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मिलिए पूर्वांचल के ‘बाहुबलियों’ से, जो आगामी चुनाव के बाद बन सकते हैं इतिहास

कभी 'फायर' थे अब 'कायर' हो गए हैं!

Ankit Kunwar द्वारा Ankit Kunwar
20 January 2022
in राजनीति
पूर्वांचल बाहुबली
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मुख्य बिंदु
  • ये हैं पूर्वांचल के पांच बाहुबली
  • आतंक और अपराध के सहारे राजनीति में रखा कदम
  • उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने बाद इन बाहुबलियों का खत्म हो गया वर्चस्व

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र वाराणसी, प्रयागराज जैसी धर्म नगरियों, श्री काशी विश्वनाथ धाम, श्री गोरखनाथ धाम, संगम जैसे तीर्थ, BHU इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थानों के अतिरिक्त अपने बाहुबलियों के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था। 1980 के दशक में रेलवे के ठेके से लेकर जमीन कब्जाने तक बाहुबलियों ने पूर्वांचल के हर छोटे बड़े आर्थिक संसाधन पर कब्जा कर रखा था। गोरखपुर में हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह की शत्रुता से शुरू हुई कहानी में एक के बाद एक वीरेंद्र शाही और श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे कई बाहुबली गैंगस्टर जुड़ते गए।

लेकिन पूर्वांचल में बाहुबली संस्कृति को संस्थागत ढांचा दिया मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी एवं उनके शत्रु गुट त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह ने। वर्ष 2017 के पूर्व उत्तर प्रदेश में छोटे बड़े गिरोह किसी ने किसी राजनीतिक दल का हिस्सा थे और उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। बदले में इन राजनीतिक दलों को चुनावी लाभ से लेकर फंडिंग तक यह बाहुबली मुहैया कराते थे।

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1. मुख़्तार अंसारी 

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का पहला बाहुबली नेता है मुख्तार अंसारी। अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में हुआ था। वह किशोरवस्था से ही निडर और दबंग रहने के कारण राजनीति में सक्रीय रहा। पूर्वांचल में विकास को जमीन कब्जाने की बात आई तब मुख्तार अंसारी और साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह के बीच खटपट हुई। थोड़े दिन बाद मुख्तार ने ब्रजेश सिंह के साथ दुश्मनी मोल ली। अंसारी ने छात्र राजनीति के बलबुते पर अपराध की दुनिया में कदम रखा। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में अंसारी की पैंठ कायम होने लगी।

ब्रजेश सिंह को पटखनी देकर बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल का अकेला गैंग लीडर बना फिर उत्तर प्रदेश की राजीनीति में आने के बाद मुख्तार कई विधायक रहा किन्तु 2017 के बाद योगी राज में मुख्तार अंसारी के मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स को जब्त कर लिया गया। इसके अतिरिक्त लखनऊ में अवैध मकान गिराया गया और संपत्ति जब्त की गई। वाराणसी जोन में 140 करोड़ की संपत्ति पर सरकार ने कब्जा कर लिया। अंसारी को अलग अलग कार्रवाई में अब तक 350 करोड़ का नुकसान हुआ है। साथ ही मुख्तार अंसारी के प्रमुख गुर्गे, हनुमान पांडेय, शार्प शूटर अलीशेर उर्फ डॉक्टर सहित कई अन्य लोग मारे गए। इसी दौरान मुन्ना बजरंगी और मेराज खान की जेल में हत्या हो गई, हालांकि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं था।

2. अतीक अहमद

पूर्वांचल का दूसरा बाहुबली है अतीक अहमद। अतीक का जन्म 10 अगस्त 1962 को हुआ था। बचपन से पढ़ाई में कमजोर होने कारण अतीक ने राजनीति में एंट्री के लिए आतंक का रास्ता चुना। महज 17 साल की उम्र में अतीक पर हत्या का आरोप लगा किन्तु वह इस आरोप से डरे बिना आतंक के रास्ते पर चलता रहा। वर्ष 1992 में इलाहाबाद पुलिस ने अतीक के बुरे कामों की फेहरिस्त जारी कर बताया कि अतीक सिर्फ उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में अपितु बिहार में भी कई हत्याएँ और जबरन वसूली की। इस बाहुबली पर कुल 96 मामले दर्ज थे।

अतीक ने समाजवादी पार्टी से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की फिर अपना दल का दामन थाम लिया। अतीक पर दर्ज मामलों में किसी में अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मुख्तार अंसारी की तरह ही अतीक अहमद के सभी करीबी लोगों की लाइसेंसी बंदूक के लाइसेंस रद्द कर दिये गए। अतीक की गिरफ़्तारी पर पुलिस ने ईनामी घोषणा कर दी फिर क्या था अतीक अहमद की 8 करोड़ की संपत्ति जप्त करने के साथ ही प्रयाग और दिल्ली के खाते सीज कर दिए गए। इसके अतिरिक्त कुल मिलाकर अब तक 200 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है।

3. धनंजय  सिंह 

पूर्वांचल के तीसरे बाहुबली हैं पूर्व सांसद और जौनपुर के माफिया धनंजय सिंह। सिंह का जौनपुर पर एकछत्र राज था। अतीक अहमद की तरह ही 1990 में धनंजय सिंह पर हाई स्कूल में पढ़ाई के दौरान पूर्व शिक्षक के हत्या का आरोप लगा। हालांकि, पुलिस अभी तक इस मामले की जाँच कर रही है। वहीं, लखनऊ यूनिवर्सिटी से पढाई पूरी करने के बजाये धनंजय सिंह ने ठेकेदारी का काम करना शुरू किया और इस ठेकेदारी के बलबूते पर राजनीति में कदम रखा।

धनंजय सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी से वर्ष 2002 में जौनपुर चुनाव लड़ा और विधायक बने। वर्त्तमान में, इस बाहुबली की स्तिथि यह है कि उसके बेटे स्वयं योगी आदित्यनाथ से पिता को बचाने की गुहार लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें भय है कि पुलिस उनका एनकाउंटर कर देगी। कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर से सभी परिचित हैं। योगी सरकार में ना केवल विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ बल्कि उसके पूरे साम्राज्य का अंत किया गया।

4. बृजेश सिंह

पूर्वांचल के चौथे बाहुबली हैं बृजेश सिंह। इनका जन्म वाराणसी में हुआ था। वो बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में काफी होनहार रहा। बृजेश ने यूपी कॉलेज से बीएससी की पढाई की। बृजेश की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 27 अगस्त 1984 को बृजेश के पिता रविन्द्र सिंह की हत्या कर दी गई। इस हत्या को उसके विरोधी हरिहर सिंह और पांचू सिंह के साथियों ने मिलकर अंजाम दिया था।

सत्ता पाने और बाहुबली बने रहने की लड़ाई में पिता की मौत ने बृजेश सिंह के मन में बदले की भावना को उत्पन्न किया। बृजेश जो कभी होनहार लड़का हुआ करता था, उसने जाने अनजाने में अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। बदले की आग से व्याकुल बृजेश ने अपने पिता के पांच हत्यारों को मार डाला। उसके इस बाहुबली अंदाज ने मुख्तार अंसारी से दुश्मनी मोल ली, जिसके चलते बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई।

5. हरिशंकर तिवारी

पूर्वांचल के पांचवें बाहुबली हैं हरिशंकर तिवारी। भारत की राजनीत में गोरखपुर ने उत्तर प्रदेश को ना केवल योगी आदित्यनाथ जैसा कर्मठ और स्वच्छ व्यक्तित्व का नेता दिया अपितु गोरखपुर से राजनीति का अपराधीकरण भी शुरू हुआ था। यहां के बाहुबली हरिशंकर तिवारी थे, जो इसके सबसे बड़े अगुवा थे। एक समय था जब पूर्वांचल की राजनीति में तिवारी की तूती बोलती थी। रेलवे से लेकर पीडब्लूडी की ठेकेदारी में हरिशंकर का कब्जा था। उसके दम पर तिवारी ने एक बहुत बड़ी मिल्कियत खड़ी कर दी। तिवारी पूर्वांचल के पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने जेल में रहकर चुनाव जीता।

और पढ़ें: अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों से योगी सरकार ने वसूले 11.28 अरब रुपये

यूँ तो इस सूची में पूर्वांचल के दिग्गज बाहुबलियों का नाम है किन्तु आज उत्तर प्रदेश के ये बाहुबली अपना वर्चस्व खो चुके हैं। जब उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की एंट्री हुई तो सबकुछ बदल गया। योगी सरकार ने एक के बाद एक बाहुबलियों पर इस प्रकार कार्यवाही की कि इस पूरे नेक्सस की नींव हिल गई। अंसारी और सिंह की अदावत में मुख्तार सबसे बड़े बाहुबली के रूप में उभरा।

बृजेश सिंह ने उत्तर प्रदेश छोड़ दिया और जब 2008 में वापस आया तब तक अंसारी परिवार, उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूरी तरह से हावी हो चुका था। किन्तु 2017 के बाद सभी गिरोहों को अपनी गतिविधियों पर रोक लगानी पड़ी। इस बीच जो अब भी सक्रिय रहे, विशेष रूप से जो सबसे ताकतवर परिवार है, उसपर योगी सरकार की कार्रवाई होती रही। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि आगामी उत्तर प्रदेश चुनाव में अगर भाजपा सत्ता में आती है तो इन बाहुबलियों का बचा-खुचा प्रभाव भी खत्म हो जायेगाा और इन बाहुबलियों की कथा इतिहास के पन्नों में लिप्त हो जाएगी।

Tags: उत्तर प्रदेश चुनावपूर्वांचलबाहुबलीभारतीय राजनीति
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