फ्री फ्री फ्री, आप वोट दीजिए हम आपको सब फ्री में देंगे! अब इस रीत को पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ख़त्म करने में जुट चुकी है। रेवड़ी कल्चर पर पीएम नरेंद्र मोदी भी काफी आक्रामक हैं। वोट बटोरने के लिए धीरे-धीरे सत्ता के दावेदारों में चली इस अलग पहल ने मुफ्त बांटने की नई राजनीति को जन्म दिया है। इससे देश की राजधानी दिल्ली और देश के अन्य कई राज्य अछूते नहीं हैं। ऐसे में समय की मांग को देखते हुए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए एक बड़ी कमेटी के गठन का प्रस्ताव रखा है। इसके आने के साथ ही मोदी सरकार की यह “फ्रीबी कमेटी” केजरीवाल, केसीआर और जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं की सरकार के लिए खतरे की घंटी है, जिनकी सरकार की नींव ही ‘मुफ्त बांटो-राज़ करो’ पर टिकी हुई है।
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दरअसल, केंद्र सरकार ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त ढकोसलों के मुद्दे की जांच के लिए विशेषज्ञों के एक बड़े निकाय के गठन का प्रस्ताव दिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र का विचार था कि “सभी हितधारकों के प्रतिनिधियों के साथ” एक विशेषज्ञ निकाय का गठन करना उचित होगा, जिसमें चुनाव आयोग का भी एक प्रतिनिधि शामिल होगा।
इस पैनल की विस्तृत रूप से बात करें तो केंद्र द्वारा सुझाए गए विशेषज्ञ पैनल में केंद्र और राज्य के वित्त सचिव, राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के एक-एक प्रतिनिधि, वित्त आयोग के अध्यक्ष, एक आरबीआई प्रतिनिधि, नीति आयोग के सीईओ, सीईसी द्वारा नामित एक चुनाव आयोग के प्रतिनिधि, फिक्की और सीआईआई के प्रतिनिधि शामिल हैं। बिजली क्षेत्र में डिस्कॉम जैसे क्षेत्र से भी एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे। केंद्र ने गुरुवार को अपने हलफनामे में कहा कि विशेषज्ञ निकाय में लाभार्थियों और मुफ्त का विरोध करने वालों को शामिल किया जाना चाहिए।
ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र की ओर से कमेटी गठन की सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर आई हैं। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने यह मानने से इनकार कर दिया था कि राजनीतिक दल इस संकट को हल कर सकते हैं। हालांकि, उसने एक विशेषज्ञ निकाय की सिफारिश की थी जिसमें राजनीतिक दल भाग ले सकें। यह सत्य है कि मुफ्त बांटने वाली राजनीति लॉन्ग रन की दृष्टि से देश को एकदम गर्त में धकेलने की नीति है। हालिया उदाहरण, श्रीलंका का है जहां यही नीति देश को कंगाल कर बीच मंझधार में छोड गई। ऐसी हालत भारत की न हो इसलिए पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार समय रहते एक कमेटी बनाकर इसपर चर्चा करने और समझाने के लिए प्रतिबद्ध नज़र आ रही है।
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आपको बताते चलें कि चुनावों से पहले फ्री-फ्री-फ्री की बंदरबांट की घोषणा करने की संस्कृति की शुरुआत तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता ने की थी। उन्होंने फ्रीबी कल्चर शुरू किया और मुफ्त साड़ी, प्रेशर कुकर, टेलीविजन, वाशिंग मशीन आदि देने का वादा किया। अम्मा कैंटीन भी एक बड़ी सफलता थी और उसे अपवाद कहा जाना चाहिए। बस जयललिता के इस फ्री बांटो वाले राग को देश भर के राजनीतिक दलों ने तुरंत अपनाया और जुम्मा-जुम्मा कुछ वर्ष पूर्व बनी पार्टी ने इसका सबसे ज़्यादा लाभ उठाया।
दक्षिण में जे जयललिता के बाद उत्तर में, यह सब दिल्ली से शुरू हुआ। जहां आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2015 में चुनाव जीतने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, बस यात्रा और बहुत कुछ का वादा किया। दिल्ली में शीला दीक्षित के “इरादे मज़बूत हैं, पंद्रह साल सबूत हैं” नारे को और शीला की पंद्रह साल की सरकार को अरविंद केजरीवाल की इसी फ्रीबी नीति ने कड़ी शिकस्त दी। इसके बाद एक वो दिन था और एक आज का दिन है! केजरीवाल सरकार की इस फ्रीबी नीति की काट न राज्य में कांग्रेस कर पाई और न ही भाजपा। प्रचंड बहुमत के साथ 2015 में 68 तो वही 2020 में 62 सीट के साथ ही केजरीवाल के फ्री मॉडल को जनता की स्वीकृति मिली और आम आदमी पार्टी को सत्ता।
ऐसे में कल को केंद्र सरकार की अनुशंसा पर यह कमेटी गठित कर दी जाती है तो इससे केवल आम आदमी पार्टी को ही नहीं बल्कि इस मुद्दे पर कई अन्य दलों को आपत्ति होगी। लगभग हर क्षेत्रीय दल को डर है कि अगर फ्री बांटने वाली स्किम को नियंत्रित किया गया तो अगला विधानसभा चुनाव जीतने की उनकी संभावना कम हो जाएगी। हाल ही में केसीआर की बेटी और विधान परिषद (एमएलसी) की सदस्य कल्वाकुंतला कविता ने कहा कि वे (केसीआर) मुफ्त उपहार नहीं बांट रहे हैं, बल्कि कल्याणवाद में लगे हुए हैं।
वर्तमान में, गरीबी के नाम पर केसीआर की सरकार राज्य में 250 से अधिक ऐसी योजनाएं चला रही है, इसमें क्रमिक ऋण माफी भी शामिल है। वे लक्षित लाभार्थियों तक पहुंचते हैं या नहीं, इसकी कोई निगरानी नहीं है। जाहिर है, अगर यह दशकों तक जारी रहा तो ऐसी योजनाएं जिनकी लंबी उम्र उनकी सफलता के बारे में बताती हैं, संक्षेप में कहें तो वे असफल रहे हैं लेकिन केसीआर चर्चा में नहीं आएंगे। हाल ही में केसीआर सरकार ने घोषणा करते हुए कहा कि राज्य सरकार 10 लाख नए लाभार्थियों को 2,016 रुपये सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान करेगी। इससे सरकारी ख़ज़ाने पर 201 करोड़ का अतिरिक्त दबाव भी पड़ेगा।
इसके अलावा आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी भी राज्य की जनता को ठगने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं! YSR कांग्रेस लोगों को फ्री-फ्री की अग्नि में धकेलकर अपना वोट बैंक बनाने का कुत्सित प्रयास कर रही है। वर्ष 2024 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं जिसके लिए लोगों पर फ्री का जाल फेंका गया है!
वहीं, दूसरी ओर दिल्ली और पंजाब में सत्ता और अन्य बुनियादी ढांचे के बिगड़ने के बाद, केजरीवाल की पार्टी ने अब घोषणा की है कि वे गुजरात के महिला मतदाताओं को 1,000 रुपये प्रतिमाह प्रदान करेंगे। मतलब साफ़ है, बुनियादी ढांचे को ठीक करने के बजाय यह सभी क्षेत्रीय दल राज्यों की जड़ों को खोखला करने में जुटे हुए हैं। सत्ता प्राप्त करना उनका ध्येय है चाहे उसके लिए उन्हें किसी भी हद तक क्यों न गिरना पड़े। ऐसे में मोदी सरकार की “फ्रीबी कमेटी” केजरीवाल और केसीआर जैसे नेताओं की राजनीति के खात्मे का संकेत है क्योंकि इसके आते ही मुफ्त की रोटियां सेंकने और सरकार बना लेने पर नियंत्रण लग जाएगा।
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