भारत ने दशकों से चल रहे नक्सलवाद के जटिल और घातक संकट पर ऐतिहासिक विजय हासिल की है। लंबे समय तक देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा, आतंक और अव्यवस्था फैलाने वाला यह आंदोलन अब लगातार कमजोर पड़ रहा है। लगातार नक्सलियों का आत्मसमर्पण हो रहा है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जैसे लंबे समय तक नक्सली हिंसा के केंद्र रहे जिले अब भी ‘सबसे अधिक प्रभावित’ श्रेणी में हैं, लेकिन इनमें भी हिंसा के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट देखी जा रही है। आज के समय में देश भर में नक्सलवाद के मामलों में चिंताजनक जिलों की केवील संख्या चार रह गई है, और अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों की स्थिति भी काफी हद तक नियंत्रण में है। यह केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी विज़न और गृहमंत्री अमित शाह के अडिग संकल्प की ऐतिहासिक जीत का प्रतीक है।
यहां बता दें कि नक्सलवाद की चुनौती केवल हथियारों और हिंसा की समस्या नहीं थी। यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक असमानता, राज्य की गैर-मौजूदगी और ग्रामीण प्रशासन की कमजोरी का परिणाम भी था। दशकों तक नक्सली आतंक ने ग्रामीण भारत में भय का माहौल पैदा किया, विकास परियोजनाओं को बाधित किया और प्रशासनिक नियंत्रण को चुनौती दी। लेकिन मोदी सरकार ने इस चुनौती का सामना केवल सुरक्षा बलों के बल प्रयोग के स्तर पर नहीं किया। इसके पीछे एक समग्र दृष्टिकोण था—जो सुरक्षा, विकास और सामाजिक समावेशन को एक साथ जोड़ता था।
विकास से मिल रहा जवाब
प्रधानमंत्री मोदी ने शुरू से यह स्पष्ट किया कि नक्सलवाद केवल हथियारों और हिंसा की समस्या नहीं है। इसका मूल कारण गरीबी, असमानता और प्रशासन की अनुपस्थिति है। इस दृष्टिकोण को आधार बनाते हुए मोदी सरकार ने नक्सल प्रभावित जिलों में विकास, सुरक्षा और सामाजिक समावेशन को केंद्र में रखा। मोदी का विज़न तीन आयामों पर आधारित रहा: पहला, नक्सल प्रभावित जिलों में बुनियादी विकास का विस्तार—सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं का निर्माण। दूसरा, सुरक्षा का मजबूत नेटवर्क, जिसमें केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों की रणनीतिक तैनाती शामिल थी। और तीसरा, सामाजिक समावेशन, जहां स्थानीय समुदाय को योजना निर्माण और कार्यान्वयन में शामिल किया गया। यही दृष्टिकोण नक्सल प्रभावित जिलों में स्थायी सुधार की नींव बना।
गृहमंत्री अमित शाह का योगदान भी रणनीतिक और निर्णायक रहा। उनका संकल्प स्पष्ट था: नक्सलवाद को समाप्त करना और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना। उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सर्जिकल अभियान और आक्रामक कार्रवाई को प्राथमिकता दी। नक्सलियों के नेटवर्क और ठिकानों को निशाना बनाया गया, जबकि आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास और रोजगार जैसी सामाजिक सहायता भी दी गई। अमित शाह की रणनीति ने यह संदेश दिया कि नक्सलियों को हिंसा छोड़ने का विकल्प उपलब्ध है, लेकिन हिंसा जारी रखने वालों को कानून की कठोर मार झेलनी पड़ेगी।
मोदी और शाह की नीति से परिवर्तन
छत्तीसगढ़ का उदाहरण इस रणनीति की सफलता को दिखाता है। बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा में हाल तक सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच लगातार संघर्ष होता रहा। मोदी-शाह रणनीति के लागू होने के बाद यहां न केवल हिंसा में कमी आई, बल्कि स्थानीय युवाओं को विकास और रोजगार के अवसर मिले। प्रशासनिक उपस्थिति और सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा के विस्तार ने स्थानीय समुदायों को नक्सलियों से दूर किया। यह साबित करता है कि जब सुरक्षा बलों का दबाव और विकास का अवसर एक साथ दिया जाता है, तो नक्सल प्रभावित क्षेत्र धीरे-धीरे शांत और समृद्ध हो जाता है।
झारखंड में पश्चिमी सिंहभूम का उदाहरण है, जो ‘चिंताजनक जिलों’ में आता है। यहां भी मोदी सरकार की नीति ने स्पष्ट सुधार दिखाया। स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार योजनाओं का क्रियान्वयन और प्रशासनिक उपस्थिति ने नक्सली हिंसा को सीमित किया। मध्यप्रदेश के बालाघाट और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में भी स्थिति नियंत्रित हो रही है। केंद्र और राज्य की संयुक्त रणनीति ने सुरक्षा बलों को मजबूती दी और स्थानीय प्रशासन की भूमिका को प्रभावी बनाया।
कई राज्यों में कम हुआ खतरा
ओडिशा, बिहार, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद का खतरा कम हुआ है, लेकिन सतर्कता जारी है। ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ और ‘विरासत एवं महत्वपूर्ण जिलों’ में केंद्र सरकार लगातार वित्तीय और सुरक्षा सहायता उपलब्ध करा रही है। यह सुनिश्चित करता है कि नक्सलवाद कभी फिर से उभर न पाए और स्थानीय विकास योजनाएं स्थायी रूप से लागू हों।
मोदी-शाह रणनीति का सार यही है कि दबाव और विकास को संतुलित किया गया। सुरक्षा बलों की आक्रामक कार्रवाई ने नक्सलियों के नेटवर्क को कमजोर किया, जबकि विकास योजनाओं ने स्थानीय युवाओं को हिंसा के रास्ते से हटाकर रोजगार और स्वरोजगार की ओर मोड़ा। सामाजिक समावेशन ने स्थानीय समुदाय को योजना निर्माण और कार्यान्वयन में शामिल किया, जिससे प्रशासन और जनता के बीच विश्वास का माहौल बना।
प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 38 रह गई, सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या छह से तीन रह गई, और चिंताजनक जिलों की संख्या चार हो गई। ‘अन्य वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों’ की संख्या भी घट गई। यह स्पष्ट संकेत है कि मोदी और शाह की नीति केवल बल प्रयोग पर आधारित नहीं थी, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों के संयोजन पर आधारित थी।
छत्तीसगढ़ में बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा के अलावा कांकेर, दंतेवाड़ा, गरियाबंद और मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी में भी सुधार हुआ है। विकास के विस्तार, रोजगार योजनाओं, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं ने नक्सली हिंसा को कम किया है। महाराष्ट्र में गढ़चिरौली अब धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में बालाघाट में प्रशासनिक उपस्थिति और सामाजिक योजनाओं ने हिंसा के स्तर को नियंत्रित किया। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम, बिहार के चार जिलों, ओडिशा के आठ जिलों, तेलंगाना के दो जिलों और आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के अन्य जिलों में भी नक्सल प्रभाव घटा है।
राष्ट्रीय दृष्टि से यह केवल सुरक्षा की जीत नहीं है। यह राष्ट्र निर्माण, प्रशासनिक मजबूती और सामाजिक समावेशन का प्रमाण है। देश की एकता और स्थिरता मजबूत हुई, प्रशासन और सुरक्षा बलों की प्रभावशीलता प्रदर्शित हुई, और स्थानीय युवाओं को हिंसा के बजाय विकास और रोजगार का विकल्प मिला।
नक्सलवाद पर यह जीत साबित करती है कि जब नेतृत्व का विज़न स्पष्ट और संकल्प अडिग होता है, तो कोई चुनौती चाहे वह नक्सलवाद जैसी लंबी अवधि की हिंसा हो, वह भी देश के सामर्थ्य के सामने टिक नहीं पाती। भारत अब न केवल नक्सल प्रभावित जिलों में स्थायी शांति, प्रशासनिक प्रभाव और विकास का मार्ग प्रशस्त कर चुका है, बल्कि यह पूरे विश्व के लिए यह संदेश भी भेज रहा है कि एक रणनीतिक और विकास-समावेशी दृष्टिकोण के साथ किसी भी उग्रवाद को समाप्त किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की यह रणनीति एक नई मिसाल बन चुकी है। उन्होंने यह साबित किया कि देश की सुरक्षा केवल हथियार और अभियान से नहीं, बल्कि विकास, प्रशासनिक प्रभाव और सामाजिक समावेशन से सुनिश्चित की जा सकती है। यह विज़न और संकल्प का संगम भारत के नक्सल प्रभावित जिलों में ऐतिहासिक सुधार का कारण बना।
आज भारत में बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा में भी स्थिति नियंत्रित है। हिंसा में कमी, प्रशासनिक उपस्थिति, विकास की गति और स्थानीय समुदाय का सहयोग यह दिखाता है कि मोदी-शाह रणनीति कितनी प्रभावी रही। यह नक्सलवाद पर जीत केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा, स्थिरता और विश्वास की जीत भी है।
मोदी और शाह ने यह दिखाया कि जब नेतृत्व का विज़न स्पष्ट हो और संकल्प अडिग हो, तो देश की आंतरिक सुरक्षा, विकास और स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है। नक्सलवाद पर यह विजय भारत के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और राष्ट्रीय संकल्प की मिसाल बन चुकी है।



























