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ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत

कभी ब्रिटेन ने भारत को बनाया था अपना औपनिवेशिक गुलाम, अब बज रही है बैंड!

Prashant Srivastava द्वारा Prashant Srivastava
4 September 2022
in अर्थव्यवस्था
PM Modi and India Growth

Source- TFI

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याद करिए वो दौर जब भारत ब्रिटेन का औपनिवेशिक ग़ुलाम हुआ करता था, लंदन में बैठी ब्रितानिया सरकार ने जितना मुमकिन हो सका भारत को आर्थिक रूप से खोखला किया। कहा जाता था कि गंगा द्वारा भेजी गई चीजें सीधे लंदन के टेम्स नदी के किनारे जाकर निकलती थी अर्थात् गोरों ने इस कदर लूट मचा रखी थी कि भारत आर्थिक रूप से अपने घुटनो पर आ गया था। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो आर्थिक पंगुता से जूझ रहे भारत की दशा और दिशा दोनो ही निराश करने वाली थी, न तो औद्योगिक इकाइयां थी और न ही मूलभूत आधारभूत संरचनाएं, किंतु आज भारत ने इन सब चुनौतियों को पार पाते हुए जो कीर्तिमान स्थापित किया है वह जानकर वाक़ई हर हिंदुस्तानी को गर्व ज़रूर होगा।

और पढ़ें: भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डूबने से कैसे बचाया?

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दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना भारत

दरअसल, अपने पुराने दशा से निकल कर भारत ने आज ब्रिटेन को अर्थव्यस्था के क्षेत्र में मात दे दी है। दुनिया के छठीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रेस में यूके भारत से पिछड़ गया है। ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। एक दशक पहले भारत सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में 11वें क्रम पर था, जबकि ब्रिटेन पांचवें नंबर पर था। ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 के अंतिम तीन माह में ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए भारत विश्‍व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। ये एनालिसिस अमेरिकी डॉलर पर आधारित है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों के अनुसार,भारत ने पहली तिमाही में अपनी बढ़त हासिल कर ली है। फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में अमेरिका है। इसके बाद चीन, जापान और जर्मनी का नंबर आता है।

भारत की ग्रोथ के आगे चीन आसपास भी नहीं है। अप्रैल-जून तिमाही की चीन की वृद्धि दर 0.4 प्रतिशत रही है। तमाम अनुमान बता रहे हैं कि सालाना आधार पर भी भारत के मुकाबले चीन पीछे रह सकता है। एक तरफ़ जहां ब्रिटेन में जीवन यापन महंगा होने के कारण लोग परेशान हैं तो वही वर्ष 2022 के पहले तिमाही में 13.5% की विकास दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था में बमपर उछाल देखी जा रही है। इसकी शुरुआत तो वर्ष 2014 से मध्यम रफ़्तार के साथ हो चुकी थी लेकिन कोरोना महामारी के बाद अब जो आंकड़े हैं वहां भारत ब्रिटेन को पटखनी देते हुए दिखायी दे रहा है। रिपोर्ट्स की माने तो इस वर्ष भारत की विकास दर 7% रहने की उम्मीद है, जिसकी झलक अभी से देखने को मिल रही है। ब्रिटेन की बात करें तो उसकी मुश्किलें आने वाले समय में और बढ़ सकती है। यूके की जीडीपी फिलहाल 3.19 लाख करोड़ डॉलर की है। 7 प्रतिशत की अनुमानित ग्रोथ के साथ भारत के इसी वर्ष यूके को सालाना आधार पर भी पीछे छोड़ने की संभावना है।

आख़िर भारत इतना आगे कैसे निकल गया?

कुछ मामलों को छोड़े दे तो भारत की जनसंख्या उसके लिए किसी वरदान से कम नही है। ज़्यादा बड़ी जनसंख्या मतलब ज़्यादा बड़ा बाज़ार और जितना बड़ा बाज़ार, उतना मुनाफ़ा कमाने का मौक़ा, यही कारण है कि अपने आप को तुर्रम खान समझने वाले देश भी भारत से पंगा लेने से पहले सौ बार सोचते हैं। एक बड़ा बाज़ार एवं विकास की अधिक सम्भावनाएं होने के कारण वैश्विक कंपनियां भारत आती हैं, वे उत्पादन करती हैं जिससे भारत की अर्थव्यस्था का विकास होता है। ऊपर से सरकार द्वारा बिज़नेस फ़्रेंडली नीतियों के निर्माण से न सिर्फ़ बाहरी कंपनियों को भारत में फायदा हो रहा है अपितु कई स्टार्टअप्स भी यूनिकॉर्न की श्रेणी में पहुंच चुके हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा और दशा प्रदान कर रहे हैं।

इसके साथ-साथ भारत के अंदर अब कौशल विकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है जिससे कम्पनियों को स्किल्ड लेबर भी मिल जा रहे हैं। इन सब के अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी पैसा खर्च किया जा है जिससे नवाचार बाढ़ रहा है, जो समग्र रूप से पूरे अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर रहा है। इसके साथ ही विकासशील देश होने के नाते भारत में संभावनाओं का असीम भंडार है, विकास सम्बन्धी नए-नए आयाम हैं, MSME जैसे सेक्टर जो भारत में रोज़गार का एक प्रमुख श्रोत है भारतीय अर्थव्यस्था की रीढ़ बने हुए हैं।

आख़िर ब्रिटेन कैसे रह गया पीछे?

विकास का एक मॉडल होता है जिसके अंतर्गत विकास की सबसे अधिक सम्भावनाएं कम विकसित देशों में होती है, उसके बाद विकासशील देशों में और तत्पश्चात विकसित में। विकास करने के क्रम में विकसित देशों के पास विकासशील देशों के जितने अवसर नही होते हैं अपितु उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उस विकास की सततता को बनाए रखने की होती है। यूके एक विकसित देश है, वहां विकास की सम्भावनाएं अधिक नही हैं। ब्रेक्जिट के बाद से सम्भावनाओं में और कमी आयी है जिसके कारण ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था की रफ़्तार पटरी पर से उतर गयी है। इसके अलावा ब्रिटेन न ही भारत जितना बड़ा बाज़ार है और न ही उसके पास भारत जितना युवा श्रम शक्ति। जिसके कारण उसकी अर्थव्यवस्था के विकास की गति मंद पड़ गई है और रही सही कसर लंदन में सरकार की अस्थिरता ने पूरी कर दी है। इसीलिए कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है, एक समय अंग्रेजों के संदर्भ में कहा जाता था कि ब्रितानिया सरकार के राज्य में सूरज कभी अस्त नही होता लेकिन आज उनके खुद के देश की अर्थव्यस्था भी उनके उपनिवेश रहे भारत के हाथों मात खा गई।

और पढ़ें: आत्मनिर्भरता पर बल देकर भारत अपनी अर्थव्यवस्था को कर रहा है ‘डि-ग्लोबलाइज़’

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