अप्रैल माह में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 के पहले 11 महीनों में रूस से भारत का आयात बढ़कर 8.69 बिलियन डॉलर हो गया, जो कि पूरे वित्त वर्ष 2020-21 में दर्ज 5.48 बिलियन डॉलर के कुल आयात से 58% अधिक है। जबकि रूस को भारत का निर्यात 2021-22 की अप्रैल-फरवरी की अवधि में 3.18 बिलियन डॉलर रहा।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2022 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 0.74 मिलियन बैरल तेल का आयात किया। मई के महीने में इसकी मात्रा 25 मिलियन बैरल शिपमेंट थी। इस रिकॉर्ड आपूर्ति के साथ रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आपूर्तिकर्ता बन गया है। यह अब हमारी आयातित तेल जरूरतों के 16 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति कर रहा है और महीने-दर-महीने आधार पर यह आयात बढ़ता ही जा रहा है।
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भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया
आयात में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध। जब से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ है तब से विश्वभर के देश दो गुटों में बंट गए हैं। एक गुट जो रूस के समर्थन में खड़ा है और दूसरा गुट जो रूस के विरोध में यूक्रेन का साथ दे रहा है। ऐसे में केवल भारत एक ऐसा देश है जिसने किसी एक गुट का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया और इस पूरी परिस्थिति में तटस्थ होकर खड़ा है। लगभग हर पाश्चात्य देश ने और जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने भी रूस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। हालाँकि जो प्रतिबन्ध रूस को कमज़ोर करने के लिए लगाए गए थे उन प्रतिबंधों से उन पाश्चात्य देशों को भी बराबर नुकसान हो रहा है।
रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, और यह यूरोप को लगभग 35% प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करता है। हालांकि, युद्ध के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर विभिन्न प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें यूरोपीय बाजार में रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। यूरोपीय कंपनियों ने यूक्रेन पर आक्रमण के विरोध में रूसी कच्चे तेल को छोड़ दिया।
ऐसी स्थिति को देखते हुए रूस ‘सस्ती दर’ पर तेल बेच रहा है। यह वही समय था जिस दौरान पूरा अरब, जहाँ अन्य धर्मों के लोगों को अपने धर्म की स्वतन्त्रता से पालन करने की अनुमति भी नहीं है। वह भारत को धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता का ज्ञान देने लगा। ऐसे में भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया और आज परिणाम यह है कि रूस अब भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है।
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भारत रूस का दशकों पुराना है मजबूत रिश्ता
रूस और भारत के रिश्ते दशकों से मैत्रीपूर्ण रहे हैं। ऐसे में दोनों देशों के मध्य व्यापारिक संबंध बढ़ना अच्छी बात है और यह दोनों के रिश्तों को और घनिष्ठ करने में सहायक होगा। लेकिन ऐसे में यह देखना भी आवश्यक है कि इस समय भारत रूस से जितना आयात कर रहा है उससे कहीं कम वह रूस को निर्यात कर रहा है। इसी के चलते दोनों के व्यापारिक रिश्तों में एक प्रकार का असंतुलन है जहाँ भारत धीरे-धीरे घाटे में जा रहा है।
इससे पहले चीन से भारत भारी मात्रा में अपनी आवश्यकता की चीज़ें आयात करता था। आज भले ही आयात में कुछ कमी आई हो लेकिन फिर भी चीन और भारत में आयात निर्यात का जो असंतुलन है उससे भारत अभी तक नहीं उभर सका है। भारत में इस्तेमाल होने वाली कई चीज़ें चीन से आयात की जाती हैं। इसी को मद्देनज़र रखते हुए यह भय भी गलत नहीं कि कहीं रूस भारत के लिए चीन 2.0 न बन जाए जहाँ से भारत भारी मात्रा में आयात तो कर रहा है लेकिन रूस को भारत का निर्यात बहुत कम है।
अब समय आ गया है कि सरकार रूस के साथ इस व्यापारिक रिश्ते में संतुलन लाने का प्रयास करे। जितना रूस से आयात किया जाता है लगभग उतना ही उसे किसी न किसी रूप में निर्यात करने की भी कोशिश की जाए।
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