अफगानिस्तान और पाकिस्तान का नाम एक साथ आते ही दुनिया के दिमाग में एक जटिल और खतरनाक समीकरण उभरता है, जो केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि रणनीतिक, सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं का संगम है। हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का यह बयान कि अगर इस्तांबुल में अफगान प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में कामयाबी नहीं हुई तो जंग ही होगी, यह न केवल बयानबाज़ी है, बल्कि यह पाकिस्तान की पूरी असफलता, कमजोर अर्थव्यवस्था, थकी हुई सेना और अंतरराष्ट्रीय दबावों का प्रतीक भी है। यह बयान उस देश का आईना है, जो खुद को परमाणु शक्ति और क्षेत्रीय महाशक्ति की तरह पेश करता है, लेकिन वास्तविकता में अपनी रणनीतिक असफलताओं और आर्थिक संकटों से जूझ रहा है।
पाकिस्तान की धमकी हास्यास्पद
जब हम अफगानिस्तान के परिदृश्य को देखते हैं, तो समझना जरूरी है कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी वर्षों तक वहां असफल रही। 20 साल की लागत, लाखों सैनिक, असीमित संसाधन और वैश्विक समर्थन के बावजूद अमेरिका तालिबान को हराने में नाकाम रहा। यह केवल तालिबान की सैन्य क्षमता का परिणाम नहीं था, बल्कि अफगानिस्तान की भू-राजनीतिक, सामाजिक और क़बायली संरचना, स्थानीय जनमानस और पहाड़ी भूगोल ने हर बाहरी ताकत को जकड़ कर रखा। इस विफलता के सामने पाकिस्तान की बयानबाज़ी और युद्ध की धमकी केवल हास्यास्पद लगती है। जिस देश से अमेरिका जैसी महाशक्ति हार गया, वही अब पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ युद्ध की धमकी दे रहा है, क्या यह हास्य से कम है?
पाकिस्तान की धमकी का वास्तविक विश्लेषण करें तो यह साफ़ होता है कि यह केवल आभासी शक्ति का प्रदर्शन है। पाकिस्तान के पास हथियार और परमाणु क्षमता है, लेकिन उसका आर्थिक और राजनीतिक ढांचा इतना कमजोर है कि कोई भी वास्तविक युद्ध की योजना बनाना उसके लिए जोखिम से खाली नहीं है। देश के भीतर IMF के दबाव, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी ने पाकिस्तान को युद्ध की तैयारी में असमर्थ बना दिया है। ऐसे में युद्ध की धमकी देना केवल जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने की रणनीति है।
ISI और SSG जैसे संगठनों ने हमेशा अफगानिस्तान में अपने एजेंडे के लिए तालिबान और अन्य प्रॉक्सी का इस्तेमाल किया है। लेकिन वर्तमान स्थिति में तालिबान अब पाकिस्तान के निर्देशन में नहीं चल रहा। वह अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय हितों के लिए स्वतंत्र निर्णय ले रहा है। पाकिस्तान की धमकी केवल उसके खुद के डर और अंतरराष्ट्रीय दबाव का नतीजा है। पाकिस्तान अब यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह अभी भी क्षेत्रीय शक्ति है, जबकि वास्तविकता में उसकी सेना थकी हुई है और उसका राजनीतिक ढांचा अस्थिर है।
डर और असफलता को छुपाने का नाटक
पाकिस्तान के लिए तालिबान से टकराव केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संकट भी है। तालिबान की स्वतंत्रता पाकिस्तान के ऐतिहासिक नियंत्रण के दावों को चुनौती दे रही है। इस स्थिति में पाकिस्तान की बयानबाज़ी केवल भय और असफलता छुपाने का साधन है। देश के भीतर कट्टरपंथी, विपक्ष और अर्थव्यवस्था के संकट ने इसे मजबूर कर दिया है कि वह केवल बयान और डींगे के सहारे अपनी स्थिति मजबूत दिखाने की कोशिश करे।
अमेरिका की विफलता और पाकिस्तान की आभासी धमकी को एक साथ देखें। अमेरिका, जिसके पास हर प्रकार का अत्याधुनिक हथियार और संसाधन थे, अफगानिस्तान में 20 साल तक भी तालिबान को परास्त नहीं कर सका। वहीं पाकिस्तान, जिसकी आर्थिक और सैन्य शक्ति अमेरिका से बहुत कमजोर है, वही अब तालिबान के खिलाफ धमकी दे रहा है। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की कमजोरी को उजागर करती है। उसकी धमकी केवल डर और असफलता को छुपाने का नाटक है।
पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरियां उसकी रणनीतिक अक्षमता का प्रमाण हैं। देश की अर्थव्यवस्था डूब चुकी है, विदेशी निवेश भी ठप है, CPEC जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में देरी हो रही है, और IMF तथा FATF के दबाव ने पाकिस्तान को और कमजोर बना दिया है। ऐसे देश के लिए युद्ध की तैयारी करना असंभव है। उसकी सेना के पास संसाधन, मनोबल और तकनीकी क्षमता भी सीमित हैं। इस सच्चाई को छुपाने के लिए पाकिस्तान केवल धमकी दे रहा है।
पाकिस्तान के लिए चुनौती बन चुका है तालिबान
तालिबान का हालिया स्वतंत्र और सक्रिय दृष्टिकोण पाकिस्तान के लिए और चुनौती बन गया है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, तालिबान अब पाकिस्तान के निर्देशन में नहीं, बल्कि अपने हितों के अनुसार निर्णय ले रहा है। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए रणनीतिक संकट है, और इसके परिणामस्वरूप देश को केवल बयानबाज़ी और धमकियों में ही संतोष ढूंढना पड़ रहा है।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में चीन, रूस और ईरान भी पाकिस्तान की बयानबाज़ी को देख रहे हैं। चीन, CPEC और बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट की स्थिरता के लिए सतर्क है। रूस और ईरान भी अपने सुरक्षा और अफगानिस्तान में क्षेत्रीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान की धमकी का आंकलन कर रहे हैं। इस पूरे अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में पाकिस्तान की आभासी ताकत और वास्तविक कमजोरी दोनों उजागर हो रहे हैं।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
भारत इस पूरे समीकरण में शांत लेकिन सशक्त स्थिति में है। पाकिस्तान का डर और धमकी भारत के लिए रणनीतिक लाभ हैं। भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियां पूरी तरह सतर्क हैं। त्रिशूल युद्धाभ्यास और सीमा पर तैयारियां यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी तरह की घुसपैठ, आतंकवादी कार्रवाई या पाकिस्तान की नापाक साजिश को तुरंत विफल किया जा सके। भारत की रणनीति सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और रणनीतिक प्रभुत्व पर भी केंद्रित है।
पाकिस्तान की बयानबाज़ी और डींगे उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर और हास्यास्पद बनाते हैं। देश की आर्थिक स्थिति, कट्टरपंथी लॉबी और राजनीतिक अस्थिरता पाकिस्तान को वास्तविक युद्ध में कदम बढ़ाने से रोकती हैं। उसके लिए केवल बयान देना और डर पैदा करना ही बचा है।
अफगानिस्तान की पहाड़ियों में तालिबान और पाकिस्तान के बीच मानसिक और रणनीतिक टकराव यह दिखाता है कि पाकिस्तान वास्तविक शक्ति नहीं रखता। उसकी धमकियां और बयान केवल आभासी शक्ति का प्रदर्शन हैं। पाकिस्तान के पास न तो आर्थिक संसाधन पर्याप्त हैं, न सैन्य क्षमता, न ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन। केवल डींगे और बयान हैं, जिनसे वह अपने डर और कमजोरी को छुपाने की कोशिश कर रहा है।
भारत की रणनीतिक स्थिति और मजबूत
भारत के दृष्टिकोण से यह अवसर है। पाकिस्तान की कमजोरी और बयानबाज़ी से भारत अपने क्षेत्रीय हितों और रणनीतिक प्रभुत्व को मजबूत कर सकता है। चाबहार, उज़्बेकिस्तान कॉरिडोर, एयरबेस फर्खोर और अफगानिस्तान में बैकचैनल डिप्लोमेसी भारत की रणनीतिक स्थिति को और मजबूत करते हैं। पाकिस्तान की धमकी और असली शक्ति की कमी के बीच भारत की ताकत उजागर होती है।
पाकिस्तान के इस नाटक और आभासी शक्ति प्रदर्शन के बीच यह स्पष्ट है कि उसका भविष्य केवल संकट और असफलता का है। अफगानिस्तान में युद्ध की धमकी केवल उसकी कमजोरी और डर का प्रतीक है। उसका नाटक, उसकी बयानबाज़ी और डींगे इतिहास में केवल असफल राष्ट्र की कहानी के रूप में दर्ज होंगे।
अंततः, यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान केवल बयानबाज़ी कर रहा है, युद्ध नहीं लड़ सकता। अफगानिस्तान की धरती, तालिबान की स्वतंत्रता और अंतरराष्ट्रीय दबाव पाकिस्तान के लिए असंभव चुनौती हैं। उसकी धमकियां, डींगे और बयान केवल उसकी असफलता और भय का प्रतीक हैं। भारत शांत, तैयार और रणनीतिक रूप से सशक्त है। पाकिस्तान अब इतिहास में केवल एक भिखारी राष्ट्र की तरह खड़ा रहेगा, जिसकी वास्तविक ताकत शून्य के बराबर है।
कुल मिलाकर कहें तो पाकिस्तान के पास अब केवल डींगे और बयान ही बचे हैं। अफगानिस्तान और तालिबान के सामने वह एक भिखारी राष्ट्र की तरह है, जिसकी वास्तविक ताकत शून्य है। यह देश इतिहास में केवल अपनी असफलता और आभासी शक्ति प्रदर्शन के लिए याद रखा जाएगा, न कि वास्तविक सैन्य या राजनीतिक ताकत के लिए।


























