अगर कांग्रेस पार्टी सारा समय एक ही व्यक्ति को पॉलिश करने में ना लगाती तो स्थिती शायद कुछ बेहतर होती। अगर कांग्रेस पार्टी एक व्यक्ति की लॉचिंग और रिलॉचिंग करने का विफल प्रयास नही करती तो शायद पार्टी और देश के लिए अच्छा होता। अगर कांग्रेस अपनी आत्मुग्धता से बाहर निकल सशक्त पार्टी होने की राह पर चलने का प्रयास करती तो शायद अच्छा होता। परतुं मुद्दे की राजनीति और कांग्रेस पार्टी का नाता सदियों से ही विपरीत रहा है। पार्टी के इन्हीं पदचिन्हों पर चलते हुए वर्षों से राहुल गाँधी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैँ। अब धीरे धीरे कांग्रेस के अस्तित्व हीन पार्टी बनने की राह पर निकल चुकी है और इसका पूर्ण श्रेय नही तो आधा श्रेय कांग्रेस के “युवराज” राहुल गाँधी को ही जाता है। यही कारण है कि सशक्त विपक्ष तो छोड़िए, एक सशक्त राजनीतिक पार्टी के रूप में कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में है। और यही कारण है कि आज के समय में राजनितिक मुद्दे तो छोडिए कांग्रेस के लिए खुद को डिफेंड करना भी कठिन प्रतीत हो रहा है।
इस लेख में पढिये राहुल गांधी के कर्मकांडों को और कैसे कांग्रेस पार्टी ने एक आदमी को तराशने के चक्कर पूरी पार्टी का अस्तित्व लगभग समाप्त सा कर लिया है।
“हर चोर मोदी क्यों” पर बुरा फंसे राहुल
खुद को पीड़ित दिखाकर सहानुभूति लूटने का कांग्रेस पार्टी का पुरानी पद्वति रही है। परंतु यह तरीका बार बार सफल नहीं होता। हाल ही में गुजरात के सूरत सेशन कोर्ट ने राहुल गाँधी को पीएम मोदी पर दिए एक बयान के मामले में दोषी ठहराया है। कोर्ट ने उन्हें 2 साल की सजा सुनाई। हालाँकि उन्हें तुरंत जमानत भी मिल गई। राहुल गाँधी ने 2019 में कर्नाटक की एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, “सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?” इस बयान के बाद राहुल गाँधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था।
परंतु वो बयान था क्या?13 अप्रैल 2019 को राहुल गाँधी ने कहा था, “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी इन सभी के नाम में मोदी लगा हुआ है। सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा होता है।”
इस बयान के बाद भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ सूरत में मामला दर्ज कराया था। राहुल गाँधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज करवाया था, जो आपराधिक मानहानि से संबंधित है। 4 साल के बाद अदालत ने मामले में राहुल गाँधी को दोषी पाते हुए सजा सुना दी। अगर सज़ा लागू होती, तो राहुल गांधी की संसद सदस्यता खतरे में आ जाती। परंतु इसके बारे में फिर कभी।
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ये पहला मामला नहीं, और न ही होगा अंतिम मामला….
अब आते हैं कांग्रेस के निचले लेवेल कि राजनीति पर, राहुल बाबा दोषी क्या सिद्ध हुए, कांग्रेस का सोशल मीडिया उन्ही की चमचागीरी में पट गया। कुछ कांग्रेस के नेता राजकुमार राहुल गाँधी की तुलना भगत सिंह से करने लग गए कहने लगे कि भई आज क्रांति का दिन है, उस समय शहीद भगत सिंह को अंग्रेजों ने सजा दी थी , आज राहुल गांधी दोषी बनाए गए हैं। लेकिन राहुल गाँधी को 2 वर्ष की सजा ऐसे ही तो नही मिल गई। पहले जो मुंह में आए वो बोलों और फिर पीडित बनने की घटिया राजनीति करो, और सिस्टम, प्रशासन, वो क्या होता है?
अब भले ही कांग्रेस और वामपंथी गाँधी परिवार के राहुल गांधी को पीड़ित दिखाने में लगे हुए हो, परंतु देश के लोग भली भांति इनके पैंतरों से परिचित है। इससे पूर्व में भी राहुल को अपने बड़बोलेपन के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़े थे। 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने ‘चौकीदार चोर है’ का नारा दिया। साथ ही कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार चोर है।
लेकिन बाद में ये ही नारा कांग्रेस पर भारी पड़ गया था। देशभर के मोदी समर्थकों ने मैं भी चौकीदार की मुहिम छेड़ दी थी। यानि इसमें भी राहुल गाँधी ने भाजपा का प्रचार करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की। इतनी ही नहीं कांग्रेस के राजकुमार ने मानहानि का केस भी लगवा लिया, वो अलग बात थी कि इन्हे ही सुप्रीम कोर्ट से क्षमा याचना करने पर विवश होना पड़ा। राहुल ने अपने माफीनामे में कहा था, “कोर्ट का अपमान करने की न तो मेरी कोई मंशा थी और न ही मैंने जानबूझकर ऐसा किया। मैं अदालत की न्यायिक प्रक्रिया में किसी तरह की बाधा नहीं पहुंचाना चाहता। भूलवश मुझसे ये गलती हुई। लिहाजा इसके लिए मैं माफी चाहता हूं”।
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बिन “बेल” सब सून….
इसके अलावा चाहे नेशनल हेराल्ड हो या अगस्टा वेस्टलैंड, सभी को पता है कि कैसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी बेल के सहारे अपनी राजनीति चला रहे हैं। वहीं नेशनल हेराल्ड केस से तो सभी परिचित ही हैं कि किस प्रकार सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी इस मामले में फंसे हुए हैं और ईडी इसकी जांच कर रही है।
ऐसे ही राहुल गाँधी पर एक मामला महाराष्ट्र के भिवंडी में चल रहा है। इसमें आरोप है कि 6 मार्च 2014 को एक चुनावी रैली में कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया था कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे आरएसएस का हाथ था। भिवंडी के स्थानीय आरएसएस कार्यकर्ता राजेश कुंते ने दर्ज कराया था। कुंते ने दलील दी थी कि राहुल गांधी के बयान से आरएसएस की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है।
ऐसे ही राहुल गांधी पर महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान विनायक दामोदर सावरकर पर भी कथित तौर पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप है। एडवोकेट नृपेंद्र पांडेय ने लखनऊ की अदालत में ये केस दर्ज कराया था. उन्होंने आईपीसी की धारा 156(3) के तहत केस दर्ज कराया था।
इसके अतिरिक्त राहुल ने अपने हाथों से अपना मार्ग अवरुद्ध किया है। वो कैसे? स्मरण है वो अध्यादेश, जिसमें राजनेताओं को आपराधिक मुकदमों से सुरक्षा मिल रही थी? सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द करने के फैसले के खिलाफ 2013 में केंद्र की तात्कालिक यूपीए-2 सरकार ने सदन में एक बिल पेश किया था। कोर्ट के फैसले के बाद उस वक्त कानून मंत्री रहे कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जनप्रतिनिधि एक्ट में बदलाव के लिए विधेयक पेश किया था। सितंबर 2013 में सरकार ने इसे अध्यादेश के तौर पर लागू करने की कोशिश की। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत दोषी एमपी या एमएलए की सदस्यता फौरन रद्द नहीं हो सकती थी, यानि दोषी सिद्ध होने के बाद भी वह संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता था।
27 सितंबर 2013 को इसी अध्यादेश के प्रारंभिक ड्राफ्ट को राहुल गाँधी ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नॉनसेंस बताते हुए फाड़ दिया था। तब राहुल ने कहा था, “इस कानून को और मजबूत किए जाने की जरूरत है।” बाद में इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया था। अब लोगों का कहना है कि यदि राहुल उस बिल को पास हो जाने देते तो आज उनकी संसद सदस्यता पर खतरा नहीं पैदा होता।
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इन्ही सब कारणों से राहुल गांधी अपने पार्टी से अधिक भाजपा को फायदा पहुंचाते आए हैं। भाजपा तो भाजपा, स्वयं ममता बनर्जी जैसे नेता भी मानते हैं कि राहुल गांधी भाजपा के “स्टार प्रचारक” हैं, जो अपनी और अपनी पार्टी की मिट्टी पलीद करा लेते हैँ और फिर बाद में जब उनके खिलाफ केस ठोक दिए जाते हैं तो या तो पूरी कांग्रेस पार्टी गाँधी परिवार के बचाव मैदान में उतर जाती है। यही कारण है एक ही व्यक्ति पूरी कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है।
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