हल्द्वानी अतिक्रमण (Haldwani Encroachment) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय सुनाया है। उसी निर्णय की उम्मीद लोग सुप्रीम कोर्ट से कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए उस जगह को खाली कराने पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक जारी रहेगी। कोर्ट का कहना है कि इस मामले में मानवीय एंगल है, इसलिए इस जगह को इस तरह से खाली नहीं कराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर तमाम तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।
रेलवे की है जमीन (haldwani encroachment)
उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा के 2.2 किलोमीटर के इलाके में गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा बस्ती के सैकड़ों घर रेलवे की जमीन पर बने हुए। रेलवे का कहना है कि जमीन से संबंधित उसके पास पुराने नक्शे हैं। 1959 का नोटिफिकेशन है, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड है और 2017 की सर्वे रिपोर्ट भी है।
रेलवे की इस जमीन पर पिछले करीब 50 वर्षों से लोगों ने गैर-कानूनी तरीके से कब्जा (haldwani encroachment) जमा रखा है। इन अतिक्रमणकारियों में ज्यादातर लोग मुस्लिम हैं। पूरी कहानी 2013 से शुरू होती है। तब गौला नदी में अवैध रेत खनन का मामला हाईकोर्ट में पहुंचा था।
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उस वक्त पाया गया था कि रेलवे किनारे रहने वाले लोग इस अवैध खनन में शामिल हैं। उसी वक्त हाईकोर्ट ने रेलवे को पार्टी बनाकर इलाका खाली कराने का आदेश दिया था, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी को व्यक्तिगत तौर पर नोटिस दिया जाना चाहिए- और स्थानीय निवासियों की भी दलीलें सुनी जानी चाहिए।
2013 से लेक 2023 तक मामला चलता रहा। स्थानीय लोगों की दलीलें सुनने के बाद- नोटिस देने के बाद अब दोबारा से हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उस जमीन को खाली कराने के लिए कहा है- तो अब फिर से सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कूद गया है।
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
जस्टिस संजय किशन कौल और एएस ओका की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कोर्ट ने इस दौरान कहा कि हमने यह आदेश इसलिए पारित किया है क्योंकि अतिक्रण (haldwani encroachment) उन जगहों से हटाया जाना है- जो जगहें कई वर्षों से प्रभावित लोगों के पास है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पुनर्वास के लिए उपाय किए जाने चाहिए क्योंकि बहुत से लोग यहां 60-60 वर्षों से रह रहे हैं।
इसके साथ ही रातों-रात 50 हजार लोगों को उजाड़ा नहीं जा सकता, ऐसे लोगों का हटाया जाना चाहिए जिनका भूमि पर कोई अधिकार नहीं है और रेलवे की आवश्यकता को पहचानते हुए उन लोगों के पुनर्वास की आवश्यकता है। कोर्ट ने इसके बाद उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी।
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अतिक्रमण नहीं हटा तो क्या होगा?
ऐसे में अब हमारे सामने एक सवाल है कि यदि अतिक्रमण (Haldwani encroachment) नहीं हटा तो क्या होगा? यदि अतिक्रमण नहीं हटता है तो इससे यह संदेश जाएगा कि समूह में इकठ्ठे होकर लोग किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा करके रह सकते हैं। 10-20 या फिर 50 साल बाद जब कोई उन्हें उस जमीन से हटाएगा तब तक उनकी जनसंख्या बहुत बढ़ जाएगी- ऐसे में वो भी स्थान खाली करने से इनकार कर देंगे।
पूरे देश के सामने अतिक्रमण को ना हटाया जाना- बहुत बुरा उदाहण बन जाएगा। अभी भी देश के कई हिस्सों में सरकारी जमीनों पर- रेलवे स्टेशन पर- बस स्टैंड पर- लोग अवैध अतिक्रमण करके रह रहे हैं- ऐसे में उन लोगों की हिम्मत और ज्यादा बढ़ेगी।
इसके साथ ही गरीब लोग जोकि मेहनत मजदूरी करके किसी तरह से अपनी गुजर-बसर करते हैं- वो भी इसी तरह से सोचेंगे कि किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा कर लो और जब हटने के लिए कहा जाए तो बेघर होने का हवाला दे दो। ऐसे में देश के सामने गलत उदाहरण ना बने और लोग अपनी मेहनत की कमाई से खरीदे हुए घर को ही अपना घर समझें- इसके लिए अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए।
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