इस बात में कोई भी संशय नहीं है कि भारत ने अपनी मजबूत विदेश नीति से अमेरिका जैसे देश को भी झुका दिया है। जो अमेरिका कभी हमें डरा-धमकाकर अपनी बात मानने के लिए विवश करता था, आज वो भारत की शर्तों के अनुसार न केवल चलने को मजबूर हो गया बल्कि अमेरिका के लिए भारत का साथ भी बेहद आवश्यक हो गया है। तभी तो वो भारत से अपने संबंध अच्छे रखने का कोई भी मौका छोड़ नहीं रहा है। इस बात के कई उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिले हैं।
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बाइडेन का मोदी का आमंत्रण
अभी हाल की जानकारी के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को इस साल गर्मी के माह में राजकीय यात्रा पर अमेरिका आने का आमंत्रण दिया है। पीटीआई की रिपोर्ट की मानें तो पीएम मोदी ने जो बाइडेन के आमंत्रण को सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार भी कर लिया गया है और यात्रा तार्किक योजना के प्रारंभिक चरण में है। यह निमंत्रण तब आया है जब जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता भारत के हाथों में आ गई है और जी-20 से संबंधित कई कार्यक्रमों की मेजबानी भी करने वाला है। जिसके तहत सितंबर में एक शिखर सम्मेलन का भी आयोजन किया जाएगा और इसमें अन्य लोगों के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के शामिल होने की उम्मीद की जा रही है।
इतना ही नहीं अभी हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी डील हुई है। इसके लिए भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के बीच मुलाकात भी की गयी। भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस डील से साफ संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका, भारत के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगा, जो बहुत ही कम होता है। खबर है कि क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के तहत अमेरिका, भारत को लड़ाकू विमानों के इंजन की अहम तकनीक देने की योजना बना रहा है। इस डील को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि इसके माध्यम से दोनों देश (भारत और अमेरिका) चीन के सेमीकंडक्टर्स, मिलिट्री इक्विपमेंट्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का मुकाबला कर सकेंगे।
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भारत-फ्रांस के रक्षा संबंध
इन सबको देखकर यही लगता है कि अब अमेरिका भिन्न-भिन्न तरीकों से भारत के नजदीक आना चाहता है। देखा जाये तो इसका एक बड़ा कारण है फ्रांस भी है। दरअसल, भारत और फ्रांस के बीच रिश्ते भी काफी अच्छे हैं और इन्हें और मजबूत करने की कोशिशें की जा रही हैं। खबरों के अनुसार फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों जल्द ही भारत यात्रा पर आने वाले हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सौदा होने की संभावना है।
फ्रांस-भारत के रिश्ते एक डील के बाद नई दिशा की तरफ बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं। रक्षा सूत्रों की मानें तो भारतीय नौसेना ने 26 राफेल एम के लिए कई अरब डॉलर की डील फ्रांस के साथ की है। फ्रेंच मीडिया के अनुसार फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की भारत यात्रा के दौरान ही दोनों देशों के बीच यह डील साइन होने की उम्मीद है। यहां ध्यान देने योग्य बड़ी बात यह है कि इस डील के लिए अमेरिकी जेट F/A-18 सुपर हॉर्नेट को रिजेक्ट किया गया है। इस डील को भारत और फ्रांस के रिश्तों में एक मील का पत्थर करार दिया जा रहा है। फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनैन ने कुछ दिनों पूर्व दिए गए अपने एक बयान में कहा था कि उनका देश भारत में रक्षा उद्योगों के लिए एक राष्ट्रीय औद्योगिक आधार बनाने की प्रक्रिया में भागीदार बनना चाहता है।
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अमेरिका क्यों बैचेन?
यही अमेरिका की बैचेनी की असल वजह है। दरअसल, अमेरिका को ऐसा लगता है यदि भारत और फ्रांस इसी तरह रक्षा सौदे में आगे बढ़ते रहे तो उसके लिए ये उसके लिए सही नहीं होगा। भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध तो पहले से ही काफी अच्छे रहे । इतना ही नहीं भारत और रूस की दोस्ती रक्षा सौदे से कहीं आगे बढ़ चुकी है। पहले अमेरिका तो चीन, फिर रूस और अब फ्रांस के साथ भारत के रक्षा संबंधों से डर है। यदि भारत ऐसे ही अन्य देशों के साथ रक्षा सौदों में आगे बढ़ता रहा, तो वो बहुत पीछे छूट जाएगा, जो अमेरिका के लिए काफी नुकसानदेही साबित होगा। यही कारण है कि अमेरिका, भारत के साथ अपने सम्बन्ध अच्छे कर नजदीक आने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि भारत के लिहाज से देखा जाये तो यह अच्छा ही है। भारत को तो फ्रांस के रूप में एक अवसर मिल गया है, जिसका लाभ उठाकर वो अमेरिका को अपनी शर्तों पर चला सकता है और कोई भी डील अपने अनुसार करने के लिए विवश कर सकता है।
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