Enemy properties बेच 1 लाख करोड़ कमाएगा इंडिया

पैसा ही पैसा होगा”!

Enemy properties India: जाने किस महापुरुष ने कहा था, प्रेम और युद्ध में सब उचित है। अब उस व्यक्ति ने भी सोचा नहीं होगा कि भारत इसे कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लेगा। चीन और पाकिस्तान से दोहरा मोर्चा संभालते हुए भारत ने हाल में जो तरीका चुना है, वह अनोखा भी है, और यह दोनों ही शत्रु देशों के घावों पर नमक रगड़ने समान होगा।

इस लेख में पढिये कि कैसे भारत ने चीन और पाकिस्तान से निपटने हेतु एक अनोखी नीति अपनाई, जिससे उसे जबर्दस्त धन लाभ मिलेगा। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

12000 से अधिक Enemy properties बेचेगा India

हाल में एक महत्वपूर्ण निर्णय के अनुसार गृह मंत्रालय ने ‘शत्रु’ प्रॉपर्टी (Enemy Property) को बेचने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। ऐसी कुल India में 12,611 Enemy properties को चिह्नित किया गया है जो 20 राज्यों में फैली हैं। अब तक सरकार ने केवल चल शत्रु संपत्ति (Movable Enemy Property) जैसे सोना और शेयरों को बेचकर ही 3,400 करोड़ रुपये की कमाई की है।

हालांकि, अब सरकार मकान, जमीन व अन्य अचल संपत्तियों को बेचने के लिए कमर कस चुकी है। इनकी बिक्री के संबंध में त्वरित निर्णय लेने के लिए सरकार ने 2020 में एक मंत्री स्तरीय समिति का गठन किया था जिसके अध्यक्ष गृह मंत्री अमित शाह हैं। इन्हें बेचकर सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये की कमाई होने की उम्मीद है, और इस बिक्री को ऑनलाइन माध्यम से सम्पन्न किया जाएगा।

रोचक बात यह है कि इनमें सबसे ज्यादा शत्रु प्रॉपर्टी उत्तर प्रदेश में हैं, जहां ऐसी 6255 अचल संपत्तियां हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 4,088, दिल्ली में 659, गोवा में 295, महाराष्ट्र में 208, तेलंगाना में 158, गुजरात में 151, त्रिपुरा में 105, बिहार में 94, मध्य प्रदेश में 94, छत्तीसगढ़ में 78 हरियाणा में 71, केरल में 71, उत्तराखंड में 69, तमिलनाडु में 67, मेघालय में 57, असम में 29, कर्नाटक में 24, राजस्थान में 22, झारखंड में 10, दमन-दीव में 4 और आंध्र प्रदेश व अंडमान-निकोबार में 1-1 शत्रु प्रॉपर्टी है।

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1962 और 1965 युद्ध से है अनोखा नाता

Enemy properties India का उन सभी युद्धों से कनेक्शन है, जिसमें भारत ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया, चाहे वह चीन के विरुद्ध हो, या फिर पाकिस्तान के विरुद्ध। 1965 और 1971 के युद्ध के बाद भारत से पाकिस्तान में बड़ी संख्या में पलायन हुआ। ऐसे में जो लोग भारत में अपने घर व फैक्ट्रियां छोड़कर पाकिस्तान के नागरिक बन गए उनकी संपत्तियों को भारतीय रक्षा अधिनियम 1962 के तहत सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया। इन्हीं संपत्तियों को ‘शत्रु प्रॉपर्टी’ कहा जाता है।

यह बात केवल उन पर ही लागू नहीं हुई जो पाकिस्तान गए बल्कि 1962 के युद्ध के बाद चीन में बसने वाले भारतीयों की संपत्ति को भी शत्रु प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया। परंतु इस पर कुछ समय के लिए विराम भी लगा था। असल में 1966 में पाकिस्तान के साथ इस पर एक समझौता करने का भी प्रयास किया गया। 1966 में ताशकंद में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि उन लोगों कि संपत्तियां वापस की जाएंगी जो युद्ध के बाद भारत-पाकिस्तान में फंस गई है।

परंतु यह समझौता कभी पूर्ण रूप से लागू इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि पाकिस्तान ने 1971 में अपनी तरफ की उन सारी संपत्तियों को बेच दिया जो भारत आ चुके भारतीयों की थी, जिसमें संभवत: 1947 से पूर्व अविभाजित भारत के पंजाब, सिंध जैसे प्रांत के भारतीयों की भी संपत्ति थी।  इसके बाद भारत ने भी समझौते से अपने पैर पीछे खींच लिए। फिलहाल जो 12,611 शत्रु प्रॉपर्टी हैं, उनमें से 12,485 पाकिस्तानी नागरिकों और 126 चीनी नागरिकों की है।

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क्या “जिन्ना हाउस” जैसी संपत्ति भी बिकेंगी ?

अब ऐसे में एक प्रश्न ये भी उठता है : अगर वर्तमान में India 12000 से अधिक Enemy properties बेच रहा है, तो क्या वह “जिन्ना हाउस” जैसी संपत्तियों की बिक्री भी करेगा, जिसपे आज भी पाकिस्तान दावा करता है? इसपर गृह मंत्रालय ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है। परंतु जिस गति से भारत सरकार अन्य संपत्तियों को बेच रहा है, उस हिसाब से ये पूर्णत्या असंभव भी नहीं है। इसके अतिरिक्त इस सम्पूर्ण प्रकरण से एक बात और स्पष्ट होती है : अब भारत पाकिस्तान और चीन को केवल युद्ध मोर्चे पर ही नहीं, अपितु कूटनीति के मोर्चे पर भी ऐसे घाव देने में सक्षम है, जिसके बारे में चाहकर भी दोनों देश कुछ नहीं बता पाएंगे!

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