हर संस्थान में कई तरह के अधिकारी होते हैं। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे। कुछ अधिकारी ऐसे भी होते हैं, जो अपनी काबिलियत से पूरी की पूरी संस्थान को ही परिवर्तित करके रख देते हैं और ऐसे अधिकारियों के लिए नियम कायदे सब बदले जाते हैं। ऐसे ही एक अधिकारी हैं संजय कुमार मिश्रा, जिनके कंधों पर इस वक्त काले धन को सफेद करने वाले खेल का अंत करने वाली संस्था यानी प्रवर्तन निदेशालय का जिम्मा है और वो पीएम नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद बने हुए हैं।
इन दिनों यदि कोई संस्था है, जो अपनी तेजतर्रार कार्रवाई के कारण सुर्खियों में बनी हुई है तो वह है प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी। आए दिन ईडी भ्रष्टाचारियों और काले धन के विरुद्ध कार्रवाई करती हुए नजर आ जाती है। खासतौर पर विपक्षी नेताओं में आजकल ईडी के नाम से खौफ पसरा हुआ है क्योंकि एक-एक कर ईडी उनके काले कारनामों की पोल खोल रही है। प्रवर्तन निदेशालय को इतना मजबूत बनाने का श्रेय अगर किसी को दिया जाएगा तो वो कोई और नहीं इसके डायरेक्टर संजय कुमार मिश्रा ही होंगे।
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यहां समझिए कौन हैं संजय मिश्रा?
सबसे पहले जान लेते हैं आखिर हैं कौन हैं संजय मिश्रा? वर्तमान समय में संजय कुमार मिश्रा प्रवर्तन निदेशालय के डायरेक्टर के तौर पर कार्यरत हैं। वो 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। वो अपने बैच के सबसे कम उम्र के IRS अधिकारी थे। मिश्रा को उनकी ईमानदारी के साथ तेज दिमाग और कड़ी मेहनत करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपना अधिकांश करियर आयकर विभाग में ही बिताया है। भारतीय राजनीति की जड़ें हमेशा से भ्रष्टाचार से जुड़ी रही है, जो लंबे समय तक देश को दीमक की भांति खोखला करती रही। ऐसा इसलिए क्योंकि देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद 70 वर्षों तक एक ही पार्टी ने राज किया। एक दौर में भ्रष्टाचारियों का बोलबाला हुआ करता था परंतु फिर वर्ष 2014 में बड़ा परिवर्तन आया और कांग्रेस के दशकों के शासन से ऊब चुकी जनता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना भरोसा जताया।
सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने भ्रष्टाचारियों और काले धन को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। परंतु यह काम इतना सरल कहां था क्योंकि यह देश की जड़ों तक अपनी पहुंच बना चुका था। देश विरोधी ताकतें, विदेशी वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन, भ्रष्ट राजनेताओं की सांठगांठ और काला धन भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा बने हुए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचारियों और काले धन का उपयोग करने वालों पर लगाम लगाने हेतु अपने कार्यकाल की शुरुआत में फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2010 (FCRA) के तहत विदेशी सहायता पर चल रहे एनजीओ पर शिकंजा कसा था। लेकिन केवल इतना काफी नहीं था, पीएम मोदी समझ रहे थे कि यह गँठजोड़ बहुत बड़ा था। यदि बड़ी मछली को पकड़ना है तो कुछ बड़ा अवश्य करना पड़ेगा और यही उनकी मुलाकात हुई संजय कुमार मिश्रा से।
19 नवंबर, 2018 को संजय कुमार मिश्रा को पहले तो ईडी का प्रधान विशेष निदेशक बनाया गया परंतु फिर कुछ दिनों के बाद उन्हें ईडी का निदेशक घोषित कर दिया गया। ईडी की कमान उनके हाथों में आने से पहले इस संस्था की अधिक चर्चाएं नहीं होती थी। परंतु संजय कुमार मिश्रा के पदभार ग्रहण करने के बाद से प्रवर्तन निदेशालय में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली। मिश्रा ने ही तेजी से ईडी का विस्तार किया। जब संजय कुमार मिश्रा को निदेशक बनाया गया तो ईडी में पांच विशेष निदेशक और 18 संयुक्त निदेशक थे। संस्था में अब 9 विशेष निदेशक, तीन अतिरिक्त निदेशक, 36 संयुक्त निदेशक और 18 उप निदेशक हैं। ईडी ने मेघालय, कर्नाटक, मणिपुर, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में कार्यालय स्थापित किए हैं।
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मिश्रा को लेकर विपक्षियों की कुंठा
संजय कुमार मिश्रा के निदेशक बनने के बाद ईडी की जांच का दायरा काफी बढ़ गया है। अब प्रवर्तन निदेशालय कई हाईप्रोफाइल मामलों की जांच कर रही है। वो संजय कुमार मिश्रा ही हैं, जिनके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नियमों को तोड़ा मरोड़ा। दरअसल, मिश्रा को वर्ष 2018 में केवल दो ही वर्षों के लिए प्रवर्तन निदेशालय का निदेशक बनाया गया था और उनका कार्यकाल नवंबर 2020 में ही समाप्त होना था क्योंकि भारत में सीबीआई एवं ईडी निदेशकों की नियुक्ति 2 वर्ष या 60 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, तब तक के लिए ही की जाती है।
खासतौर पर विपक्ष संजय कुमरा मिश्रा का बेसब्री से सेवानिवृत्त होने का इंतजार कर रहा था क्योंकि मिश्रा के नेतृत्व में ही ईडी ने विपक्षी नेताओं की नाक में दम करके रखा था। मार्च 2020 में मिश्रा की आयु 60 वर्ष हुई परंतु फिर भी सरकार द्वारा उन्हें ईडी के निदेशक के तौर पर जारी रखा गया। विपक्ष ने उनके दो साल का कार्यकाल पूरा होने यानी नवंबर 2020 तक की प्रतीक्षा की। परंतु 13 नवंबर 2020 को एक आदेश द्वारा नियुक्ति पत्र को केंद्र सरकार द्वारा पूर्व प्रभाव से संशोधित किया गया और दो वर्ष के उनके कार्यकाल को बढ़ाकर तीन वर्ष का कर दिया गया।
बस यही से विपक्ष की कुंठा दिखने लगी और मिश्रा का कार्यकाल बढ़ने से वो इस कदर परेशान हो गए कि एनजीओ के माध्यम से इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए परंतु यहां से फिर उन्हें निराशा ही हाथ ली। फिर उन्होंने मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के लिए नवंबर 2021 की प्रतीक्षा की। यहां तक कि सितंबर 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने एक आदेश में कहा था कि संजय मिश्रा को आगे एक्सटेंशन नहीं मिलेगा परंतु अदालत के आदेश के बावजूद विपक्ष को झटका देते हुए उनके कार्यकाल को एक और वर्ष का विस्तार दिया गया था। सरकार सीवीसी अधिनियम में संशोधन के लिए एक अध्यादेश लाई और संजय कुमार मिश्रा का कार्यकाल नवंबर 2023 तक कर दिया। इस अध्यादेश के लाभार्थी के लिए संजय कुमार मिश्रा भारतीय इतिहास के पहले अधिकारी बने थे। परंतु यहां भ्रष्ट नेताओं और एनजीओ का सब्र का बांध टूट गया और उन्हें हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं की बाढ़ आ गई।
पीएम मोदी के भरोसेमंद बने हुए हैं मिश्रा
यकीनन यह संजय कुमार मिश्रा की काबिलियित ही थी, जिसे उन्होंने साबित किया और उन्हें ईडी के निदेशक के पद पर बरकरार रखने के लिए सरकार बार बार नियम बदलती रही। उनके कार्यकाल में ईडी के कुछ बड़े केस की सूची पर नजर डालेंगे तो यह काफी लंबी नजर आती है, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम के INX मीडिया केस से लेकर शरद पवार एंड अजित पवार के महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव केस और राहुल गांधी-सोनिया गांधी के नेशनल हेराल्ड मामले तक कई हाई प्रोफाइल मामले शामिल हैं, जिसमें ये सभी विपक्षी नेता ईडी के शिकंजे में फंसे हुए हैं। यही कारण है कि विपक्ष को संजय कुमार मिश्रा से इतनी समस्या है कि वो उन्हें हटाने पर तुले हैं, जबकि मिश्रा प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद बने हुए हैं।
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