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इंडोनेशिया के राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि, क्या हैं इसके मायने?

भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे

Shiv Chaudhary द्वारा Shiv Chaudhary
22 January 2025
in भू-राजनीति, विश्व
दुनिया में सबसे बड़ा मुस्लिम देश होने के बावजूद इंडोनेशिया के लोगों पर हिंदू संस्कृति का गहरा प्रभाव है

दुनिया में सबसे बड़ा मुस्लिम देश होने के बावजूद इंडोनेशिया के लोगों पर हिंदू संस्कृति का गहरा प्रभाव है

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26 जनवरी 2025 को भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। देश के संविधान को अपनाने के साथ भारत के गणतंत्र की यात्रा शुरू हुई थी और इस बार आयोजन के केंद्र में सैन्य क्षमताएं, सांस्कृतिक विविधता और लोकतांत्रिक मूल्य होंगे। 2025 के गणतंत्र दिवस का थीम ‘स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास’ है, जो भारत के आधुनिक बनने की यात्रा और इसकी ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाता है। 2025 में भारत के 76वें गणतंत्र दिवस के मौके पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होंगे।

सुबिआंतो 25-26 जनवरी के दौरान भारत की राजकीय यात्रा पर आएंगे और अक्टूबर 2024 में पद संभालने के बाद राष्ट्रपति के तौर पर यह उनकी पहली भारत यात्रा होगी। 26 जनवरी 1950 को जब देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था तो इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो उस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। इंडोनेशिया, भारत की एक्ट ईस्ट नीति में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और सुबिआंतो की इस यात्रा को रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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भारत-इंडोनेशिया संबंधों का विकास

भारत की विदेश नीति के लिए इंडोनेशिया एक महत्वपूर्ण देश है। इंडोनेशिया भारत के लिए एक महत्वपूर्ण देश है। दोनों देशों के बीच दो हज़ार साल से ज़्यादा पुराने सांस्कृतिक, व्यापारिक और धार्मिक संबंध रहे है। हिंदू, बौद्ध और इस्लामी परंपराओं से प्रभावित इंडोनेशिया भी भारत की तरह ही एक बहु-जातीय समाज है। रामायण और महाभारत का भी इंडोनेशियाई लोकगीत, कला और रंगमंच पर प्रभाव रहा है जिससे दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंध और मज़बूत हुए हैं। दोनों देशों के बीच संबंध मज़बूत भी होते जा रहे हैं।

सुबिआंतो को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाया जाना ना केवल भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को दिए जा रहे महत्व को दिखाता है बल्कि इससे दक्षिण-पूर्व एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ भी भारत के संबंध मज़बूत होने का आधार बनता है। इंडोनेशिया सांस्कृतिक संबंधों के अलावा भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार और आसियान क्षेत्र का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2023-24 के दौरान लगभग 26.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है। इंडोनेशिया से भारत कोयला, क्रूड पाम ऑयल, रबर और खनिज आयात करता है। वहीं, दूसरी ओर इंडोनेशिया रिफाइन पेट्रोलियम उत्पाद, कमर्शियल वाहन, दूरसंचार उपकरण, कृषि और इस्पात उत्पाद आयात करता है। इंडोनेशिया में अलग-अलग क्षेत्रों में 30 से अधिक संयुक्त उद्यम संचालित हो रहे हैं।

रणनीतिक और रक्षा सहयोग

भारत और इंडोनेशिया के बीच रणनीतिक संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। दोनों देशों का संयुक्त उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के रक्षा संबंधों में भी वृद्धि हुई है। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जकार्ता दौरे के दौरान ‘सम्पूर्ण रणनीतिक साझेदारी’ और ‘साझा समुद्री सहयोग दृष्टिकोण’ पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस साझेदारी में रक्षा सहयोग, समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर ज़ोर दिया गया है।

इंडोनेशिया ने भारत से लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA), आकाश सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम और हेलीकॉप्टर जैसे रक्षा उपकरण खरीदने में भी रुचि दिखाई है। इससे पता चलता है कि भारत की रक्षा निर्यातक के रूप में भूमिका बढ़ रही है और दक्षिण पूर्व एशिया उसके रक्षा उत्पादों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है। वास्तव में, इंडोनेशिया ने भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकास ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल दिखाने में भी दिलचस्पी दिखाई है। सुबिआंतो जब इस वर्ष भारत के गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों में भाग लेंगे तो संभावना है कि वह भारत के साथ रक्षा संबंधों को बढ़ाने पर भी विचार करेंगे।

आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध

भारत और इंडोनेशिया के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध प्राचीन समय से जुड़े हुए हैं। दोनों देशों के बीच वित्त वर्ष 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 29.39 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया और इंडोनेशिया, भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। भारत ने वित्त वर्ष 2024 में इंडोनेशिया को 3,794 वस्तुएं निर्यात कीं, जिनमें इंजीनियरिंग सामान और पेट्रोलियम उत्पाद प्रमुख हैं, जबकि इंडोनेशिया से खनिज ईंधन और वनस्पति वसा जैसे उत्पाद आयात किए गए। दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध निरंतर बढ़ रहे हैं। दोनों देशों ने व्यापार को 2025 तक 50 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

दुनिया में सबसे बड़ा मुस्लिम देश होने के बावजूद इंडोनेशिया के लोगों पर हिंदू संस्कृति का गहरा प्रभाव है। भारत के सौदागर व नाविक ईसा मसीह के जन्म से पहले से ही इंडोनेशिया की यात्रा करते रहे हैं। इसके चलते दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक समानताएं भी देखने को मिलती हैं। इंडोनेशिया में ना केवल हिंदू धर्म बल्कि बौद्ध धर्म का भी गहरा प्रभाव रहा है। इंडोनेशिया की भाषा, स्थापत्य और राजशाही पर भारत का प्रभाव स्पष्ट तौर पर नज़र आता है।

ना केवल खान-पान बल्कि इंडोनेशिया की भाषा पर संस्कृत का प्रभाव नज़र आता है। इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर प्रांबानन में हिंदू मंदिर और बोरोबोदूर में बौद्ध स्तूप बने हैं जो दोनों देशों के संबंधों की निकटता को दिखाते हैं। इंडोनेशिया में भारत के दूतावास द्वारा स्थापित जवाहरलाल नेहरू भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (JNICC) भारतीय कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है।

मुख्य अतिथि: सिर्फ प्रतीक नहीं, कूटनीतिक महत्व

1950 में इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किए जाने वाले पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष थे। तब से भारत ने अपनी विदेश नीति और रणनीतिक हितों के मद्देनज़र इस कार्यक्रम के लिए कई विश्व नेताओं की मेज़बानी की है। यह भी अहम है कि इतने बड़े कार्यक्रम में मुख्य अतिथि का चयन केवल औपचारिकता नहीं है बल्कि यह भारत की कूटनीतिक प्राथमिकताओं और वैश्विक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि की भूमिका जहां एक और देशों के बीच दोस्ती का प्रतीक है तो वहीं यह रणनीतिक रूप से भी अहम है। परेड में आमंत्रित नेता आमतौर पर उन देशों से होते हैं जो सुरक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में भारत के साथ समान हित साझा करते हैं। राष्ट्रपति सुबिआंतो को निमंत्रण दक्षिण पूर्व एशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर भारत के फोकस का एक स्पष्ट संकेत है वह भी ऐसे समय में जब भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाना चाहता है।

वर्ष 2025 में गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रपति सुबिआंतो की उपस्थिति न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करेगी बल्कि इससे समुद्री सहयोग के बढ़ते महत्व का भी संदेश मिलेगा। भारत और इंडोनेशिया दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम देश हैं और दोनों की साझेदारी समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे वक्त में जब चीन अपने व्यापार के लिए अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है तो इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती उपस्थिति भी दक्षिण चीन सागर में भारतीय प्रभुत्व स्थापित करने में रणनीतिक भूमिका निभाएगी।

दक्षिण चीन सागर में भारत की भूमिका

दक्षिण चीन सागर के कारण भारत और इंडोनेशिया के बीच सामरिक सहयोग समुद्री क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चीन दक्षिण चीन सागर को एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग के रूप में देखता है। हालांकि, भारत ने हमेशा इस मुद्दे पर हमेशा यही रुख रखा है कि ‘फ्रीडम ऑफ नैविगेशन’ का सम्मान किया जाना चाहिए। भारत और इंडोनेशिया के बीच साझेदारी से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी उपस्थिति और दक्षिण चीन सागर में उसके रणनीतिक हितों को मजबूत करने में भी मदद मिलेगी।

इंडोनेशिया दुनिया के प्रमुख समुद्री मार्गों के बीच में पड़ता है इसलिए समुद्री यातायात सुरक्षा को सुरक्षित करने में उसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। भारत और इंडोनेशिया के बीच मजबूत होता समुद्री सहयोग यह साबित करेगा कि खुले समुद्री मार्ग वैश्विक व्यापार की आधारशिला हैं। भारत और इंडोनेशिया के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग को दक्षिण चीन सागर में बढ़ती चीनी आक्रामकता के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है।

इंडोनेशिया के साथ अपने रक्षा और समुद्री संबंधों को बढ़ाते हुए भारत खुद को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख देश के तौर पर स्थापित कर रहा है। इंडोनेशिया भारत के बड़े रणनीतिक लक्ष्यों में योगदान देगा जिसमें क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना और व्यापार के लिए खुले समुद्री मार्ग सुनिश्चित करना जैसी चीज़ें शामिल हैं।

सुबिआंतो की इस यात्रा के माध्यम से भारत, इंडोनेशिया के साथ अपने जुड़ाव को गहरा करना चाहता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी हिंद-प्रशांत के भविष्य को आकार देने के लिए ज़रूरी है। सुबिआंतो की यात्रा के साथ भारत न केवल अपनी लोकतांत्रिक विरासत का जश्न मना रहा है बल्कि क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए अपनी प्रतिबद्धता को भी मजबूत कर रहा है।

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