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नेहरू और एडविना का वो प्रसंग, जिसे वर्षों से सबसे छुपाती आ रही है कांग्रेस

जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन से जुड़ी इस कहानी को आज भी बताने में कांग्रेस के प्राण सूख जाते हैं।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
12 November 2022
in इतिहास, ज्ञान
Nehru Edwina love story

Source- Google

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“और देव साहब, कैसा चल रहा है सब?”

“कुछ नहीं नेहरूजी, सब आपकी कृपा है!”

“आप तो अपनी अदाओं से कई हसीनाओं के दिल चुरा लेते हैं”

“हा हा हा! वैसे दिल चुराने से याद आया, ये सच है क्या कि आपकी कातिलाना मुस्कान ने एडविना मैडम का दिल चुरा लिया था?” 

Nehru Edwina love story: अब बंधु ये एक ऐसा प्रश्न था, जिस पर नेहरू से न निगलते बना न उगलते और वे अपना सा मुंह लेकर रह गए। आप सोचें कि यह एडविना मैडम (Edwina) कौन थी? तो ये कथा पूरा राष्ट्र और अब तो सम्पूर्ण जगत जानता हैं, बस जुबान पर लाने में लज्जा आती है, विशेषकर कांग्रेस पार्टी और ब्रिटेन के शाही परिवार को क्योंकि मामला तनिक पर्सनल है।

और पढ़े: कुछ इस तरह नेहरू और वीके कृष्ण मेनन ने भारतीय सैन्यबलों को समाप्त करने का प्रयास किया

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जवाहरलाल नेहरू और एडविना

देखो मित्रों, जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे, ये हमारा दुर्भाग्य है। परंतु इसके भी अपने अलग ही लाभ थे। हमारे लिए नहीं नेहरू महोदय के लिए। आग लगे बस्ती में, हम अपनी मस्ती में इनके जीवन का मूल मंत्र था, जो ये लिटरली जीते भी थे, क्योंकि लाखों हिंदुओं और सिखों के घर उजाड़कर जो व्यक्ति विलासिता का जीवन जिए ताकि वह सत्ता में बना रहे तो उसे और क्या ही कहें?

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं थी। महाशय इससे दो कदम आगे की भी सोचते थे। देश को आवश्यकता थी परिपक्व नेतृत्व की, ऐसे व्यक्ति की जो टूटे और खंडित भारत को जोड़ सके। परंतु नेहरू बी लाइक- छोड़ो भाई, मेरे बस का नहीं ये सब। होता भी कैसे, भाईसाहब तो कहीं और ही व्यस्त थे।

असल में जवाहरलाल नेहरू का 1945 के पश्चात ब्रिटिश राजशाही से मिलना जुलना काफी अधिक हुआ और इसी बीच लॉर्ड लुई माउंटबेटन अपने परिवार सहित भारत आए क्योंकि उन्हें देश की बागडोर भारतीयों के हाथ में देनी अथवा देश के विभाजन का स्पष्टीकरण करना था। इसी बीच इनका परिचय उनकी पत्नी एडविना (Edwina) से हुआ। यूं तो लॉर्ड माउंटबेटन शाही परिवार से थे और नेहरू उस तुलना में उतने सम्पन्न नहीं थे, परंतु वे भी भारत में काफी प्रभाव रखते थे क्योंकि उनका परिवार ने अंग्रेज़ों की चाटुकारिता कैसे की थी इस पर कोई शोधपत्र लिखने की आवश्यकता नहीं। अब आगे।

अब दूसरी ओर एडविना और लॉर्ड माउंटबेटन उर्फ ‘डिकी’ के बीच में भी सिर्फ मित्रता जैसे संबंध रह गए थे। इस विवाह से पूर्व एडविना के कई संबंध पहले ही चर्चा में थे। रोचक बात तो यह थी कि एडविना लॉर्ड माउंटबेटन के साथ आना ही नहीं चाहती थीं पर भाग्य का चक्र कुछ और ही खेल रच गया।

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कश्मीर मुद्दे पर एडविना का प्रभाव

पंडित नेहरू की शख्सियत को डिकी और एडविना दोनों ही पसंद करते थे और शायद इसका फायदा आज के हिंदुस्तान को विभाजन के वक्त भी मिला और कहते हैं कि एडविना ने कश्मीर मुद्दे पर काफी प्रभाव भी डाला। मॉर्गन जेनेट ने अपनी किताब ‘एडविना माउंटबेटन: अ लाइफ ऑफ़ हर ओन’ में लिखा है कि वे नेहरू को समझाने मशोबरा एक हिल स्टेशन ले गईं। इस वाक्ये को एडविना ने अपनी चिट्ठी में क़ुबूल किया है, “तुम्हें (जवाहर ) मशोबरा ले जाकर तुमसे बात करना मेरा शौक बन गया है…” –

वाह जी वाह, परंतु बात वहीं पर नहीं रुकी। एडविना तो एडविना, बिटिया तक को आकर्षित करने से नेहरू महोदय बाज़ नहीं आए। मशोबरा की अन्य यात्राओं में डिकी और बेटी पामेला भी उनके साथ थे। लॉर्ड माउंटबेटन, जवाहरलाल नेहरू और एडविना की बढ़ती दोस्ती (Nehru Edwina love story) को बहुत करीब से देख रहे थे। वे ऐसा क्यों कर रहे थे यह समझना सरल भी है और कठिन भी।

विडंबना देखिए, यही कार्य यानी जवाहरलाल नेहरू और एडविना (Edwina) का रिश्ता (Nehru Edwina love story) माउंटबेटन की जिंदगी के सबसे बड़े काम यानी विभाजन को सरल बना रहा था। वे यह भी समझते थे कि नेहरू के लिए एडविना उन्हें छोड़ नहीं सकतीं। इसलिए कहीं न कहीं वे इसे बढ़ावा भी दे रहे थे। ब्रिटिश इतिहासकार फिलिप जिएग्लर ने माउंटबेटन की जीवनी में एक चिट्ठी का जिक्र किया है जो डिकी ने अपनी बेटी पेट्रिशिया को लिखी थी। इसमें उन्होंने लिखा था- ‘तुम किसी से इसका ज़िक्र न करना पर यह हक़ीक़त है कि एडविना और जवाहर एक साथ बड़े अच्छे दिखते हैं और दोनों एक-दूसरे पर अपना स्नेह भी व्यक्त करते हैं। मैं और पामेला (उनकी दूसरी बेटी) वह सब कुछ कर रहे हैं जो उनकी मदद कर सकता है। मम्मी इन दिनों काफ़ी खुश रहती हैं…”

कहीं न कहीं ये बात द क्राउन के इस संवाद में भी परिलक्षित होती हैं, जहां लॉर्ड माउंटबेटन समझाते हैं कि कैसे नेहरू ने बड़ी सफाई से उनकी आंखों में धूल झोंका और यह कारनामा कर दिखाया। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने एक ही दांव से दो राष्ट्रों को भारी क्षति पहुंचाई- भारत को असहनीय घाव दिए अपनी अकर्मण्यता से और इंग्लैंड को अपनी कर्मकांडों से, जिसके कारण इंग्लैंड आज भी माउंटबेटन फाइल्स को साझा करने से कतराता है।

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