए कुर्सी छोड़ रहे हैं जबकि छोड़ा इसलिए क्योंकि ऊपर से आदेश था।

88 में consolation प्राइज़ के रूप में राज्य सभा में सीट दे दी गई। कांग्रेस में टूट बढ़ गई थी। शरद पवार और अर्जुन सिंह में जूतम पैजार चल रहा था। सबको लग रहा था कि उनका नंबर लगने वाला है। हमारी बस एक आदमी से बनती थी, हमारे जैसा ही डरपोक पीवी नरसिम्हा राव। उस बेचारे को भी आंध्रा का सीएम बना के फिर गद्दी छीन ली गयी थी फिर भी वो मेरी ही तरह वफादार था।

अतुल मिश्रा: नरसिम्हा राव, लेकिन वो तो…

मोतीलाल वोरा: अरे कम से कम मरने के बाद तो बोल लेने दो यार बीच में मत काटो।

अतुल मिश्रा: अच्छा sorry, बोलिए

मोतीलाल वोरा: खैर 91 में तमिल रेबेल्स ने राहुल के पिताजी को बम से उड़ा दिया, सोनिया तब novice थी। शरद और अर्जुन में माथाफोड़ी चालू हो गयी और चुपके से प्रधानमंत्री बन गए नरसिम्हा राव। आदमी तेज था बस बकलोल होने की एक्टिंग करता था। हमारे मुंह से बस इतना निकाला…et tu Narasimha Rao।

अतुल मिश्रा: काफी दुख हुआ होगा। खैर आगे की कथा सुनाइए।

मोतीलाल वोरा: आगे कुछ खास eventful नहीं था दस एक साल तक। राहुल बाबा जवान हो गए और महामूर्ख भी। चमचे पाल लिए और हमें दरकिनार कर दिया। हमने आह तक न की।

फिर अचानक 2002 में सोनिया जी ने बड़े प्यार से बुलाया और कहा आपको AICC का कोषाध्यक्ष बना रहे हैं। माने कमाएंगे वो और रखवाली करेंगे हम। सच बताऊँ मिश्रा जी तो चंद्रकांता में जो तिलिस्म का दारोगा परिचन्द था न, वैसे वाली फीलिंग आ गयी। पर फिर सोनिया जी ने कुछ ऐसा कहा कि मैं फिर से जवान हो उठा। उन्होंने कहा नेहरू जी द्वारा स्थापित नेशनल हेराल्ड में महत्वपूर्ण पोस्ट दे रहे हैं। यंग इंडिया में डाइरेक्टर बना रहे हैं 12% स्टेक के साथ। सच कहूँ मित्र तो स्टेक पर्सेंटेज गया तेल लेने, हमारे दिमाग में तो बस वही अचकन पे गुलाब खोंस के, मुंह पे एडविना का नाम लेकर, साक्षात कामदेव लगने वाले नेहरू कौंध रहे थे। उन्होने जहां-जहां बोला, मैंने साइन कर दिया। जीवन में अभी हमारे बहुत कुछ बचा था।

अतुल मिश्रा: अच्छा, कहते जाइए।

मोतीलाल वोरा: फिर साल बीतते गए, मैं बूढ़ा होता गया। फिर मोदी जी आ गए, मैं तो फैन हूँ उनका। क्या बोलते हैं कसम से।

अतुल मिश्रा: मुद्दे पे मुद्दे पे…

मोतीलाल वोरा: हाँ हाँ। अचानक से एक बार ईडी से समन आया। नेशनल हेराल्ड में घोटाला पकड़ा गया था और ये तिलिस्म का दारोगा परिचन्द बिना मतलब फंस गया।

अतुल मिश्रा: राहुल बाबा ने फंसाया आपको?

मोतीलाल वोरा: हाँ उसने फंसाया और कोविड ने बचाया। 92 साल की अवस्था में हम स्वर्गवासी हो गए। प्रसन्नता इस बात की थी कि जीवन के अंत में रगड़ाने से बच गया। हमें क्या पता था कि पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।

अतुल मिश्रा: राहुल जी ने तो पूरे घोटाले का ठीकरा आपके सर फोड़ दिया है।

मोतीलाल वोरा: भूत हूँ न इसलिए, वैसे वर्तमान होता तो भी क्या कर लेता लेकिन भूत को फंसाना आसान होता है। सब आपकी तरह भूत बुलावन विद्या थोड़े ही ना जानते हैं मिश्रा जी।

अतुल मिश्रा: माने आप निर्दोष हैं।

मोतीलाल वोरा: मैं दोषी हूँ। लेकिन घोटाले का नहीं। अंधभक्ति का, अंधविश्वास का, अति-स्वामीभक्ति का, अपरिपक्वता का, सही समय पर पार्टी नहीं बदलने का, इन सब का दोषी हूँ मेरे भाई लेकिन घोटाले का नहीं। क्या आप मेरी बात ईडी तक पहुंचा सकते हैं मिश्रा जी।

अतुल मिश्रा: पहुंचा सकता हूँ लेकिन कोई मानेगा नहीं। काहे कि भूत की टेस्टीमोनी admissible नहीं हैं ना। खैर टीएफ़आई से बात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

मोतीलाल वोरा: धन्यवाद मिश्रा जी। हूहूहूहू

अतुल मिश्रा: फिर वही हूहूहूहू, बताए न आपको, आपसे डर नहीं लगता हमें।

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21 October 2025

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21 October 2025

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