क्या रबींद्रनाथ टैगोर की विरासत पर खतरा है? क्या ममता बनर्जी, रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित प्रतिष्ठित विश्वभारती विश्वविद्यालय को बर्बाद करने पर तुली हैं? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो अमर्त्य सेन और विश्वभारती विश्वविद्यालय के बीच उत्पन्न हुए विवाद के बाद उठ रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी खुले तौर पर अमर्त्य सेन के समर्थन में आकर खड़ी हो गई हैं।
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अमर्त्य सेन पर आरोप
विश्वभारती प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिसकी स्थापना वर्ष 1921 में रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के शान्तिनिकेतन नगर में की थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। अब इसी विश्वभारती यूनिवर्सिटी की जमीन पर अवैध कब्जा करने का मामला सामने आया है और इस प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी की जमीन कब्जाने के आरोप भी ऐसे व्यक्ति पर लगे हैं, जो नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। इनका नाम है अमर्त्य सेन। कहने को तो ये नोबेल पुरस्कार विजेता हैं लेकिन इन पर जिस तरह के आरोप लगते आए हैं वो इनकी भष्ट्राचारी टाइप आदमी वाली छवि को प्रदर्शित करते हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को विश्वभारती विश्वविद्यालय ने एक पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि वह शांति निकेतन में कथित तौर पर अपने “अवैध कब्जे” वाली भूमि के कुछ हिस्सों को तुरंत खाली कर दें। विश्वविद्यालय के वीसी विद्युत चक्रवर्ती के अनुसार उनका आरोप है कि अमर्त्य सेन को कुल 1.25 एकड़ जमीन आवंटित की गई है, लेकिन वह 1.38 एकड़ पर दावा कर रहे हैं। इसके साथ ही पत्र में संकेत दिया गया है कि यदि अमर्त्य सेन की ओर से इसको लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए तो विश्वविद्यालय कानून के तहत कार्रवाई करेगा। इसके बाद से ही यह मामला काफी गर्मा गया है।
भाजपा का विरोध करने के लिए प्रसिद्ध
आपको बता दें कि वामपंथी अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन भाजपा का विरोध करने के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की संपादक भारती जैन ने वर्ष 2019 में अमर्त्य सेन को लेकर एक बड़ा खुलासा किया था। भारती ने मनमोहन सरकार के समय उन्हें मिले पद सहित वे सभी कारण गिना दिए थे जिस वजह से अमर्त्य सेन मोदी सरकार के विरुद्ध बयान देते हैं। भारती जैन ने बताया था कि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर रहते हुए वो अधिकतर समय विदेशी यात्राओं पर ही रहे। उस दौरान UPA सरकार ने उन्हें खूब विदेशी दौरे तो करवाए, साथ ही उन्हें विश्वविद्यालय में सीधी भर्तियां करने का अधिकार भी दे दिया गया था। इस तरह उन्हें अपने 7 चेहतों की फैकल्टीज में नियुक्तियां भी करवा दीं थी। अमर्त्य ने इस पद पर 9 सालों तक राज किया और इस दौरान उन्होंने 2729 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए। इतना खर्च करने के बाद भी वे विश्वविद्यालय में कोई काम नहीं कर रहे थे।
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समर्थन में आई ममता बनर्जी
यहां गौर करने वाली बात यह है कि अमर्त्य सेन पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भी प्रिय हैं। यही कारण है कि इस मामले पर विवाद उत्पन्न होने के बाद तुरंत ही उनका साथ देने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मैदान में उतर आई है। ममता बनर्जी ने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के जमीन विवाद के बीच उनका समर्थन किया है। सीएम ममता ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन से मुलाकात की और कहा कि हमारी सरकार पूरी तरीके से अमर्त्य सेन के साथ खड़ी है। साथ ही ममता बनर्जी ने विश्वभारती विश्वविद्यालय के अमर्त्य सेन द्वारा जमीन कब्जाने वाले आरोप को भी खारिज कर दिया। ममता ने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को उनके जमीन के दस्तावेज भी सौंपे और साथ ही उन्हें ‘जेड प्लस’ सुरक्षा देने का आदेश देते हुए यह भी कहा कि इस मुद्दे पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही ममता यह भी बोलीं कि विश्वभारती को संस्थान चलाने पर ध्यान केंद्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें भगवाकरण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
ममता बनर्जी के इन बयानों का विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा करारा जवाब दिया गया। विश्वविद्यालय की ओर से एक अन्य बयान जारी करते हुए तीखा हमला बोलते हुए कहा गया कि मुख्यमंत्री अपने कानों से सुनती हैं। वो अपने करीबी सहयोगियों की सभी बातों पर भरोसा करती हैं। विश्वभारती एक केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। हम आपकी कृपा के बिना बेहतर हैं, हम प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन के आदि हैं।
देखा जाये तो इस मामले को ममता बनर्जी ने राजनीतिक रूप दे दिया हैं। वो रबींद्रनाथ टेगौर की विरासत को बचाने के बजाए जमीन कब्जाने के आरोपी का साथ देती दिखाई दे रही हैं। इसके लिए वो विश्वविद्यालय की छवि धूमिल करने से भी पीछे नहीं हट रही। ममता बनर्जी, रबींद्रनाथ टैगोर की विरासत की सबसे बड़ी विरोधी भी बन गई हैं, जो बेहद ही चिंताजनक बात है।
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