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पीएम मोदी अगर अगली बार प्रधानमंत्री बने तो पूरी तरह स्वाहा हो जाएगा अमेरिकी डॉलर

डॉलर के 'पर' कट चुके हैं और दुनिया के तमाम देश अब भारत के साथ 'रुपए' में व्यापार करने की ओर बढ़ चुके हैं.

Prashant Srivastava द्वारा Prashant Srivastava
21 September 2022
in अर्थव्यवस्था
डॉलर

Source- TFIPOST

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कहते हैं जो शक्तिशाली होता है उसी के नाम का सिक्का पूरे विश्व में बोलता है, इस कहावत को अमेरिका ने कभी सच कर दिखाया था। अमेरिकी डॉलर ने 1970 के दशक की शुरुआत में सऊदी अरब के समृद्ध तेल साम्राज्य के साथ डॉलर में वैश्विक ऊर्जा व्यापार करने के लिए एक समझौते के साथ अपनी स्थिति को सील कर दिया। ब्रेटन वुड्स प्रणाली के पतन से डॉलर की स्थिति में सुधार हुआ; इसने अनिवार्य रूप से अन्य विकसित बाजार मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर को खड़ा कर दिया। इन घटनाओं ने अमेरिकी डॉलर को जिस सर्वोच्च स्थान पर पहुंचाया वही से डॉलर ने ऊंचाइयों को छुआ। किंतु कहते हैं न जो जितना ऊंचा उड़ता है उतना ही नीचे भी आता है, वैसे ही अमेरिकी डॉलर की उड़ान के दिन भी अब खत्म हो चुके हैं या यूं कहें कि डॉलर के पर अब कट चुके हैं और इसका प्रचंड प्रमाण भी अब मिलने लगा है। किंतु यह बात तो आप जानते ही होंगे कि जब जब कोई स्थान रिक्त होता है उसे भरने के क्रम में कोई न कोई अवश्य आता है। इसी क्रम में मृत्यु शय्या पर लेटे हुए अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपया विश्व-व्यापार में अपनी ठसक बनाने के लिए तैयार है।

और पढ़ें: रुपया भले ही अभी गिर रहा है लेकिन आने वाले वक्त में यह डॉलर का ‘काल’ बन जाएगा

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रुपए-रियाल को लेकर भारत से बात करेगा ईरान

वस्तुतः भारतीय रुपए का बढ़ता हुआ वर्चस्व इसका सूचक है। मूलतः रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई। मोदी सरकार की सरल व्यापारिक नीति और सुलभ ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था ने रुपए को एक नई पहचान दिलाई। वैसे तो हम नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत रुपए एवं संबंधित देशों की मुद्रा में व्यापार करते थे किंतु रुपए को वैश्विक मुद्रा  बनाने के क्रम में रूस-यूक्रेन युद्ध मील का पत्थर साबित हुआ। इस युद्ध के दौरान रूस, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से परेशान हो चुका था। अपनी गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बचाने के क्रम में उसने अन्य देशों को सस्ते क़ीमतों पर तेल बेचना प्रारम्भ किया। इसी क्रम में पीएम मोदी की सफल कूटनीति के कारण रूस एवं भारत ने समझौता करते हुए रुपए-रूबल में तेल व्यापार करने पर सहमति दर्ज कराई।

इसे रुपये को एक नई उड़ान दिलाने के क्रम में बड़ा कदम कहा जा सकता है। इससे रूस की आर्थिक व्यवस्था तो सुदृढ़ हुई ही साथ ही साथ भारतीय रुपए का क़द भी बढ़ा।भारत के साथ इस प्रकार का व्यापार करने के क्रम में रूस को जो लाभ हुआ उससे ईरान का ज्ञान चक्षु और उसकी बुद्धि दोनों खुल गई। बेचारा ईरान भी अमेरिका के प्रतिबंध के बोझ तले दबा हुआ है, उसकी आर्थिक स्थिति भी बदहाल है। ऐसे में अपनी अर्थव्यवस्था को जीवनदान देने के लिए उसने भारत का सहयोग लेना ही उचित समझा। यह मोदी सरकार की सफल रणनीति ही है कि एक समय भारत के द्वारा ईरान के समक्ष प्रस्तुत किए गए रुपए-रियाल समझौते को मना करने वाला ईरान आज खुद भारत से रुपए-रियाल को लेकर एक भुगतान प्रणाली विकसित करने का अनुरोध कर रहा है। ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी  ने भारत से सहायता मांगते हुए कहा है कि भारत ईरान के साथ भी रुपए-रूबल जैसे भुगतान प्रणाली विकसित करे।

सऊदी अरब के साथ भी हो रही है चर्चा

इसी क्रम में ईरान का धुर विरोधी सऊदी अरब के साथ मिलकर भारत, रुपए-रियाल व्यापार सम्भावनाओं के हर आयाम को तलाश रहा है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि भारत और सऊदी अरब ने रुपए-रियाल व्यापार को संस्थागत बनाने की व्यवहार्यता और वहां UPI और RuPay कार्ड को शुरु करने को लेकर चर्चा की है।वस्तुतः पीयूष गोयल की 18-19 सितंबर के दौरान रियाद की यात्रा के दौरान इन आयामों  पर चर्चा की गई थी। उन्होंने भारत-सऊदी अरब सामरिक भागीदारी परिषद की मंत्रीस्तरीय बैठक में भाग भी लिया। गोयल और सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने इस पर चर्चा की। ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार घरेलू मुद्रा का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की अपनी रणनीति के एक हिस्से के रूप में क्यूबा के साथ द्विपक्षीय व्यापार और रुपये में इसके भुगतान पर भी जोर दे रही है। इसी क्रम में क्यूबा के एक प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने भारत सरकार के अधिकारियों और बैंक अधिकारियों से मुलाकात की और द्विपक्षीय व्यापार तथा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के भुगतान तंत्र का उपयोग करने को लेकर सेटलमेंट पर चर्चा की।

डॉलर से निर्भरता हो रही है खत्म

एक ओर जहां भारतीय रुपया भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जहां विश्वपटल पर ठसक दिखने को तैयार है तो वहीं दूसरी ओर IMF के आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ो के अनुसार विभिन्न देश अपने आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर मूल्य वर्ग की संपत्ति को कम कर रहे हैं। इसका समग्र परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक आवंटित विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा मार्च 2022 में घटकर 58.8 प्रतिशत रह गया है, जो 1995 के बाद सबसे कम है। वस्तुतः मोदी सरकार का शुरुआत से यह लक्ष्य रहा है कि भारत का गौरव विश्व पटल पर बढ़े, अब ऐसे में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण जिस स्तर पर हो रहा है अगर प्रधानमंत्री दोबारा सत्ता में आते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिकी डॉलर पूरी तरह से रसातल में पहुंच जाएगा और सम्पूर्ण विश्व डॉलर नहीं रुपए के पीछे भागेगा।

और पढ़ें: इस तरह 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है भारत

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Tags: अमेरिकी डॉलरईरानभारतीय रुपयारुपए-रूबल समझौतारूस
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