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60 साल पुराने हिंसक आंदोलन को फिर हवा देने की कोशिश कर रही डीएमके! जानें क्या है थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला जिसके खिलाफ युद्ध की चेतावनी दे रहे स्टालिन

हिंदी विरोध के नाम पर सियासी रोटियां सेक रहे रहे सीएम स्टालिन

himanshumishra द्वारा himanshumishra
26 February 2025
in चर्चित, राजनीति
Tamil Nadu Hindi Controversy

Tamil Nadu Hindi Controversy

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तमिलनाडु(Tamil Nadu) में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम.के. स्टालिन इस नीति के खिलाफ खुलकर विरोध जता रहे हैं। उनका दावा है कि यह नीति तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की साजिश है। लेकिन क्या यह सच में भाषा की लड़ाई है, या फिर डीएमके की वही पुरानी विभाजनकारी राजनीति।

तमिल अस्मिता और द्रविड़ गौरव के नाम पर डीएमके ने तमिलनाडु की जनता को दशकों तक हिंदी विरोध के ज़रिए गुमराह किया है। जब देश के बाकी हिस्से बहुभाषी शिक्षा अपनाकर युवाओं को नई संभावनाओं से जोड़ रहे हैं, तब डीएमके अब भी भाषा विवाद को हवा देकर तमिलनाडु के छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा से दूर कर रही है।

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2026 के विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, और डीएमके को फिर वही पुराना मुद्दा चाहिए – हिंदी विरोध। मुख्यमंत्री स्टालिन ने मंगलवार को इस विवाद को और हवा देते हुए इसे ‘एक और भाषा युद्ध’ करार देते हुए कहा कि 1965 में डीएमके ने “बलिदान” देकर हिंदी से तमिल की रक्षा की थी। लेकिन क्या यह वास्तव में तमिल भाषा की रक्षा का मुद्दा है, या फिर चुनावी फायदा उठाने की एक और चाल?

ऐसे में जहां तमिलनाडु की इस राजनीति ने सुर्खियां बटोर ली हैं वहां आपके मन में दो बड़े सवाल जरूर उठ रहे होंगे। पहला थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला के खिलाफ इतना गुस्सा क्यों? डीएमके समर्थक सरकारी बोर्डों पर हिंदी मिटा रहे हैं, लेकिन क्या यह सिर्फ भाषा का मुद्दा है, या फिर इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक एजेंडा छिपा है? और दूसरा भाषा विवाद का अतीत क्यों याद दिला रहे हैं स्टालिन? क्या डीएमके सच में तमिल भाषा की रक्षा कर रही है, या फिर जनता की भावनाओं को भड़काने की रणनीति अपना रही है?

थ्री लैंग्वेज फार्मूला का विरोध या डीएमके का चुनावी पैंतरा

2026 का तमिलनाडु विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही डीएमके ने फिर से अपना पुराना हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है—तमिल अस्मिता और हिंदी विरोध का ज़हर फैलाकर जनता को गुमराह करने की साज़िश। हर बार चुनाव से पहले डीएमके तमिल पहचान की रक्षा के नाम पर लोगों की भावनाओं से खेलती है, और इस बार इसका बहाना बना है राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020। डीएमके इसे जबरन हिंदी थोपने की चाल बताकर पूरे राज्य में एक नया भाषा युद्ध भड़काने की कोशिश कर रही है।

तमिलनाडु में डीएमके समर्थकों ने सरकारी बोर्डों और रेलवे स्टेशनों पर हिंदी मिटाने का अभियान छेड़ दिया है। पोल्लाची रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शनकारियों ने साइनबोर्ड से हिंदी शब्दों पर कालिख पोत दी, और सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक समर्थक डाक विभाग के बोर्ड पर लिखी हिंदी को मिटाते हुए देखा गया। डीएमके इसे ‘आंदोलन’ बता रही है, लेकिन असली सवाल यह है कि यह सिर्फ भाषा की लड़ाई है या इसके पीछे डीएमके का चुनावी खेल छिपा है?

क्या है थ्री लैंग्वेज फार्मूला

इसकी गहराई में जाने से पहले आइये समझते हैं कि क्या है थ्री लैंग्वेज फार्मूला। दरअसल NEP 2020 के तहत केंद्र सरकार ने तीन-भाषा नीति लागू करने का प्रस्ताव रखा है, जिसका मकसद छात्रों को बहुभाषी बनाना और उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है। तीन-भाषा नीति के अनुसार—पहली भाषा छात्र की मातृभाषा या राज्य की आधिकारिक भाषा होती है (जैसे तमिलनाडु में तमिल, उत्तर प्रदेश में हिंदी), दूसरी भाषा कोई अन्य भारतीय भाषा हो सकती है (राज्य अपनी सुविधा से तय कर सकते हैं, इसमें हिंदी या कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा शामिल हो सकती है), और तीसरी भाषा एक अंतरराष्ट्रीय भाषा होती है (जैसे अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच आदि)। इस नीति का उद्देश्य भाषाई विविधता को बढ़ावा देना और छात्रों को एक समृद्ध भाषा ज्ञान देना है। लेकिन डीएमके इसे हिंदी थोपने की साजिश बताकर जनता को भड़काने में लगी है।

मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस विवाद को और बढ़ाने के लिए ऐलान कर दिया कि तमिलनाडु “एक और भाषा युद्ध” के लिए तैयार है। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि हिंदी वर्चस्व के खिलाफ संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक इसे खत्म नहीं कर दिया जाता। डीएमके बार-बार तमिल अस्मिता की रक्षा का दावा करती है, हालांकि यह तमिल को बचाने की जंग कम और सियासी पैंतरा जायदा मालूम होता है। आप जरा खुद सोच के देखिये की अगर डीएमके ने हिंदी को लागू रखा तो ऐसा करना राज्य में हिंदी की पैरोकार रही बीजेपी को तमिलनाडु में पैर पसारने का मौका देना होगा और यही कारण है कि डीएमके जैस पार्टियां हिंदी का विरोध करती आयी हैं।

6 दशक पुराने वो हिंसक दंगे

तमिलनाडु में हिंदी विरोध की जड़ें गहरी और सुनियोजित रही हैं। इसका इतिहास 1937 से जुड़ा है, जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की सरकार ने मद्रास प्रांत में हिंदी को लागू करने का समर्थन किया था। इस फैसले के खिलाफ द्रविड़ कड़गम (डीके) ने उग्र विरोध शुरू कर दिया, जिसने हिंसक रूप ले लिया और दो लोगों की जान चली गई। डीके, जिसकी स्थापना पेरियार ने की थी, खुद को सामाजिक सुधार का झंडाबरदार बताता था, लेकिन इसकी राजनीति हमेशा उत्तर भारत, हिंदू धर्म और हिंदी के खिलाफ घृणा फैलाने के इर्द-गिर्द घूमती रही। इसी विचारधारा से आगे चलकर डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां बनीं, जिन्होंने तमिल पहचान के नाम पर हिंदी विरोध को अपनी राजनीति का हथियार बना लिया।

1965 में जब हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की कोशिश हुई, तो डीएमके ने इसे “हिंदी साम्राज्यवाद” करार देकर एक बार फिर जनता को भड़काया। पार्टी के नेतृत्व में छात्रों और कार्यकर्ताओं ने हिंसक विरोध शुरू कर दिया। रेलवे स्टेशन जलाए गए, सरकारी संपत्तियों को निशाना बनाया गया, हिंदी साइनबोर्ड पर स्याही पोती गई और यहां तक कि कई लोगों ने आत्मदाह कर लिया। इस हिंसा में लगभग 70 लोगों की जान गई, जिसके बाद केंद्र सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। 1967 में भाषा नीति में संशोधन कर अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा बनाए रखने का फैसला लिया गया। डीएमके ने इसे अपनी जीत बताई, लेकिन असल में यह आंदोलन तमिल पहचान की रक्षा से ज्यादा हिंदी विरोध के नाम पर जनता को राजनीतिक रूप से भड़काने और वोट बैंक सुरक्षित करने की चाल थी—एक रणनीति, जिसे आज भी जिंदा रखा गया है।

स्रोत: तमिलनाडु , तमिलनाडु हिंदी विवाद, सीएम स्टालिन, हिंदी विरोध, थ्री लैंग्वेज फार्मूला, NEP 2020, हिंदी, द्रविड़ आंदोलन, Tamil Nadu, Tamil Nadu Hindi Controversy, CM Stalin, Anti-Hindi Sentiment, Three Language Formula, Hindi, Dravidian Movement
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