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देश के बजट का 15% हिस्सा मुस्लिमों के नाम करना चहाती थी कांग्रेस

PM मोदी ने बताया है कि मनमोहन सिंह की सरकार देश के बजट का 15% मुस्लिमों को देना चाहती थी, लेकिन विपक्ष में बैठी BJP के कारण ऐसा नहीं कर पाई।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
16 May 2024
in राजनीति, समीक्षा
कांग्रेस, भाजपा, पीएम मोदी, लोकसभा चुनाव 2024, मुसलमान, मनमोहन सिंह,
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कांग्रेस का मुस्लिम समुदाय के प्रति प्रेम जगजाहिर है। समय-समय पर ऐसे वाकये निकलकर आते रहे हैं जिनसे समझ आता है कि इस पार्टी का उद्देश्य इस देश में एक केवल एक समुदाय के लोगों का विकास करना था। हिंदू इनके लिए कुछ नहीं थे। आज भले ही कांग्रेस पार्टी लंबी-लंबी न्याय यात्रा करके ‘मोहब्बत की दुकान’ खोले रखने का दावा करती हो लेकिन इतिहास बताता है कि उन्होंने सत्ता में आकर सिर्फ मुस्लिमों पर अपना प्यार लुटाया है।

देश के बजट का 15% हिस्सा मुस्लिमों के नाम

इस दिशा में हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस की एक पोल खोली है। पीएम मोदी ने बताया है कि मनमोहन सिंह की सरकार पूरे देश के बजट का 15% मुस्लिमों को देना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं कर पाई क्योंकि विपक्ष में बैठी भाजपा ने उनका विरोध किया। पीएम ने ये बात इसलिए बताई ताकि लोग कांग्रेस की मंशा के खिलाफ सजग हो सकें।

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किसी भी देश की सरकार का काम वहाँ के हर वर्ग के विकास का होता है न कि ऐसा कोई बजट बनाने का जिससे एक समुदाय फलता-फूलता रहे और अन्य वर्ग संसाधनों के लिए लललाते रहें, कांग्रेस ने फिर भी ऐसा करने की सोची और हैरानी इस बात की है कि ऐसी हरकतें करने के बाद कांग्रेस आज मोदी सरकार पर हिंदू-मुस्लिम करने का आरोप लगाती है। सोचिए जिन लोगों के दिमाग में देश के बजट का एक पूरा हिस्सा एक समुदाय को देने की बात आए उनके भीतर उस समुदाय के प्रति कितना प्रेम होगा।

मुस्लिमों का संपत्ति पर पहला अधिकार

वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुलासा इतना भी हैरान करने वाला नहीं है। पिछले दिन ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की वीडियो वायरल हुई थी। उस वीडियो में मनमोहन सिंह कहते नजर आ रहे थे कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का होना चाहिए। 2006 में दिए गए पूर्व पीएम के इस बयान की क्लिप वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर खूब हंगामा हुआ। 

कांग्रेसी और वामपंथी कहने लगे कि मनमोहन सिंह के बयान को तोड़-मरोड़ के पेश किया जा रहा है वो राष्ट्रीय विकास परिषद में अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर जनता को संबोधित कर रहे थे। लेकिन हकीकत तो यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने बयान में ‘विशेष तौर पर मुस्लिम’ शब्द का इस्तेमाल किया था।

मनमोहन सिंह के शब्द थे– अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए योजनाओं को नए सिरे से तैयार करने की जरूरत है। हमें ये सुनिश्चित करने के लिए नई योजनाएँ बनानी होंगी कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिमों को विकास में समान भागीदारी मिले। संसाधनों पर पहला हक उन्हीं का होना चाहिए।

अब इस बयान में कहाँ दिख रहा है कि पूर्व पीएम ने मुस्लिम शब्द नहीं बोला… उलटा जैसा कांग्रेस दिखाने की कोशिश कर रही थी कि बयान अल्पसंख्यकों के हित के लिए था, इससे तो साफ पता चलता है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों की लिस्ट में मुस्लिमों को टॉप पर मानती है, जबकि ये बात किसी से छिपी नहीं है कि मुस्लिम देश की सबसे बड़ी दूसरी आबादी हैं। अगर उन्हें जनसंख्या आँकड़े देख कम समझा जा सकता है तो फिर जैन, पारसी, बौद्ध, सिख या दलित इस प्राथमिकता में क्यों नहीं हैं।

असल बात ये है कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए हमेशा से एक हथकंडा आजमाया था जिसमें हिंदुओं के प्रति घृणा फैलाना और मुस्लिम को रिझाने का काम होता था। सरकार जब-जब बनती तो ये काम और तेजी से होता। कभी किसी योजना के बहाने तो कभी किसी वक्तव्य में। आपने ऊपर जो दो उदाहरण समझें उससे तो आपको सिर्फ ये पता चल रहा होगा कि कांग्रेस का झुकाव मुस्लिमों के प्रति कितना था। 

लेकिन, कांग्रेस का एक कदम ऐसा भी है जिसे यदि आप जान लेंगे तो आपको पता चलेगा कि कांग्रेस का प्रेम जहाँ मुस्लिमों के लिए अथाह था तो वहीं उनका इरादा हिंदुओं को एकदम लिस्ट में एकदम नीचे करने का था। इतना नीचे कि कांग्रेस समझती थी कि देश में हो रहे सांप्रदायिक अपराधों में बिन जाँच के सिर्फ हिंदू दोषी माना जाना चाहिए कोई मुस्लिम नहीं। अपनी इस सोच को देश में लागू करने के लिए वह एक कानून लाने की भी फिराक में थे।

कांग्रेस लाती हिंदू विरोधी कानून

जी हाँ, ये अचंभित होने वाली बात नहीं है। अगर विपक्ष ने विरोध न किया होता तो शायद आज कांग्रेस पूरे देश में इस कानून को लागू कर चुकी होती। ये बात है 2011 की। उस समय पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी राष्ट्रीय सलाहकार समिति की मुखिया होती थीं और सरकार की कमान पर्दे के पीछे से चलाती थीं।

उसी दौरान यूपीए सरकार एक बिल लाई थी। इसका नाम- सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम (न्याय एवं क्षतिपूर्ति) विधेयक था। इसका पहला मकसद था कि देश से हिंदूवादी संगठनों का प्रभाव खत्म हो सके और अल्पसंख्यक वोटर हमेशा उनके प्रति इमानदार रहें।

इस बिल को बनाने में एक से बढ़कर एक हिंदू विरोधी लोग शामिल थे। जैसे हर्ष मंदर, जॉन दयाल, तीस्ता सीतलवाड़, सैयद शहाबुद्दीन, नियाज फारूकी, शबनम हाशमी आदि-आदि। इन सब लोगों ने मिलकर हिंदूविरोधी बिल तैयार किया था। इसमें साफ दावा था कि एक समूह के लिए सुरक्षा की सुरक्षा के लिए इसे लाया जा रहा था। अब जिस तरह से कांग्रेस का मुस्लिम प्रेम है उसे देख पता चलता है कि बिल में किस समूह की बात की जा रही होगी।

अगर ये बिल देश में कानून का रूप ले लेता तो आप समझ सकते हैं कि देश में हो रहे दंगों में सिर्फ हिंदू ही जेल में जाते, अल्पसंख्यकों से घृणा के आरोप में हिंदुओं को तरह-तरह से प्रताड़ित करने का काम चलता रहता। सामान्य झगड़े में इस कानून का प्रयोग करके हिंदुओं को निशाना बनाया जाता। 

कांग्रेस इस बिल के दुष्परिणाम अच्छे से जानती थी मगर फिर भी उन्होंने ऐसा कदम उठाने की हिम्मत की, वो भी किसके लिए सिर्फ मुस्लिमों के लिए? तब, अरुण जेटली से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। नीतीश कुमार और ओडिशा से नवीन पटनायक इसके विरोध में आए थे। तब जाकर, कहीं कांग्रेस इसे लागू करने में असफल हुई।

कांग्रेस सत्ता में आती तो क्या होता हिंदुओं का हाल

आज देश में नरेंद्र मोदी सरकार है तो कांग्रेस कहती है कि वो हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं, जबकि ये बात सब जानते हैं कि मोदी सरकार सबका साथ-सबके विकास वाले दृष्टिकोण से देश को आगे बढ़ाने पर लगी है। अगर ऐसा नहीं होता तो देश में तीन तलाक नहीं खत्म होता, जो कि मुस्लिम महिलाओं के लिए कोढ़ जैसा था। 

मगर, कांग्रेस काल में ऐसा नहीं था। एक बार कल्पना करके देखिए कि देश का नागरिक होने के नाते आपको कैसे लगेगा कि देश के लिए आए बजट में से कटौती करके किसी और समुदाय को दे दिया जाए, या फिर देश की संपत्ति पर आपके अधिकार से पहले किसी और समुदाय का पहला अधिकार बताया जाए और जब आप ऐसी चीजों का विरोध करें तो कहा जाए कि आप एक समुदाय से घृणा करते हैं इसलिए आप अपराधी हैं। 

ये सारी कल्पनाएं सच हो जाती अगर 2014 में एक बार फिर से यूपीए सरकार आती। कोई आपसे आपके धर्म, आस्था को पूछने नहीं आता, न मंदिरों के पुनरुद्धार पर कोई काम होता। अगर कुछ होता तो सिर्फ ये कि हिंदुओं की आने वाली पीढ़ियाँ इस बात को समझ लेती कि उनकी महत्ता इस ‘समूह’ के आगे कुछ नहीं।

और पढ़ें:- UPA शासन काल में दूरदर्शन के पत्रकारों को नहीं पहनने दिया जाता था कलावा।

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