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ओम बिड़ला ने 17वीं लोकसभा के पहले सेशन को कहा 1952 से अब तक का सबसे सुनहरा सत्र

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
9 August 2019
in मत
ओम बिड़ला लोकसभा

PC: LSTV

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जब मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद लोकसभा स्पीकर के पद के लिए राजस्थान के कोटा से सांसद ओम बिड़ला का नाम सभी सामने रखा तो लोग चौंक गए थे। इससे पहले बिड़ला का नाम लोगों ने बहुत कम ही सुना था। जब ओम बिड़ला लोकसभा स्पीकर बनाए गए तो सबको इस बात की चिंता हो गई कि क्या वे पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन की तरह संसद को संभाल पाएंगे? लेकिन यह एक सत्र के बाद ही स्पष्ट हो गया कि वह पुराने लोकसभा के स्पीकरों से कहीं आगे हैं। पहले से साइकिल की गति चलने वाली लोकसभा को ओम बिड़लाने बुलेट ट्रेन की तरह दौड़ाया और दिखाया कि अगर इक्छाशक्ति हो तो सदन में इस गति से भी कार्य किया जा सकता है।

दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की पहले लोकसभा सत्र में कुल 37 बैठकें हुईं जो 280 घंटे तक चलीं। यह समय वर्ष 1952 के बाद से पहली बार ऐसा हुआ कि सदन इतने समय तक चला। इस दौरान कुल 539 सदस्यों ने सदस्यता की शपथ ली इसके साथ ही कुल 36 विधेयक पारित हुए। यह जानकारी खुद ओम बिड़ला ने दी है। उन्होंने कहा कि यह 1952 से लेकर अब तक का सबसे स्वर्णिम सत्र रहा है। बिड़ला ने कहा कि इस सत्र की कुल सक्रियता 125 प्रतिशत रही जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

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लोकसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि 18 जुलाई को 161 सदस्यों को बोलने का अवसर प्रदान किया गया जो अपने आप में अभूतपूर्व है। उन्होंने बताया कि 17 जून से छह अगस्त तक चले इस सत्र में कुल 37 बैठकें हुईं और करीब 280 घंटे तक कार्यवाही चली। बिड़ला ने कहा कि इस सत्र में कोई व्यवधान भी नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इस सत्र में कुल 33 सरकारी विधेयक विचार के लिए पेश किए गए और 36 विधेयक पारित किए गए। इस सत्र में जम्मू कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को हटाने संबंधित दो संकल्पों, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, तीन तलाक विरोधी ‘मुस्लिम महिला अधिकार (संरक्षण) विधेयक-2019′, मोटरयान संशोधन विधेयक-2019, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक-2019 और मजदूरी संहिता विधेयक प्रमुख हैं।

इस सत्र में कुल 265 नवनिर्वाचित सदस्यों में से अधिकतर सदस्यों को शून्य काल अथवा किसी न किसी विधेयक पर चर्चा में बोलने या प्रश्नकाल में पूरक प्रश्न पूछने का मौका मिला। साथ ही महिला सांसदों ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी ली तथा 46 नवनिर्वाचित महिला सदस्यों में से 42 को सदन में अपनी बात रखने का अवसर मिला।

लोकसभा अध्यक्ष के इसी तरह से सभी को बोलने का अवसर देने के किए विपक्ष ने भी खूब सराहा। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अध्यक्ष ओम बिड़ला की तारीफ करते हुए सभी को सुनने के लिए सराहना की और उन्हें सर्वेश्रेष्ठ स्पीकर बताया। इस पर सभी सदस्यों ने भी अपनी स्वीकृति देते हुए मेज थपथपाई। उन्होंने यह बात तब कही जब सपा नेता आजम खां से जुड़े विवाद के दौरान बिड़ला ने भाजपा सदस्यों से कहा कि ‘आप संख्या में बड़े हो सकते हैं, लेकिन सदन सबकी सहमति से चलता है।’

आइए देखते है ओम बिड़ला के कुछ फैसले जिसने लोकसभा की कार्यशैली बदल कर रख दी।

  • लोकसभा अध्यक्ष हिंदी के साथ साथ अंग्रेज़ी भी अच्छे से बोल लेते हैं। इसके बावजूद भी वे सदन की कार्यवाही में अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग नहीं करते। वे कभी भी दूसरे सदस्यों को​ हिंदी में बोलने के लिए नहीं कहते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों को ऑनरेबल एमपी के संबोधन के बजाए `माननीय सदस्यगण` कहकर संबोधन करते हैं। वे एडजर्नमेंट मोशन को स्थगन प्रस्ताव और `ज़ीरो आवर` को शून्य काल कहते हैं। ​विधेयक को पारित करवाने की प्रक्रिया में उन्होंने ‘आइज’ और ‘नोज’ की परंपरा को ‘हां के पक्ष में है और ना के पक्ष में है’ में बदल दिया है।
  • जब भी किसी बात पर हंगामा होता है तो ओम बिड़ला का इतना कहना काफी होता है- ‘आसन पैरों पर है’। संसदीय परंपरा है कि जब भी स्पीकर खड़े होते हैं, तो दूसरे सदस्य बैठ जाते हैं। हालांकि, अक्सर ऐसा होता था कि सांसद स्पीकर के निर्देशों को अनसुना करते हुए टीका-टिप्पणी में जुटे रहते थे, लेकिन नए स्पीकर ‘आसन पैरों पर है’ कहकर सांसदों को मर्यादा याद दिलाने में ओम बिड़ला कामयाब हो जाते हैं।
  • लोकसभा स्पीकर का सबसे ज़्यादा ज़ोर लोकसभा को सुचारू रूप से चलाने और काम निपटाने पर है। प्रशनकाल में एक मिनट भी बर्बाद नहीं हो इसके लिए वह लंबे प्रशन पूछने और लंबे जवाब को भी छोटा करने पर जोर देते हैं। बिरला ने एक घंटे के शून्यकाल की परंपरा को खत्म करने के अलावा विपक्ष को मंत्री के जवाब के बाद सफाई देने जैसी नई परंपरा भी शुरू की।
  • शून्यकाल के दौरान ज़्यादा से ज़्यादा नए सदस्यों को बोलने के मौके देने की शुरुआत भी इन्हीं के कार्यकाल में हुई। वहीं सदस्यों के लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पीछे आकर मार्शल से बात करने और उन्हें पर्ची देने की परंपरा को खत्म कर दिया है। संसद सदस्यों को अपनी जगह से बैठे-बैठे बोलने और टोका-टोकी करने पर भी रोक लगाई है।
  • पहले लोकसभा सत्र के दौरान जब कभी निवृत्तमान सदस्य की मौत हो जाती थी तो सदन में श्रद्धांजलि देने के बाद कार्यवाही को दिनभर के लिए स्थगित कर दिया जाता था। लेकिन अब इस परंपरा को भी बदल दिया गया है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के छोटे भाई और बिहार से लोजपा के समस्तीपुर से सांसद रामचंद्र पासवान का निधन हो गया था। इसके बाद कार्यवाही को केवल आधे दिन के लिए ही स्थगित किया था।

लोकसभा अध्यक्ष संसद सत्र के दौरान पूरे समय संसद भवन में ही मौजूद रहते हैं। लोकसभा की कार्यवाही खत्म होने के बाद वे संसदीय कार्यमंत्री और लोकसभा सचिवालय के अधिकारियों के साथ बैठक कर अगले दिन की तैयारी करते हैं। इन्हीं छोटे-छोटे लेकिन प्रभावी कदम उठाकर ओम बिड़ला ने लोकसभा की मर्यादा फिर से लौटा दी है। वह पहले ही दिखा चुके हैं कि सदन की कार्यवाही को वह हल्के में नहीं ले रहे हैं। इस दौरान वह शशि थरूर और अधीर रंजन को भी टोकने से नहीं हिचके।

भारतीय लोकतन्त्र के लिए लोकसभा केन्द्र बिन्दु है। वर्षों से, हंगामे और स्थगन को हथियार बना कर इसकी कार्यवाही और उपयोगिता को कुंद किया गया था। बता दें कि 11वीं, 14वीं, 15वीं और 16वीं लोकसभा के पहले सेशन में कोई भी बिल पास नहीं हो पाया था। हालांकि, लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिड़ला के कार्यकाल में चीजें काफी हद तक बदल चुकी हैं। यह कहा जा सकता है कि मोदी-शाह की जोड़ी ने एक सही व्यक्ति को ऐसे  ऐतिहासिक सुधार के लिए चुना।

Tags: अमित शाहकांग्रेसनरेंद्र मोदीभाजपालोकसभालोकसभा स्पीकर
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