कबीर लिख गए हैं कि, “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥” इसे यदि NDTV जैसे उदारवादी चैनल के संदर्भ में उपयोग किया जाए तो पता चलता है कि कैसे वो अपने भीतर की निकृष्टता को देखने के बजाय NDTV वो जड़ें खोदता रहा है जिसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है। अब देश का हर क्षेत्र, प्रत्येक तबका एक समान तो हो नहीं सकता लेकिन NDTV की रिपोर्टिंग के अनुसार बुंदेलखंड के हालात ऐसे थे कि वहां पर आम इंसान “घास की रोटी” खा अपना जीवन व्यतीत कर रहा है पर शायद NDTV उस एक दिन के बाद बुंदेलखंड गया ही नहीं, गया होता तो पता चलता कि सब दिन एक से नहीं होते और बुंदेलखंड भी उस स्थिति से कोसों दूर जा चुका है। अब यदि NDTV को फिरसे घास की रोटी वाली रिपोर्ट करनी होगी तो निश्चित रूप से उसे घास की रोटी अपने घर से बनाकर ले जानी पड़ेगी।
दरअसल, 16 जुलाई को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया। यह 296 किलोमीटर का फोर-लेन एक्सप्रेसवे है, जिसकी लागत लगभग 14,850 करोड़ रुपये आई और उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) के सहयोग से बना है। एक्सप्रेस-वे चित्रकूट जिले के भरतकूप के पास गोंडा गाँव में NH-35 से इटावा जिले के कुदरैल गाँव तक फैला हुआ है, जहाँ यह आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के साथ विलीन हो जाता है। इसके अलावा, इसके मध्यस्थ चित्रकूट से दिल्ली की दूरी बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे द्वारा 3-4 घंटे कम कर दी गई है।
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कोई भी परियोजना अकेले अपने तक का उत्थान नहीं करती है। उसके आने से साझा विकास होता है। हर वर्ग अपने अपने स्तर पर लाभान्वित होता है। यह एक्सप्रेस-वे क्षेत्र की कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को भारी बढ़ावा देगा। इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का सृजन हो सकता है और अन्य कई अवसर भी खुल सकते हैं। इसके निर्माण से उम्मीद है कि वंचित क्षेत्र में और अधिक निवेश आने की प्रबल संभावनाएं बढ़ेंगी।
उद्घाटन समारोह के दौरान, पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे सात जिलों, चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, औरैया और इटावा से होकर गुजरता है। इसी तरह अन्य एक्सप्रेस-वे राज्य के कोने-कोने को जोड़ रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि विकास छोटे शहरों तक पहुंचेगा, जिससे सामाजिक न्याय की प्राप्ति होगी।
भौगोलिक इतिहास की बात करें तो बुंदेलखंड क्षेत्र उत्तर में भारत-गंगा के मैदान और दक्षिण में विंध्य रेंज के बीच स्थित है। यह भारत के सबसे गर्म स्थानों में से एक है, और यहां हर साल कई लोग सनस्ट्रोक से मर जाते हैं। बुंदेलखंड में ऐसे जिले हैं जो “सूखा प्रवण” क्षेत्रों की श्रेणी में आते हैं, इसमें जालौन, बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा शामिल हैं। इसी कारणवश मीडिया का सेण्टर ऑफ़ अट्रैक्शन बन चुका यही बुंदेलखंड NDTV की एक “घास की रोटी” वाली रिपोर्ट के बाद सुर्ख़ियों में आ गया था। इसके बाद उसकी छवि ही ऐसी बन गई थी कि गरीबाई में बुंदेलखंड का कोई सानी नहीं है। लेकिन अब जिस प्रकार बुंदेलखंड को तरक्की की नित्त-निरंतर नई सीढ़ी चढ़ने को मिल रही हैं तो “घास की रोटी” NDTV को नहीं मिल पा रही है।
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समय कभी नहीं रुकता, ठीक उसी तरह जैसे मोदी सरकार अपनी विकासात्मक पहलों को नहीं रोकती है। बुंदेलखंड का पूरा रुख मोड़ने के लिए भाजपा सरकार बार-बार कई प्रोजेक्ट ला रही है। 2019 में, पीएम मोदी ने रुपये से अधिक की विभिन्न योजनाओं की आधारशिला रखी। गुजरात के कच्छ की तर्ज पर जल्द ही बुंदेलखंड क्षेत्र का विकास करने का दावा करते हुए 20,000 करोड़ रु. योजनाओं में एक रक्षा गलियारा और पाइप्ड पेयजल लाइन शामिल थी। इस क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं को सुविधाजनक बनाने और रोजगार के अवसर पैदा करने के लक्ष्य के साथ इसका उद्देश्य था। जब योगी सरकार सत्ता में आई, तो उसने क्षेत्र के विकास के लिए एक व्यापक बुनियादी ढांचा संचालित योजना तैयार करने का फैसला किया। इसने 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का उद्घाटन किया। योजना मूल रूप से दलित सीमा क्षेत्र को मजबूत करने के लिए पेश की गई थी।
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यह सिद्ध करता है कि बुंदेलखंड में विकास की बयार डबल इंजन की सरकार आने के बाद ही फैल सकी वरना NDTV तो लगी हुई थी घास की रोटी की नौटंकी को प्रचारित और प्रसारित करने में। ऐसा नहीं है कि बुंदेलखंड विकास से लबरेज़ हो चुका है लेकिन उसकी स्थिति आज वैसी बिलकुल नहीं है जैसी NDTV ने पहले दिखाई थी। आज अगर NDTV को फिरसे “घास की रोटी” वाला सेगमेंट करना होगा तो उसे अपने घर से ही “घास की रोटी” बनाकर ले जानी पड़ेगी।
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