रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध क्या छेड़ा तमाम देश मिलकर पुतिन के पीछे पड़ गए। खासतौर पर पश्चिमी देशों की तरफ से प्रयास हुए कि वो पूरी दुनिया में रूस को अलग-थलग कर दें। इसके लिए इन देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों की बौछार की गई। पश्चिमी देशों का लगा था कि वो इन प्रतिबंधों के जरिए रूस को घुटने पर आने को मजबूर कर देगा। परंतु पश्चिमी देशों के घमंड को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चकनाचूर कर दिया। रूस के विरुद्ध चले गए पश्चिमी देशों के तमाम दांव उल्टे ही साबित हुए।
दरअसल, पश्चिमी देशों द्वारा पुतिन की नीतियों को कम अंतर आंका। यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी। पश्चिमी देशों को लगा कि वे रूस पर प्रतिबंध लगाकर पुतिन को युद्ध रोकने के लिए मजबूर कर देंगे और यह उनकी जीत होगी। परंतु वो इसमें कामयाब नहीं हो पाए। वजह थी पुतिन की युद्ध को लेकर तैयारी। पुतिन यह अच्छे से जानते थे कि वो अगर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे तो उन्हें तमाम देशों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। पश्चिमी देश एकजुट होकर रूस को अलग-थलग करने के प्रयास करेंगे। इसी वजह से पुतिन ने पहले ही इनका सामना करने की तैयारी कर रखी थी और इन्हीं कारणों से उन्होंने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को “बच्चों का खेल” बना दिया।
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पश्चिमी देशों के प्रतिबंध का रूस पर कोई असर नहीं
पश्चिमी देशों के द्वारा जब तमाम तरह के प्रतिबंध लगाने की शुरुआत हुई, तो ऐसा माना जाने लगा कि यह रूस को बर्बाद कर देगा। अनुमान लगाया जा रहा था कि प्रतिबंधों से रूस की जीडीपी में 10 से 15 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। परंतु अब यह अनुमान अब गिरकर 5 प्रतिशत तक आ गया है, जिससे पता चलता है कि युद्ध और प्रतिबंधों का सामना करने के लिए पुतिन अच्छी तरह से तैयार थे। सबसे बड़ा प्रतिबंध पश्चिमी देशों ने रूसी तेल और गैस के आयात पर लगाया। रूस प्राकृतिक गैसों का सबसे बड़ा निर्यातक और तेल का तीसरा बड़े निर्यातक देश है। पश्चिमी देशों ने सोचा कि वो ऐसा कर रूस को झुकाने में कामयाब हो जाएंगे।
पश्चिमी देश के यह प्रतिबंध भी वास्तव में कारगर साबित नहीं हुए। पश्चिमी देशों का यह दांव उल्टा पड़ गया, क्योंकि रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण पूरी दुनिया में तेल और गैस के दाम में जबरदस्त उछाल देखने को मिला। रूस ने इसी की काट निकालते हुए भारत समेत कई देशों को, जो तेल खरीदने के इच्छुक थे, उनको सस्ते दाम पर अपने तेल और गैस को बेचना शुरू कर दिया। युद्ध के दौरान चीन, भारत और तुर्की जैसे देश रूसी तेल के सबसे बड़े निर्यातक बनकर उभर रहे है। मई महीने में रूस से चीन में कच्चे तेल का आयात रिकॉर्ड 55 फीसदी बढ़ा है। वहीं, भारत पहले केवल 0.2 फीसदी तेल ही रूस से खरीदता था। परंतु अब इसमें 50 गुना अधिक का इजाफा हो गया है। अप्रैल में भारत के तेल आयात में रूस की 10 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यहां तक कि यूएई भी सस्ता रूसी तेल खरीद रहा है। यहां एक दिलचस्प बात यह भी रही है कि कई पश्चिमी देशों ने ही प्रतिबंधों का उल्लंघन किया और रूस के साथ अपना कारोबार जारी रखा।
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पश्चिमी देशों के सपनों पर पुतिन ने फेरा पानी
प्रतिबंधों की घोषणा के बाद रूसी करेंसी रूबल अचानक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिर गई। पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में रूस को इंटरनेशनल पेमेंट स्विफ्ट (SWIFT) से अलग करना भी शामिल था। विदेशों में रूस के बैंक खातों को फ्रीज़ कर दिया गया है। इन प्रतिबंधों के बाद रूस ने कई कदम उठाए। अपनी मुद्रा को बचाने के लिए रूसी केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर को 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया। रूस के निर्यातकों को आदेश दिया कि विदेशों से होने वाली आमदनी का 80 प्रतिशत हिस्सा उनको रूबल में बदलना होगा और गिने चुने लोगों को ही अपना पैसा विदेश भेजने के लिए इजाजत दी गई। अपनी करेंसी को सुरक्षित रखने के लिए रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से मांग की गई कि वो डॉलर या यूरो की जगह बिल का भुगतान रूबल में ही करें।
यूरोप देशों की काफी हद तक निर्भरता रूस से आने वाली गैस पर है। ऐसे में वो रूस से इसे खरीदना बंद भी नहीं कर सकते थे। पुतिन ने आदेश दिया कि विदेशी खरीदार गैस के भुगतान के लिए रूस के गज़प्रॉमबैंक में विशेष खातों का उपयोग करेंगे। इन कदमों ने रूस को SWIFT प्रतिबंधों के प्रभाव से बड़े पैमाने पर बचने में मदद मिली। इसके अलावा पुतिन द्विपक्षीय व्यापार में डॉलर की आवश्यकता को समाप्त करने की दिशा में काम कर रहे है। रूस ने क्रिप्टो की दुनिया में भी प्रवेश किया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के आगे झुकने की बजाए इनका मजबूती से सामना किया। पश्चिमी देशों ने सोचा था कि वो प्रतिबंधों के जरिए रूस को बर्बाद कर देंगे। परंतु पुतिन ने उनके इस दांव को पलट दिया।
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