दिल्ली, जिसे प्राचीन में इंद्रप्रस्थ भी कहा गया है, एक ऐसी जगह है जिसका वैभव आज भी बरकरार है। काल के थपेड़ों को सहते हुए वह कई बार बर्बाद हुई और फिर आबाद हुई। कई क्षत्रिय राजवंशों की राजधानी रही तो कई इस्लामी आक्रांताओं के विध्वंस का शिकार भी। इन सबके बावजूद राजधानी के रूप में दिल्ली का पुराना वैभव कम नहीं हुआ। हालाँकि, ब्रिटिश काल में भारत की राजधानी कलकत्ता (आज का कोलकाता) हुआ करती थी, लेकिन बाद में राजधानी को दिल्ली हस्तांतरित कर दिया गया।
खाली कराई गई सवा लाख एकड़ जमीन
दरअसल, 12 दिसंबर का दिन दिल्ली के आधुनिक इतिहास से जुड़ा हुआ है। 12 दिसंबर 1911 को ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की घोषणा की थी। उनके आगमन पर ब्रिटिश सरकार ने ‘दिल्ली दरबार’ का आयोजन किया था। उनके स्वागत में दिल्ली दरबार का यह आयोजन आज के बुराड़ी इलाके में की गई थी। उस समय देश-दुनिया के प्रमुख हस्तियों सहित 80 हजार से अधिक लोग जुटे थे। जिस जगह पर दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया था, वहाँ वर्तमान में 57 एकड़ में फैला कोरोनेशन पार्क है।
उस समय किंग जॉर्ज पंचम के साथ इंग्लैंड की महारानी मैरी भी भारत आई थीं। वे ब्रिटेन के पहले राजा थे, जो भारत आए थे। दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की घोषणा करते हुए जॉर्ज पंचम ने कहा था, “हमें भारत की जनता को बताते हुए खुशी हो रही है कि सरकार और उसके मंत्रियों की सलाह पर देश का प्रशासन बेहतर ढंग से चलाने के लिए ब्रिटेन की सरकार भारत की राजधानी को कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा करती है।”
किंग जॉर्ज के भारत आने से पहले दिल्ली में एक पूरा अस्थायी शहर बसा दिया गया था। साफ-सफाई से लेकर हर तरह की उत्तम व्यवस्था की गई थी। पूरा शहर जगमगा रहा था। यहाँ बिजली की खास व्यवस्था की गई थी। पूरा इलाका ऐसे जगमगा रहा था, जैसे दिवाली हो। पूरे इलाके की नाकाबंदी कर दी गई थी। हर तरफ पुलिस की सख्त निगरानी थी, ताकि किंग जॉर्ज के सामने को विरोध ना कर सके। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे कई लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था।
किंग जॉर्ज की घोषणा के बाद अंग्रेजों ने कलकत्ता से राजधानी दिल्ली हस्तांतरित करने की शुरुआत कर दी। दिल्ली तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए करीब 128 गाँवों को चुना गया। इन गाँवों के लोगों को आसपास भेजा गया और उनके लगभग सवा लाख एकड़ जमीन को खाली कराया गया। इसके बाद साल 1914 में इसमें मेरठ के 65 गाँवों को भी शामिल कर लिया गया। इस तरह शहर का क्षेत्रफल और बढ़ गया। उस समय जमीन के मालिकों को 150 रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा देने की बात अंग्रेजों ने की थी। कहा जाता है कि कई लोगों को ये मुआवजा मिला नहीं है। लोगों से गाँव खाली कराने के बाद यहाँ अंग्रेज अधिकारियों के रहने और उनके काम करने के लिए 1913 में यहाँ आधुनिक निर्माण काम शुरू किया गया।
बेकर और लुटियन और शोभा ने मिल दिल्ली को तराशा
नई दिल्ली को बसाने के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर और सर एडविन लुटियंस को बुलाया गया। उन्होंने नए शहर की योजना बनाई। इमारतें बनाने के लिए पत्थर आदि लाने का काम तब के ठेकेदार एवं महशूर लेखक खुशवंत सिंह के पिता सरदार शोभा सिंह को दिया गया था। यहाँ लगभग 30 हजार मजदूरों को लगाया गया। सर हरबर्ट बेकर और सर एडविन लुटियंस की टीम को शहर को बनाने के लिए चार साल का समय दिया गया। अंग्रेजों ने यहाँ वायसराय हाउस और नेशनल वॉर मेमोरियल जैसी प्रसिद्ध इमारतें बनावाईं। वायसराय हाउस को आज हम राष्ट्रपति भवन और वॉर मेमोरियल को इंडिया गेट के नाम से जानते हैं। दोनों ब्रिटिश आर्टिटेक्ट ने कनॉट प्लेस सहित कई इलाकों का डिजाइन बनाया और उसे तैयार किया। तब संसद तथा नॉर्थ और साउथ ब्लॉक का डिज़ाइन लुटियंस के साथी बेकर ने तैयार किया था।
माधोगंज गाँव में एक सिटी सेंटर बसाया गया, जिसे आज कनॉट प्लेस कहा जाता है। कनॉट प्लेस में गोलाई में बने ब्लॉक और खंभों क आयडिया डब्ल्यू एच निकोलस ने दिया था। ये सब कुछ करने में लगभग 20 साल गए। इसके बाद औपनिवेशिक भारत के वायसराय एवं गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने 13 फरवरी 1931 को अधिकारिक रूप से दिल्ली का राजधानी के रूप में उद्घाटन किया।
दिल्ली को राजधानी बनाने की कई वजहें थीं। इनमें से एक प्रमुख वजह ये थी कि मेरठ में हुआ 1857 का विद्रोह के बाद ये इलाका विद्रोह का केंद्र बन गया था। कोलकाता से इन इलाकों को साधना अंग्रेजों के लिए मुश्किल हो रहा था। इसके एक अन्य कारण में बंगाल का विभाजन भी था। साल 1905 में बंगाल का बंटवारा कर दिया गया। यह सब मुस्लिमों की तुष्टिकरण करने के लिए और उनके लिए एक बहुमत वाला प्रांत बनाने के लिए ऐसा किया गया था। तब लॉर्ड कर्जन वायसराय थे। कर्जन के निर्णय के बाद अंग्रेजों के खिलाफ देश में विद्रोह शुरू हो गया। उस समय कलकत्ता (अब कोलकाता) भारत की राजधानी हुआ करती थी। वहाँ इसके विरोध में बंग-भंग आंदोलन शुरू हो गया। यह विद्रोह शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। इस वजह से भी अंग्रेजों ने कलकत्ता से राजधानी स्थानांतरित किया।
कहा जाता है कि दिल्ली कोई भी इस पर ज्यादा समय तक राज नहीं कर सकता। दिल्ली को राजधानी घोषित करने के 36 साल के भीतर अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। दिल्ली के बारे में यह मत है कि यह 16 बार उजड़ी और बसी है। इसे अनेक साम्राज्यों की कब्र भी कहा जाता है।
दिल्ली का इतिहास और उसकी आधुनिक नींव
कहा जाता है कि महाभारत में हारने के बाद पांडवों ने कौरवों से सिर्फ पाँच गाँव माँगा था। इन पाँच गाँवों को सँवार कर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के आह्वान पर विश्वकर्मा आए और फिर मायासुर को बुलाकर इसका रातों-रात निर्माण कराया गया। इसका नाम इंद्रप्रस्थ इसलिए रखा गया, क्यों कि यह भगवान इंद्र के स्वर्ग के समान सुंदर था। कहा जाता है कि दिल्ली का पुराना किला ही वह स्थान है, जहाँ पांडवों के लिए मायासुर ने महल बनाया था। आज़ादी के समय पुराने किले के पास ही दिल्ली में इंद्रपत नाम का एक गाँव भी था, जो इस बात की गवाही देता है कि आज की दिल्ली वही इंद्रप्रस्थ है।
अगर आधुनिक इतिहास की मानें तो दिल्ली को तोमर राजवंश के क्षत्रिय महाराजा अंगपाल तोमर ने 736 ईस्वीं में सबसे पहले दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया था। महाराजा अनंगपाल तोमर ने महरौली के पास लालकोट किले का निर्माण कराया था, जिसे आज भी देखा जा सकता है। तोमरवंश के क्षत्रिय राजाओं के बाद लालकोट पर चौहान वंश के क्षत्रिय महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने शासन किया। उन्होंने लालकोट का नया नाम रायपिथौरा रख दिया।
बाद में मुहम्मद गोरी का गवर्मुनर कुतुबद्दीन ऐबक यहाँ का गवर्नर रहा। साल 1206 में मुहम्मद गौरी की मौत के बाद ऐबक ने खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया और वह दिल्ली से शासन करने लगा। गुलाम वंश के बाद खिलजी वंश से होते हुए मुगल वंश ने यहाँ से शासन किया। बाद में यहाँ पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। शुरुआत में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कोलकाता बनाई थी, लेकिन समय एवं स्थिति को देखते हुए राजधानी दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। खास बात ये रही कि राधानी के रूप में दिल्ली हर बार नई जगह बनी (हालाँकि, आज की दिल्ली की सीमा में ही) और हर शासक ने यहाँ अपने हिसाब से इमारतें बनवाईं और उसका नाम दिया।