मुफ्तखोरी की राजनीति किसी देश की आर्थिक सेहत के लिए बेहद ही हानिकारक होती है और यह श्रीलंका के मौजूदा हालातों से साफ हो ही जाता है। परंतु फिर भी देश में कुछ पार्टियां ऐसी है जो जनता को लुभाने के लिए मुफ्त सुविधाओं के चलन को लगातार आगे बढ़ा रही है। केवल वोट पाने के उद्देश्य से वो जनता को मुफ्त में चीजें बांटने लगती हैं और यही चलन किसी भी देश को दुगर्ति की तरफ लेकर जा सकता है। हालांकि मुफ्तखोरी की इस राजनीति पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने बड़ा प्रयास किया है।
दरअसल, हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए 80 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त ऋण देने की घोषणा की। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि वो चालू वित्त वर्ष में राज्यों को पूंजीगत कार्यों पर खर्च के लिए 80 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त ऋण देगी। यहां जान लें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-23 बजट भाषण में पूंजी निवेश योजना के लिए राज्यों को विशेष सहायता का ऐलान किया था। इसके तहत राज्यों को 50 साल के लिए ब्याज-मुक्त कर्ज के तौर पर एक लाख करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता देने का फैसला लिया गया था। यह सहायता पूंजी निवेश वाली परियोजनाओं के लिए है।
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इस कदम से घरेलू विनिर्माण और रोजगार भी बढ़ेगा
राज्यों को केंद्र सरकार से यह लाभ लेने के लिए कुछ जानकारियां वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को देनी होगी। उन्हें परियोजना का नाम, पूंजीगत व्यय, कार्य पूरा होने की अवधि और आर्थिक रूप से उसके उपयुक्त होने के बारे में व्यय विभाग को बताना होगा। व्यय विभाग ने छह अप्रैल 2022 को सभी राज्य सरकारों को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया- “राज्यों से आग्रह है कि वे कोष की मंजूरी और उसे प्राप्त करने के लिए 2022-23 में किए जाने वाले प्रस्तावित पूंजीगत कार्यों के बारे में व्यय विभाग को जानकारी दें।“ पत्र में कहा गया कि प्रधानमंत्री गतिशक्ति मास्टर प्लान के तहत आने वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण या विनिवेश और संपत्ति मुद्रीकरण के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए 5,000 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त ऋण भी शामिल है।
यहां यह जानना जरूरी है कि पूंजीगत व्यय वे फंड होते हैं, जो इमारतों, संपत्ति, प्रौद्योगिकी, औद्योगिक संयंत्रों, उपकरणों और अधिक भौतिक संपत्तियों को इकट्ठा करने, अपग्रेड करने और बनाए रखने के लिए उपयोग किए जाते हैं। पूंजीगत व्यय में उद्योग धंधों की स्थापना, बंदरगाह, हवाई हड्डे, अस्पताल, पुल, सड़क आदि के निर्माण से जुड़े खर्चे आते हैं।
सरकार के इस फैसले से कई तरह के फायदे होंगे। इससे राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और हर राज्य अपने यहां आधारभूत संरचना मजबूत करने पर काम करेगा। क्योंकि सभी राज्य यह चाहते है कि उन्हें अधिक से अधिक राशि केंद्र सरकार की तरफ से मिले। साथ ही राज्य अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करेंगे और सभी राज्य का इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा। पूंजीगत व्यय में बढ़त से घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और साथ ही रोजगार भी बढ़ेगा।
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फ्री-फ्री पर अब रोक लगना जरूरी है
इसके अलावा इससे मुफ्तखोरी की राजनीति पर लगाम लगाने में भी सहायता मिल सकती है। अभी के वक्त में होता क्या कि सभी राज्य अपने हिसाब से सारा पैसा खर्च करती आ रही है। इससे मुफ्तखोरी की राजनीति भी काफी बढ़ रही है। खासतौर पर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी देश में इस चलन को काफी बढ़ा रही है। दिल्ली के बाद अब पंजाब में भी AAP फ्री-फ्री योजनाएं बांटकर लोगों को मुफ्त की चीजों की आदि बना रही है। मुफ्त की राजनीति का ही शिकार श्रीलंका भी हुआ और उसका हाल आज हर किसी के सामने है। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है और इसके पीछे की प्रमुख वजह मुफ्तखोरी ही रही। श्रीलंका की सरकार ने करों में कटौती और विभिन्न मुफ्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण जैसे कई कदम उठाए थे, जो ही श्रीलंका की बर्बादी के असल कारण बने। ऐसे में भारत के लिए भी मुफ्तखोरी की इस आदत से दूर रहने की बेहद जरूरत है।
केंद्र की तरफ से केवल उन्हीं राज्यों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो अपने यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम करेंगे। सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले का लाभ यह होगा कि राज्य सरकारों को पैसों का इस्तेमाल मुफ्त चीजें बांटने की जगह अपने यहां इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और राज्य के विकास में लगाना पड़ेगा।
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