जब भी हम भारत में बड़े-बड़े साम्राज्य का नाम लेते हैं तो उनमें मौर्य साम्राज्य का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। बड़े ही योग्य एवं पराक्रमी योद्धाओं ने इस साम्राज्य के अंतर्गत एक विशाल अखंड भारत की रूप रेखा खींची। वस्तुतः मौर्य साम्राज्य की भौगोलिक सीमाएं गंगा नदी, ब्रह्मपुत्र, पूर्वी और पश्चिमी घाट, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और सिंधु नदी तक फैली हुई थी। इतने विशाल साम्राज्य पर शासन करने के लिए असमान्य रणनीति की आवश्यकता पड़ती, विशाल क्षेत्र में फैले होने के कारण सुदूर क्षेत्रों में तैनात अधिकारियों द्वारा हमेशा विद्रोह करने का भय बना रहता था। इसी क्रम में पराक्रमी राजा चंद्रगुप्त मौर्य के युग में गुप्तचर व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ बनाया गया ताकि ऐसे अधिकारियों पर नियंत्रण रखा जा सके।
मूलतः इस गुप्तचर व्यवस्था के अंतर्गत गुप्त संवाददाता एवं भ्रमणशील निर्णायकों का उपयोग किया जाता था। ये संवाददाता एवं निर्णायक सुदूर क्षेत्र में रह रहे अधिकारियों द्वारा किए गए क्रियाकलापों का गुप्त रूप से भलीभांति निरीक्षण करते थे और राजा को इस सम्बंध में सूचना देते थे। इन सब का सम्मिलित रूप से यदि अर्थ निकाला जाए तो ये गुप्तचर व्यवस्था समूचे साम्राज्य में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। इसी क्रम में भारत में भी इंटेलिजेंस ब्यूरो और रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग जैसी गुप्तचर एजेंसी का गठन किया गया।
इंटेलिजेंस ब्यूरो की स्थापना 1887 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा केंद्रीय विशेष शाखा के रूप में की गयी थी। स्वतंत्रता के पश्चात् 1968 तक यह घरेलू और विदेशी दोनों तरह की खुफिया सूचनाओं को संभालता था, अतः विदेशी खुफिया जानकारी शुरू में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) द्वारा नियंत्रित की जाती थी। लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में खुफिया विफलता के कारण एक अलग बाहरी खुफिया एजेंसी की आवश्यकता को भांपा गया। जिसके बाद विशेष रूप से विदेशी खुफिया जानकारी के लिए रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का गठन किया गया।
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रोमांचक किंतु खतरनाक मिशन
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी है जिसका प्राथमिक कार्य विदेशी खुफिया जानकारी एकत्र करना, आतंकवाद का मुकाबला करना, भारतीय नीति निर्माताओं को सलाह देना और भारत के विदेशी रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाना है। अपने इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रॉ ने एक से एक उत्तम खूफिया मिशन चलाए जिसकी चर्चा आज हम इस लेख में करेंगे और आपको भी रॉ के कुछ रोमांचकारी किंतु खतरनाक मिशन के बारे में बताएंगे जिन्होंने भारत की मजबूत नींव का निर्माण किया।
ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा- याद करिए भारत का स्माइलिंग बुद्धा परमाणु कार्यक्रम, इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए रॉ को पूरे ऑपरेशन को गुप्त रखने का काम सौंपा गया था। यह पहली बार था कि रॉ को भारत के अंदर किसी प्रोजेक्ट में शामिल होने के लिए कहा गया था। अंत में 18 मई, 1974 को भारत ने पोखरण में 15 किलोटन प्लूटोनियम उपकरण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया और परमाणु तैयार राष्ट्रों के कुलीन समूह का सदस्य बन गया। न केवल बिना किसी बाधाओं के ऑपरेशन को पूरा किया गया बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की खुफिया एजेंसियों को भी इस परमाणु उपकरण के हुए परीक्षण पर आश्चर्य हुआ था। इसी की देन है कि आज भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र के रूप में उभरा है।
खालिस्तानियों एवं ISI को जब चारों खाने चित्त किया- 80 के दशक की बात करें तो भारत के लिए वो दौर काला था, ISI के समर्थन से खालिस्तानी उग्रवाद अपने चरम पर पहुंच रहा था। कठिन समय में रॉ ने पंजाब में आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए दो गुप्त टास्क फोर्स का गठन किया। काउंटर इंटेलिजेंस टीम- X या CIT-X, और काउंटर इंटेलिजेंस टीम- J या CIT-J।. CIT-X का उद्देश्य पाकिस्तान को निशाना बनाना था जबकि CIT-J को खालिस्तानी समूहों को निशाना बनाना था। रॉ ने न केवल पंजाब की सड़कों से खालिस्तानी आतंकवादियों को खदेड़ दिया बल्कि पाकिस्तान के कई प्रमुख शहरों को भी अस्थिर कर दिया। अंततः रॉ ने ISI को पीछे हटने और वहां अपनी सभी गतिविधियों को समाप्त करने के लिए मजबूर कर दिया और जीत भारत की हुई।
ऑपरेशन कहूता- पाकिस्तान की प्रमुख परमाणु हथियार प्रयोगशाला, खान रिसर्च लेबोरेटरीज (KRL) भी लंबी दूरी की मिसाइल विकास के लिए एक उभरता हुआ केंद्र था। KRL पंजाब प्रांत, पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में काहूता नामक एक छोटे से शहर में स्थित है। रॉ को सबसे पहले काहूता के पास नाई की दुकानों से बालों के नमूनों का विश्लेषण करके पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों के बारे में पता चला। बालों ने दिखाया कि पाकिस्तान ने हथियारों के लिए यूरेनियम को इनरिच करने का तरीका खोज लिया था। रॉ ने पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठानों में घुसपैठ करने के इरादे से ”ऑपरेशन कहूता” शुरू किया, लेकिन हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा अति उत्साहित होकर की गयी गलती के कारण यह योजना सफल नहीं हो पायी। मोरारजी देसाई ने गलती से रॉ की इस योजना को पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया-उल-हक से बातों-बातों में बता दिया।
ऑपरेशन चाणक्य- कश्मीर में हिंसा के परीक्षण के समय के दौरान रॉ को विभिन्न ISI समर्थित कश्मीरी अलगाववादी समूहों में घुसपैठ करने और कश्मीर की खूबसूरत घाटी में शांति बहाल करने का काम सौंपा गया था। रॉ न केवल इस क्षेत्र में सफलतापूर्वक घुसपैठ करने में कामयाब रहा बल्कि घाटी में कश्मीरी अलगाववादी समूहों के प्रशिक्षण और वित्त पोषण में ISI की भागीदारी का सबूत भी एकत्रित करने में सफल रहा। अतः शांति भी बहाल हो गयी और ऑपरेशन ने कश्मीर में भारतीय समर्थक समूहों के निर्माण को भी चिह्नित किया।
ऑपरेशन लीच- अराकान (म्यांमार के जातीय लोग) से घिरे घने जंगलों के कारण म्यांमार हमेशा भारतीय खुफिया तंत्र के लिए एक मुश्किल क्षेत्र रहा है। वस्तुतः भारत लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहता था और इस क्षेत्र में एक मित्रतापूर्ण सम्बंध निभाने वाली सरकार चाहता था। इसके लिए रॉ ने काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) जैसे क्षेत्र में बर्मी विद्रोही समूहों और लोकतंत्र समर्थक दलों की स्थापना की। भारत ने केआईए को जेड और कीमती पत्थरों में व्यापार करने की अनुमति दी, उन्होंने उन्हें हथियार भी दिए लेकिन जब केआईए के साथ संबंध खराब हो गए और यह उत्तर-पूर्वी विद्रोही समूहों के लिए प्रशिक्षण और गोला-बारूद का स्रोत बन गया तो रॉ ने ऑपरेशन लीच शुरू किया। उनका मिशन अन्य विद्रोही समूहों के लिए एक उदाहरण के रूप में बर्मी विद्रोही नेताओं की हत्या करना था जिन्होंने म्यांमार और भारत के कल्याण के विरुद्ध षड्यंत्र रचा था। 1998 में छह शीर्ष विद्रोही नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी और 34 अराकानी गुरिल्लाओं को देश में बंदूक चलाने के क्रम में गिरफ्तार भी किया गया था।
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यह रॉ द्वारा चलाए गए कुछ ऐसे ऑपरेशन थे जिन्होंने भारत को दशा, दिशा और चाल तीनों को क्रांतिकारी रूप से बदलकर रख दिया। आज भारत जिस शिखर पर खड़ा है उसका बड़ा हिस्सा रॉ के हिस्से में आता है।
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