वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी: चीन का परिचय देना हो तो उसके साथ कई विशेषण अपने आप ही जुड़ जाते हैं- जैसे कि धूर्त, कपटी और अपने पड़ोसी देशों की भूमि हड़पने वाला एक देश। उस पर से विडंबना यह है कि उसकी ऐसी प्रवृत्ति कभी बदलेगी, इसकी दूर-दूर तक कोई संभावना दिखाई नहीं देती है। हमारे ऐसा कहने के पीछे का कारण है चीन का कभी न सुधरने वाला रवैया। वह आए दिन दूसरे देशों को परेशान करने की योजानाएं बनाता, वह सुनिश्चित करता है आज कहां किस देश कि सीमा पर अपना वर्चस्व स्थापित करना है।
टीएफआई ने कुछ समय पहले ही ऐसी भविष्यवाणी की थी कि ड्रेगन अपनी वुल्फ वॉरियर कूटनीति को धार दे रहा है। आज यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हो रही है। हमने बताया था कि चीन पानी को लेकर चल रहे क्षेत्रीय विवादों में स्वयं को स्थापित करने की योजना बना रहा है और अब कुछ दिन बाद ही ड्रैगन ने इस योजना पर काम करना भी प्रारंभ कर दिया है।
धूर्तता का प्रदर्शन
दरअसल, चीन ने वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी के माध्यम से समुद्री अध्याय को प्रारंभ कर दिया है। चीन ने धूर्तता का प्रदर्शन करते हुए हिंद महासागर में लंबी दूरी की मछली मारने की नौकाएं उतार दी हैं। चीन के इस कदम से भारत भी सतर्क हो गया है क्योंकि चीन की मछली मारने की नौका DWF के माध्यम से जासूसी करने की चाल पुरानी है। पिछले कुछ समय में हिंद महासागर के उत्तरी क्षेत्र में चीन की मछली मारने की घटनाएं अचानक ही बढ़ी हैं। भारतीय अधिकारियों ने बताया है कि हाल के दिनों में गैरपंजीकृत चीनी नौकाओं की भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान, ईरान और ओमान के पास गतिविधियां बढ़ी हैं।
कुछ समय पूर्व जानकारों का एक धड़ा बता रहा था कि चीन अपनी वुल्फ वॉरियर विदेश नीति को लेकर नर्म हो रहा है। लेकिन हमने कहा था कि चीन वुल्फ वॉरियर कूटनीति से पीछे नहीं हट रहा है बल्कि उसे और धार दे रहा है। अब चीन के द्वारा लंबी दूरी की मछली मारने की नौकाओं को उतारना उसकी इसी आक्रामक नीति का हिस्सा है।
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वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी है क्या?
प्रश्न यह है कि चीन की ये वुल्फ वॉरियर नीति है क्या? वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी शब्द का उपयोग राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में चीन के लिए बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच किया था। तब पैदा हुई चुनौतियों में अमेरिका के साथ बढ़ रहा व्यापार युद्ध और हॉन्ग कॉन्ग के विरोध प्रदर्शन शामिल थे। वुल्फ वॉरियर शब्द चीन की लोकप्रिय फिल्म से लिया गया है जो कि साल 2015 में आई थी। इस नाम ने चीनी राजनीति के लिए प्रेरणा का काम किया। इस फिल्म की कहानी चीनी राष्ट्रवादियों और चीनी लड़ाकों पर केंद्रित है।
चीन की ‘वुल्फ वॉरियर’ डिप्लोमेसी के बारे में यदि आसान भाषा में कहा जाए तो इसका मुख्य उद्देश्य आक्रामक रूप से अपने प्रतिद्वंदियों का सामना करना है। चीन ने पिछले वर्षों में इसी कूटनीति के द्वारा दुनियाभर के दुर्बल देशों में अपना वर्चस्व कायम किया है। एक प्रकार से देखा जाए तो यह चीन की विदेश नीति का मूल है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इसी नीति के तहत अपने एजेंडे तय करती है।
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नहीं सुधर सकता है चीन
अभी वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी का उपयोग चीन समूद्र में भी कर रहा है। गौरतलब है कि चीन विदेश नीति के मामले में सदैव से ही आक्रामक रवैया अपनाता आया है। इसकी ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति और विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता ‘झाओ लिजियान’ से दुनिया के सभी देश भलीभांति परिचित हैं लेकिन लिजियान का ‘डिपार्टमेंट ऑफ बाउंड्री और ओसन अफेयर्स’ में ट्रांसफर होने के बाद अधिकतर अखबार और विशेषज्ञ कयास लगा रहे थे कि चीन ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति को त्यागकर अब नर्म रवैया अपनाएगा। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हो रहा है, चीन ने खिलाड़ियों को बदला है लेकिन खेल का मैदान और नियम अभी भी वही हैं।
चीन कुछ समय पहले अपने विदेश मंत्रालय में बदलाव किया था जिसमें उसने एक ओर वांग ई को हटाकर किन गैंग को विदेश मंत्री बनाया था। वहीं दूसरी ओर चीन वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेट कहे जाने वाले झाओ लिजियान को विदेश प्रवक्ता से सीमा और समु्द्री मामलों के विभाग में स्थानांतरित कर दिया था। चीन के विदेश मंत्री ‘किन गैंग’ के काम करने के तौर तरीके को देखने के बाद कुछ राजनीतिक विश्लेषक इन परिवर्तनों को वुल्फ वॉरियर कूटनीति में नरमी के संभावित संकेतों के रूप में देख रहे थे। लेकिन हमने ‘वुल्फ वॉरियर’ और ‘झाओ लिजियान’ के बारे में बताकर ये समझाने का प्रयास किया कि कैसे चीन अपनी वुल्फ वॉ़रियर नीति को धार देने जा रहा है।
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झाओ लिजियान
झाओ लिजियान चीन के एक महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारी हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वुल्फ वॉरियर की कूटनीति दुनिया भर में लिजियान के कारण ही चर्चा का विषय बनी थी। चीन में लिजियान को वुल्फ वॉरियर कूटनीति का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है। साल 2015 में लिजियान चर्चा का विषय तब बने जब इन्हें पाकिस्तान के चीनी दूतावास में डिप्टी के तौर पर तैनात किया गया था। साल 2019 तक लिजियान इस पद पर रहे और अधिकतर पाकिस्तानी एजेंडों को आगे बढ़ाते रहे। लिजियान अक्सर पाकिस्तान की स्थानीय संस्कृति की प्रशंसा करते रहते थे और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में चीन के योगदान के बारे में बताते रहते थे। यही नहीं पाकिस्तान में रहने के दौरान लिजियान ने अपने ट्विटर हैंडल पर नाम बदलकर मोहम्मद लिजियान झाओ कर लिया था। हालांकि इसे कुछ समय के बाद हटा दिया था।
कूटनीति का अगला कदम
लेकिन, वांग ई और लिजियान के विदेश मंत्रालय से जाने के बाद कुछ जानकारों की तरफ से ऐसा माना गया कि चीन ‘वुल्फ वॉरियर’ डिप्लोमेसी को छोड़कर विदेश नीति में नर्म रूख अपनाएगा। जिसके बाद हमने ये कहा कि ये कहना अभी शीघ्रता होगी। क्योंकि चीन विस्तारवाद की नीति के साथ काम करता है फिर चाहे वह वन बेल्ट वन रोड का प्रोजेक्ट हो या फिर साउथ चाइना सी और प्रशांत महासागर में लगातार विस्तार करना हो। झाओ लिजियान को सीमा और समुद्री मामलों के विभाग में स्थानांतरित करना चीन की ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति का अगला कदम है। जिसके सहारे वह दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में प्रमुखता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। जहां अब हिंद महासागर क्षेत्र में चीन ने लंबी दूरी की मछली मारने की नौकाएं उतारकर अपनी वुल्फ वॉरियर कूटनीति को प्रारंभ कर दी है।
आपको बता दें कि चीन के DWF खुलेआम मछली पकड़ते हैं और पता लगाने से बचने के लिए अपने पहचान ट्रांसपोंडर को बंद कर देते हैं। ये जहाज न केवल शार्क और कछुओं जैसी दुर्लभ और संरक्षित प्रजातियों की मछलियां पकड़ते हैं बल्कि समुद्र में भारी मात्रा में कचरा भी डालते हैं। इन जहाजों का उपयोग ड्रैगन दूसरे देशों की जासूसी करने के लिए भी करता है। उत्तरी हिंद महासागर में चीनी नौकाओं द्वारा अवैध रूप से मछली पकड़ने की कई घटनाएं हुई हैं। जिसे देखते हुए जानकारों ने यह विचार व्यक्त किया है कि चीन इस माध्यम से जासूसी करने का प्रयास कर रहा है और वह पहले भी ऐसा कर चुका है। बता दें कि ‘डिस्टेंट वाटर फिशिंग’ यानी DWF टाइप की ये चीनी नौकाएं दुनिया के 80 से ज्यादा देशों की समुद्री सीमाओं में इस तरह से मछली पकड़ रही हैं।
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अवैध रूप से चल रही हैं चीनी नौकाएं
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के समुद्रों और महासागरों में करीब 18 हजार चीनी नौकाएं अवैध रूप से चल रही हैं। 2021 में हिंद महासागर में लगभग 392 अपंजीकृत चीनी नौकाओं का पता चला था। जबकि साल 2020 में यह आंकड़ा 379 था।
आपको बता दें कि इंडो-पैसिफिक सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली व्यापारिक जड़ों में से एक है, जिसके कारण हर देश इस क्षेत्र में प्रभुत्व की खोज में है। लेकिन चीन वहां हमेशा उनकी संप्रभुता को चुनौती देता है। हालांकि जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला कर रहे हैं, लेकिन भारत की भागीदारी के बिना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उनके द्वारा कोई भी युद्ध नहीं लड़ा जा सकता है क्योंकि इस महासागर में सबसे बड़ी नौसैनिक और आर्थिक शक्ति भारत ही है। ऐसे में बिना भारत को सम्मिलित किए हिंद महासागर को सुरक्षित रखना और चीन के दखल को कम करने की योजना अथवा इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार की स्थिरता के लिए बनाई गई योजना सफल नहीं हो सकती है।
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आक्रामक वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी
भारत लगातार हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी शक्ति बढ़ाने की दिशा में तेजी से काम कर रहा है। लेकिन दूसरी तरफ हिंद महासागर में ड्रैगन चाल चलने से भी पीछे नहीं हटता। चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है। हिंद महासागर क्षेत्र से जल के माध्यम से होने वाले विश्व व्यापार का 80% व्यापार संभव होता है। यह महासागर तीन महाद्वीपों को जोड़ता है और साथ ही यह दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी और पूर्वी एशिया के साथ ही पूर्वी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बीच होने वाले समस्त व्यापार का केंद्र है।
अब ड्रैगन अपनी आक्रामक वुल्फ वॉरियर नीति के तहत हिंद महासागर में अपनी नई चाल को चलने की योजना पर काम कर रहा है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी भारत के लिए चिंता का विषय है वहीं हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते कदम को रोकने के लिए अब भारत भी तैयार है और चीन पर लगातार अपनी आंखों को गढ़ाए हुए है।
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