काशी विश्वनाथ के ज्ञानवापी परिसर और मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर दशकों से चल रहा विवाद एक नए मोड़ पर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने इन मुद्दों पर संवाद का रास्ता खोल दिया है। खास बात यह कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने भी इस पहल का खुलकर समर्थन किया है।
भागवत का संदेश साफ था – राम मंदिर आंदोलन में संघ ने भूमिका निभाई थी, लेकिन काशी और मथुरा पर संघ कोई आंदोलन नहीं करेगा। समाज में बातचीत होनी चाहिए और समाधान संवाद से निकलना चाहिए। यह बयान केवल संतुलित नहीं बल्कि हिंदू समाज के आत्मविश्वास का प्रतीक है। राम मंदिर के निर्माण के बाद अब काशी-मथुरा पर भी शांतिपूर्ण, परंतु निर्णायक समाधान की जमीन तैयार हो रही है।
मदनी ने स्वीकारा संवाद का रास्ता
मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि उनका संगठन पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुका है कि मतभेद के बावजूद बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हम सभी प्रकार की बातचीत का समर्थन करेंगे। भागवत जी का यह प्रयास स्वागतयोग्य है।”
यह स्वीकारोक्ति बताती है कि मुस्लिम पक्ष भी समझ रहा है कि टकराव की राजनीति से समाधान संभव नहीं है। हिंदू समाज की धैर्यपूर्ण लेकिन दृढ़ मांगों ने उन्हें संवाद की मेज तक आने पर मजबूर किया है।
काशी-मथुरा पर हिंदू समाज की ऐतिहासिक आस्था
हिंदू समाज के लिए काशी और मथुरा केवल भूमि के टुकड़े नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक आत्मा के प्रतीक हैं।
काशी – विश्वनाथ धाम को सनातन सभ्यता का हृदय कहा जाता है।
मथुरा – भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है।
राम मंदिर का निर्माण इस बात का प्रमाण है कि हिंदू समाज शांति के साथ अपने अधिकार पुनः प्राप्त कर सकता है। काशी और मथुरा पर समाधान भी अब समय की मांग है।
आतंकवाद और फूट डालने वाली साजिश पर करारा प्रहार
मदनी ने हाल के पहलगाम आतंकी हमले की साजिश को नाकाम करने का श्रेय भारत के नागरिक समाज को दिया और कहा कि आतंकियों का मकसद हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य फैलाना था, जो असफल रहा। यह बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि देश में शांति और सहअस्तित्व की इच्छा प्रबल है।
निर्णायक समय
मोहन भागवत का बयान और मदनी का समर्थन इस बात का संकेत हैं कि भारत अपने सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा है। हिंदू समाज अब न तो टकराव से डरता है, न ही अपनी आस्था के मुद्दों पर चुप रहता है। संवाद का यह दौर केवल समझौते का नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय का मार्ग प्रशस्त करने का अवसर है।
काशी और मथुरा का प्रश्न केवल धार्मिक विवाद नहीं, बल्कि भारत की सभ्यता के पुनर्जागरण का प्रश्न है। जब संघ प्रमुख संवाद का आह्वान करते हैं और मुस्लिम नेतृत्व इसे स्वीकार करता है, तो यह दिखाता है कि समाधान अब दूर नहीं। यह हिंदू समाज के धैर्य, शक्ति और आत्मविश्वास की जीत है।