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“प्रतिबंधित देश-विरोधी NGO ने अपना अंडरवर्ल्ड बना लिया”, इन पर और सख्त कार्रवाई का वक्त आ गया है

ऐसे 'ऑपरेट' हो रहे हैं यह गैर-सरकारी संगठन!

Vaishali Shukla द्वारा Vaishali Shukla
28 January 2023
in मत
“प्रतिबंधित देश-विरोधी NGO ने अपना अंडरवर्ल्ड बना लिया”, इन पर और सख्त कार्रवाई का वक्त आ गया है
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मोदी सरकार के नेतृत्व में बीते कुछ सालों में कथित तौर पर भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाले कई गैर-सरकारी संगठनों(NGO) पर लगाम कसी गई है। क्योंकि भारत विरोधियों ने अपने विदेशी महानुभावों के साथ मिलकर हमेशा ही भारत को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाना चाहा है। अपने भारत विरोधी एजेंडे को अंजाम देने के लिए कई लोगों ने तो गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की आड़ ली।

प्रयासों पर काफी हद तक नकेल

लेकिन वर्ष 2014 के बाद से भारतीय लोकतंत्र को हानि पहुंचाने के उनके प्रयासों पर काफी हद तक नकेल कस दी गई। देश के भीतर से उनके धन स्रोतों को भी काफी हद तक खत्म करने का भी प्रयास किया गया था। इतना ही नहीं विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के द्वारा भी इन पर रोक लगाने को कोशिश की गई लेकिन अतीत और अभी हाल ही में हुए एक खुलासे से ऐसा ही प्रतीत हो रहा है मानो प्रतिबंधित देशद्रोही एनजीओ अभी भी अंडरग्राउंड होकर अपना बिजनेस चला रहे हैं।

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फिनिश ग्रीन लीग की एक राजनीतिज्ञ और यूरोपीय संसद की सदस्य अल्विना अलामेत्सा ने अभी हाल ही में भारत के ऊपर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने भारत में अपने पहले दौरे के बाद ये टिप्पणियां की हैं। विधायकों के दावों के अनुसार, भारत में अपने पहले दौरे के दौरान उन्होंने कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अधिकारियों, पत्रकारों और विद्वानों से मुलाकात की थी। इन सभी बैठकों में उन्होंने भारत के लोकतंत्र और मानवाधिकारों की स्थिति पर विशेष प्रकार की चर्चा की थी।

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देश के लिए एक बड़ा खतरा

अलवीना अलामेत्सा ने कहा कि “मैंने भारत में अपने दौरे के दौरान कई मानवाधिकारों का उल्लंघन देखा। जब मैं मानवाधिकार रक्षकों से मिली तो मैं ये सब देख कर हैरान रह गई.  उनमें से कुछ तो बहुत ही प्रतिबंधित परिस्थितियों में, अप्रत्याशित और जोखिम भरे माहौल में कार्य कर रहे हैं. इतना ही नहीं उनके कार्यालय तक बंद कर दिए गए हैं,  उनके फंड फ्रीज कर दिए गए हैं. मैं सम्मानित, मेहनती एनजीओ से भी मिली, जिन्हें अब पूरी तरह भूमिगत होकर कार्य करना पड़ रहा है। वहीं कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों को तो देश तक छोड़ना पड़ा। कई कार्यकर्ताओं को बिना किसी उचित प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया और अन्य को तो चुप ही करा दिया गया।”

अपनी चर्चा में उन्होंने कहा कि कई “मेहनती” एनजीओ अब अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए भूमिगत काम कर रहे हैं। यहां ध्यान देने वाली बात है कि भले ही उनके ये राजनीति प्रेरित आरोप झूठे हो लेकिन इस बात से ये तो साफ हो गया है कि सरकार के गैर-सरकारी संगठनों(एनजीओ) को अभी भी चोरी-छिप्पे चलाया जा रहा है जो देश के लिए एक बड़ा खतरा है।

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अलविना की टिप्पणी

एक अतिथि के रूप में अलविना अलमेत्सा ने द लंदन स्टोरी के द्वारा आयोजित एक संसदीय ब्रीफिंग में अपनी ये खास टिप्पणी दी थी। अलमेत्सा ने कहा कि,  यूरोपीय संघ को सहयोग करना चाहिए और बिगड़ती मानवाधिकार स्थिति के लिए भारत को जवाबदेह ठहराना चाहिए. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि “मानवाधिकारों की रक्षा करना ईयू-भारत साझेदारी के मूल में ही होना चाहिए। जब किसी देश के भीतर भाषण की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक विरोध खतरे में हो तो उनके अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे को जवाबदेह ठहराना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि, “भारत में इसकी स्थिति तेजी से खराब हो रही है लेकिन अभी भी उम्मीद की किरण है। एक्टिविस्ट लड़ते रहते हैं, संगठन कार्य करते रहते हैं और फ्री मीडिया रिपोर्टिंग में जुटा रहता है. यह सारा काम अल्पसंख्यकों, गरीबों और उन लोगों के लिए है, जिन्हें पूरी तरह से भूला दिया गया है और जिनके साथ भेदभाव किया गया है।”

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नियमों को और कड़ा करना होगा

इन विशेष टिप्पणियों से पता चलता है कि विदेशी वित्तपोषित भारत विरोधी गैर-सरकारी संगठनों के खतरे को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए एफसीआरए नियमों में और  अधिक कड़ाई करने कि विशेष आवश्यकता है। साथ ही इससे पंजीकृत और अपंजीकृत गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा उत्पन्न खतरे की गंभीरता भी सामने आती नजर आ रही है।

भारत में, एफसीआरए के तहत पंजीकृत एनजीओ की निगरानी गृह मंत्रालय के द्वारा एक अलग प्रभाग के माध्यम से की जाती है। पंजीकृत एनजीओ को छोड़कर लगभग 35 लाख एनजीओ हैं जो एफसीआरए के तहत पंजीकृत ही नहीं हैं। वे लगभग 40 विभिन्न कानूनों के द्वारा शासित होते हैं जैसे सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, कंपनी अधिनियम, सार्वजनिक न्यास अधिनियम और अन्य अलग कानून। यह उन्हें अपने भारत विरोधी एजेंडे को वैध बनाने के लिए कानून की खामियों का लाभ उठाने की अनुमति देता है।

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कानूनों में संशोधन आवश्यक है

एक रिपोर्ट कहती है कि सरकार जल्द ही ‘विचलन’ और अवैध धन को नियंत्रित करने के लिए एक वैधानिक निकाय का गठन कर सकती है। जो इन गैर सरकारी संगठनों को अभी भी देश में भारत विरोधी एजेंडे को चलाने के लिए प्राप्त हो रहा है। इन कानूनों को संशोधित करते रहना महत्वपूर्ण है ताकि जब भी वे नये दिशानिर्देशों का उल्लंघन न करें, उन्हें नियमित रूप से कानून के दायरे में लाया जा सके, अन्यथा वे सभी भारतीय लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने का कोई भी अवसर अपने हाथ से जाने नहीं देंगे।

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Tags: European ParliamentNGOगैर सरकारी संगठनयूरोपीय संसदराजनीतिज्ञ
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