बांग्लादेश की राजनीति आज एक खतरनाक मोड़ पर खड़ी है। मोहम्मद यूनुस सरकार की कट्टरपंथी नीतियों, अल्पसंख्यकों पर हिंसा और लोकतांत्रिक संस्थाओं की उपेक्षा ने न केवल देश के भीतर सामाजिक अस्थिरता पैदा की है, बल्कि भारत-बांग्लादेश के रिश्तों को भी गहरे संकट में डाल दिया है। यह संकट केवल राजनीतिक नहीं है, यह क्षेत्रीय स्थिरता, सीमाई सुरक्षा और भारत की रणनीतिक पहुंच के लिए भी सीधा खतरा है। निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान बांग्लादेश सरकार की नीतियां न केवल देश के लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के लिए खतरा हैं, बल्कि भारत के हितों के लिए भी चुनौती बन चुकी हैं।
यूनुस सरकार का उदय और कट्टरपंथी हाथों में सत्ता
मोहम्मद यूनुस की सरकार के उदय के साथ ही बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों का दखल बढ़ा। शेख हसीना ने अपने बयान में कहा कि यूनुस ने मौलवियों और इस्लामी संगठन-समूहों को खुला समर्थन दिया। इससे कट्टरपंथी नेताओं और संगठनों को राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर बढ़ावा मिला, जबकि नागरिक समाज और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
यूनुस सरकार ने कई नीतिगत फैसलों के माध्यम से कट्टरपंथियों को सशक्त किया। धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक अनुदान, भूमि और राजनीतिक संरक्षण मिला। इसके परिणामस्वरूप हिंसा और भय का माहौल बन गया। शेख हसीना ने यह भी बताया कि उनकी सरकार के दौरान कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया गया था, लेकिन यूनुस सरकार ने इन प्रयासों को उल्टा कर दिया और कट्टरपंथियों को खुली छूट दे दी।
हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हिंसा
यह भी देखा गया कि यूनुस सरकार के कार्यकाल में हिंदू, बौद्ध, ईसाई और आदिवासी समुदायों पर हिंसा की घटनाओं में अचानक वृद्धि हुई। ढाका, चटगांव और सिलीगुड़ी जैसे बड़े शहरों में मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर हमले हुए। हिंदू महिलाओं और बच्चों पर हमले की घटनाएं भी दर्ज हुईं। शेख हसीना ने इसे बांग्लादेश के लिए कलंक बताया। उन्होंने कहा कि यूनुस सरकार ने इन घटनाओं से लगातार इनकार किया और उन्हें रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
इस हिंसा का व्यापक असर भारतीय सीमा से लगे पूर्वोत्तर राज्यों पर भी पड़ता है। बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी, भयभीत नागरिक और आर्थिक अस्थिरता सीधे भारत के पूर्वोत्तर और त्रिपुरा–मिजोरम क्षेत्र की सुरक्षा चुनौती बन रही है। स्थानीय बीएसएफ और सीमा बल लगातार सतर्क हैं, लेकिन यूनुस सरकार की नीतियां स्थिति को और जटिल बना रही हैं।
आर्थिक नीतियां और कट्टरपंथियों को दी गई मदद
यूनुस सरकार ने कट्टरपंथियों को केवल राजनीतिक संरक्षण ही नहीं दिया, बल्कि आर्थिक मदद के माध्यम से उन्हें सशक्त भी किया। धार्मिक स्कूलों और मदरसों को सरकारी अनुदान दिया गया, जबकि सामान्य स्कूलों और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की उपेक्षा की गई। कई छोटे व्यवसाय और संपत्ति हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों से जबरन अधिग्रहित किए गए।
इसके अलावा, सरकारी अनुबंध और परियोजनाएं कट्टरपंथियों के समर्थक समूहों को दी गईं। इससे केवल सामाजिक असमानता ही नहीं बढ़ी, बल्कि सरकार की नीतियों के कारण नागरिकों में भय और असुरक्षा का माहौल भी फैल गया। शेख हसीना ने कहा कि इस नीति ने देश में कट्टर इस्लाम के विस्तार को तीव्र गति दी।
अवामी लीग पर प्रतिबंध और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन
यूनुस सरकार ने अवामी लीग को बांग्लादेश चुनाव से बाहर करने के लिए प्रतिबंध लगा दिया। यह न केवल राजनीतिक अस्थिरता का कारण बना, बल्कि 17.3 करोड़ लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा हमला था। शेख हसीना ने स्पष्ट किया कि अवामी लीग पर प्रतिबंध ने देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर दिया और कट्टरपंथी ताकतों को खुला रास्ता दिया।
लोकतंत्र पर यह संकट भारत के लिए गंभीर है। लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की हानि सीधे तौर पर भारत-बांग्लादेश सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा और रणनीतिक संतुलन को प्रभावित करती है। यदि बांग्लादेश में यह अस्थिरता जारी रही, तो भारत को न केवल कूटनीतिक दबाव बढ़ाना होगा, बल्कि सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय निगरानी भी सख्त करनी होगी।
भारत-बांग्लादेश रिश्तों पर खतरा
यहां याद रहे कि भारत हमेशा से बांग्लादेश का भरोसेमंद सहयोगी रहा है। लेकिन यूनुस सरकार की कट्टरपंथी नीतियों ने इन रिश्तों को संकट में डाल दिया है। शेख हसीना ने चेतावनी दी कि यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो भारत-बांग्लादेश संबंधों पर स्थायी नकारात्मक असर पड़ेगा।
भारत के लिए यह केवल कूटनीतिक मुद्दा नहीं है। सीमा सुरक्षा, आपसी व्यापार, ऊर्जा साझेदारी और रणनीतिक सहयोग जैसे क्षेत्रों में भी संकट उत्पन्न हो रहा है। विशेषकर पूर्वोत्तर भारत और त्रिपुरा–मिजोरम सीमा क्षेत्र में भारत को सुरक्षा बलों और निगरानी नेटवर्क को लगातार सशक्त करना होगा।
चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश धुरी
बांग्लादेश में यूनुस सरकार की कट्टरपंथी नीतियों का दूसरा पहलू चीन और पाकिस्तान की रणनीति से जुड़ा हुआ है। चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश धुरी का उद्देश्य भारत की सीमा सुरक्षा और रणनीतिक स्वतंत्रता को सीमित करना है। चीन की आर्थिक और तकनीकी मदद से बांग्लादेश में परियोजनाएं चल रही हैं, जबकि पाकिस्तान कट्टरपंथी समूहों के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता पैदा कर रहा है।
इस धुरी का उद्देश्य भारत के रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों, जैसे चाबहार पोर्ट, त्रिपुरा–मिजोरम बॉर्डर, और BIMSTEC कॉरिडोर में भारत की पहुंच और प्रभुत्व को कमजोर करना है। शेख हसीना के बयान इस खतरे को उजागर करते हैं और भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
भारत की रणनीतिक तैयारी
भारत ने RAW और अन्य खुफिया एजेंसियों के माध्यम से बांग्लादेश में स्थिति की गहन निगरानी शुरू कर दी है। पूर्वोत्तर भारत और त्रिपुरा-मिजोरम सीमा पर सुरक्षा बलों की तैनाती और निगरानी बढ़ाई जा रही है। भारत ने BIMSTEC और SAARC जैसे क्षेत्रीय मंचों पर बांग्लादेश में लोकतांत्रिक और सामाजिक स्थिरता के लिए दबाव बनाने की योजना बनाई है।
चाबहार पोर्ट और ट्रांस-एशियन कॉरिडोर के माध्यम से भारत की रणनीतिक पहुंच को मजबूत करना भी प्राथमिकता में है। इन परियोजनाओं के माध्यम से भारत न केवल व्यापारिक और आर्थिक प्रभुत्व सुनिश्चित कर रहा है, बल्कि चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश धुरी की कोशिशों का मुकाबला भी कर रहा है।
पूर्वोत्तर भारत और सीमा सुरक्षा
पूर्वोत्तर भारत और त्रिपुरा–मिजोरम सीमा क्षेत्र में भारत को सीमा निगरानी और सुरक्षा बढ़ाने की आवश्यकता है। बांग्लादेश में कट्टरपंथ और हिंसा की वजह से शरणार्थियों और अवैध गतिविधियों की संख्या बढ़ रही है। भारत ने बीएसएफ और स्थानीय सुरक्षा एजेंसियों को सशक्त किया है, साथ ही आधुनिक निगरानी तकनीक और गुप्त खुफिया नेटवर्क का विस्तार किया है।
इसका उद्देश्य केवल सीमा सुरक्षा नहीं है। भारत की रणनीति में यह भी शामिल है कि बांग्लादेश में स्थिति स्थिर रहे ताकि चीन और पाकिस्तान की धुरी के प्रयास विफल हों। यह रणनीति पूर्वोत्तर भारत के विकास और आर्थिक प्रगति के लिए भी आवश्यक है।
शेख हसीना का संदेश और भारत के लिए चेतावनी
शेख हसीना का संदेश स्पष्ट है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा देना देश के लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है। यह नीति भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए भी गंभीर चुनौती है। यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो बांग्लादेश में स्थायी अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसका असर भारत की सुरक्षा, आर्थिक हित और क्षेत्रीय प्रभुत्व पर पड़ेगा।
हसीना के बयान केवल राजनीतिक टिप्पणी नहीं हैं। वे भारत के रणनीतिक हितों के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। कट्टरपंथ और हिंसा की इस लहर ने दिखा दिया है कि पड़ोसी देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति सीधे भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करती है।
बांग्लादेश की मौजूदा सरकार के दौर में कट्टरपंथी ताकतों का बढ़ता दबदबा, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों पर हिंसा, और अवामी लीग पर प्रतिबंध जैसी घटनाएं भारत के लिए गंभीर खतरे का संकेत हैं। शेख हसीना ने स्पष्ट किया है कि भारत-बांग्लादेश संबंधों में स्थिरता केवल तभी संभव है जब लोकतांत्रिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखा जाए।
भारत को इस स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। RAW और अन्य खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ BIMSTEC और SAARC जैसे मंचों का उपयोग कर भारत को न केवल अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, बल्कि पड़ोसी देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए दबाव भी बनाना होगा। चीन–पाकिस्तान–बांग्लादेश धुरी के प्रयासों का मुकाबला करना और पूर्वोत्तर भारत में अपनी रणनीतिक पहुंच मजबूत करना भी आवश्यक है।
अंततः, बांग्लादेश में कट्टरपंथ और हिंसा की यह लहर केवल पड़ोसी देश का आंतरिक मामला नहीं है, यह भारत की सुरक्षा, रणनीति और क्षेत्रीय प्रभुत्व का सीधा प्रश्न है। शेख हसीना के निर्वासित जीवन और उनके बयानों ने इसे स्पष्ट कर दिया है कि भारत को इस खतरे की गंभीरता को समझकर तत्काल रणनीतिक कदम उठाने होंगे।

























