दुनिया के आसमान पर अब भारत की गरज पहले से कहीं ज़्यादा बुलंद हो चुकी है। अमेरिका और रूस के बाद भारत की वायुसेना को दुनिया की तीसरी सबसे शक्तिशाली एयरफोर्स का दर्जा मिला है। यह रैंकिंग दी है WDMMA (World Directory of Modern Military Aircraft) ने, जो वैश्विक स्तर पर सैन्य ताकत का विश्लेषण करती है। सबसे खास बात यह कि भारत ने इस बार चीन को भी पीछे छोड़ दिया है, जबकि पाकिस्तान टॉप-10 में भी नहीं अपनी जगह नहीं बना पाया।
अमेरिका और रूस के बाद भारत की वायुशक्ति का दबदबा
WDMMA की 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका 242.9 TruVal Rating (TVR) के साथ नंबर-वन पर है, रूस 114.2 TVR के साथ दूसरे स्थान पर और भारत 69.4 TVR के साथ तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। वहीं चीन, जो लंबे समय से एशिया में हवाई ताकत का दावा करता रहा है, अब 63.8 TVR के साथ भारत से पीछे चौथे स्थान पर खिसक गया है। भारत के लिए यह उपलब्धि केवल सैन्य शक्ति का संकेत नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और रणनीतिक तैयारी का भी प्रतीक है।
क्यों खास है यह रैंकिंग
WDMMA की यह रैंकिंग केवल विमानों की संख्या पर आधारित नहीं होती। इसमें कई पैरामीटर शामिल हैं, जैसे बेड़े की आधुनिकता, तकनीकी गुणवत्ता, पायलट प्रशिक्षण, रखरखाव क्षमता, सामरिक पहुंच और युद्ध की तैयारी। यानी, भारत की वायुसेना ने चीन से आगे निकलकर यह साबित कर दिया कि संख्या नहीं, गुणवत्ता असली ताकत होती है।
असली ताकत: अनुशासन, तकनीक और साहस
भारतीय वायुसेना आज दुनिया के उन चुनिंदा बलों में है जिनके पास बहुस्तरीय कॉम्बैट स्ट्रक्चर है। राफेल, सुखोई-30 MKI, मिराज 2000 और तेजस जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान, स्वदेशी ड्रोन तकनीक, एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग सिस्टम और ब्रह्मोस जैसे सुपरसोनिक मिसाइल सिस्टम ने भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर और युद्ध के लिए तैयार बना दिया है।
इसी साल भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के चीनी विमानों की हवा निकाल दी थी। यह केवल सामरिक जीत नहीं, बल्कि यह संदेश था कि भारतीय पायलट अब किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं। ‘Touch the sky with glory’ का नारा अब सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि भारत की नई रणनीतिक वास्तविकता बन चुका है।
चीन से आगे निकलने का असली मतलब
चीन का रक्षा बजट भारत से कहीं अधिक है, लेकिन उसके सिस्टम्स अभी भी भारी केंद्रीकृत और मानव संसाधन पर निर्भर हैं। इसके मुकाबले भारत ने टेक्नोलॉजिकल इंटीग्रेशन, सटीकता, और नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर में ज़बरदस्त प्रगति की है। स्वदेशी उत्पादन में HAL, DRDO और निजी रक्षा कंपनियों की भूमिका से भारत अब सिर्फ “हथियार खरीदने वाला देश” नहीं, बल्कि “सैन्य तकनीक बनाने वाला राष्ट्र” बन चुका है।
भारत की नई वायु-रणनीति अब सिर्फ रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि सटीक प्रतिशोध और क्षेत्रीय प्रभुत्व की नीति पर केंद्रित है। यही कारण है कि WDMMA के विश्लेषण में भारत ने चीन को पछाड़ दिया।
अमेरिका का दबदबा और भारत की बढ़ती पकड़
निस्संदेह, अमेरिका की वायुसेना अभी भी पूरी दुनिया में सबसे शक्तिशाली है। उसके पास सैकड़ों बमवर्षक, हजारों लड़ाकू विमान, विशाल ट्रांसपोर्ट यूनिट और हर महाद्वीप पर एयरबेस हैं। लेकिन भारत का सफर अनूठा है। सीमित संसाधनों के बावजूद उसने अनुशासन, साहस और तकनीकी नवाचार से खुद को उस स्थान पर पहुंचाया है, जहां अब वह रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों की श्रेणी में खड़ा है।
पाकिस्तान की हालत: शर्मनाक गिरावट
पाकिस्तान, जो दशकों से खुद को हमारे बराबर दिखाने का ढोंग करता रहा है, इस वैश्विक सूची में टॉप 10 में भी शामिल नहीं है। उसकी वायुसेना न तो तकनीकी रूप से सक्षम है, न ही संसाधनों में टिकाऊ। पाकिस्तान के पास मौजूद JF-17 जैसे चीनी विमान भारतीय राफेल या सुखोई की तकनीकी क्षमता के आगे बौने साबित हो रहे हैं। यह वही पाकिस्तान है जो “एयर सुपीरियरिटी” के नाम पर प्रचार करता था। लेकिन, अब वह वैश्विक रैंकिंग में कहीं नहीं दिखता।
भारत अब रक्षा नहीं, नेतृत्व की स्थिति में
आज भारत केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने वाला देश नहीं रहा। वह वैश्विक रणनीति का सक्रिय खिलाड़ी बन चुका है, जो मध्य एशिया, हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक में संतुलन तय कर रहा है। भारतीय वायुसेना अब केवल “सैनिक बल” नहीं, बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता, सम्मान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
जब WDMMA जैसी वैश्विक संस्थाएं भी यह मान रही हैं कि भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है, तो यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक संदेश है, 21वीं सदी के आसमान में अब हमारी गरज गूंज रही है।