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राजू श्रीवास्तव: ऐसा रत्न ढूंढने से भी नहीं मिलेगा

राजू श्रीवास्तव: एक ऐसे कॉमेडियन जिन्हें लोगों को हंसाने के लिए अश्लीलता और फूहड़ता को अपने कॉन्टेंट में ठूंसना नहीं पड़ा।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
23 September 2022
in समीक्षा
राजू श्रीवास्तव
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पता है संसार में सबसे कठिन कला क्या है? पहाड़ चढ़ना? 100 मीटर की रेस दौड़ना? देश जीतना? नहीं, अच्छा खाना पकाना और लोगों को हंसाना? चकरा गए? संसार में किसी भी व्यक्ति से पूछ लीजिए, आपको यही उत्तर मिलेगा कि भोजन पकाने और लोगों को हंसाने से कठिन संसार में कुछ नहीं है और जो इसमें तनिक भी पारंगत हो गया, समझ लीजिए उसका कोई तोड़ नहीं है। ऐसे ही एक योग्य कलाकार थे राजू श्रीवास्तव, जो अब दुर्भाग्यवश हमारे बीच नहीं रहे।

इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों हमें राजू श्रीवास्तव की उस विरासत को आगे बढ़ाने और सहेजने की आवश्यकता है, जहां उन्हें लोगों को हंसाने के लिए न राजनीति के बैसाखी की आवश्यकता पड़ी और न ही अश्लीलता और फूहड़ता को अपने कॉन्टेंट में ठूंसना पड़ा।

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हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव

हाल ही में हृदयाघात के पश्चात एक लंबी लड़ाई लड़कर दिल्ली के एम्स में हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने 58 वर्ष की आयु में अंतिम श्वास ली। अपने पीछे छोड़ गए एक ऐसी विरासत, जिसका अनुसरण करना बहुतों के लिए कठिन होगा और कइयों के लिए लगभग असंभव। पर क्या हम रोएं? पता नहीं, क्योंकि अपने गजोधर बाबू स्वयं तो ऐसा नहिए चाहते होंगे। उनके जीवन को संक्षेप में कहे तो एक ट्वीट अनुसार, “एक युग ऐसा भी था जब बिना **** और ** ** के भी लोगों को हंसाया जा सकता था कभी और उस युग के सूत्रधार थे राजू श्रीवास्तव। ऐसा कलाकार– न भूतो न भविष्यति।

ॐ शान्ति। भगवान आपको सद्गति दें” –

एक युग ऐसा भी था जब बिना “फक” और “एमसी बीसी” के भी लोगों को हंसाया जाता था कभी और उस युग के सूत्रधार थे #RajuSrivastav. ऐसा कलाकार – न भूतो न भविष्यति।

ॐ शान्ति। भगवान आपको सद्गति दें।

— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) September 21, 2022

कानपुर में 25 दिसंबर 1963 को जन्मे राजू श्रीवास्तव ने हास्य और व्यंग्य में अपना करियर आजमाने का निर्णय किया। श्रीवास्तव 1993 से हास्य की दुनिया में काम कर रहे थे। उन्होंने कल्याणजी आनंदजी, बप्पी लाहिड़ी एवं नितिन मुकेश जैसे कलाकारों के साथ भारत व विदेश में काम किया है। वह अपनी कुशल मिमिक्री के लिए जाने जाते हैं। इतना ही नहीं, 1989 से उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों में छोटे-मोटे ही सही परंतु कॉमिक रोल करने पर ध्यान दिया, चाहे तेज़ाब हो, मैंने प्यार किया हो, बाज़ीगर हो, वाह तेरा क्या कहना ही क्यों न हो।

परंतु उनको असली सफलता मिली स्टैंड अप कॉमेडी शो ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज से। इस शो में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन की बदौलत वह घर-घर में सबकी जुबान पर आ गए। राजू इस शो के विजेता नहीं बन पाए, परंतु इस शो के सबसे लोकप्रिय प्रतिभागियों में से एक थे, क्योंकि जो कनपुरिया लहजा और जो देसी शैली वो लेकर अपने हास्य व्यंग्य में लाए थे, उसे उनसे पूर्व शायद ही कोई लाया होगा।

आज जब राजू श्रीवास्तव हमारे बीच नहीं हैं तो कुछ निकृष्ट व्यक्ति अपनी कुंठा दिखाने से बाज नहीं आ रहे, और इन्हीं में से एक हैं भंग ग्रुप AIB के सदस्य रोहन जोशी, जिन्होंने राजू श्रीवास्तव को अपमानित करने के उद्देश्य से ये पोस्ट किया –

“राजू श्रीवास्तव ने नए स्टैंड अप कॉमेडियनों को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हमने कुछ नहीं खोया है। Fu%k Him. उन्हें कॉमेडी की भावना के बारे में कुछ नहीं पता था, भले ही उन्होंने एकाध अच्छे चुटकुले मारे होंगे। जिन भक्तों ने आपदा के वक्त अपनों को खोया, वो तनाव न लें। उनके पापा और अक्षय कुमार एक मंदिर बनवा रहे हैं, वहाँ प्रार्थना कर लेना आत्मा की शांति के लिए। मुझे राजू श्रीवास्तव के जाने का कोई दुःख नहीं” –

Rohan Joshi of AIB is abusing #RajuSrivastav & celebrating his death

These are people who in the name of comedy even went to the extent of Pedophilia, now abusing a natural comedian who was widely respected

Don't forget the people who supported them and their sexual misconduct pic.twitter.com/q4Pl4Ebo9z

— Vikrant ~ विक्रांत (@vikrantkumar) September 21, 2022

अरे जड़बुद्धि, तुझे क्या पता व्यंग्य क्या होता है, कभी अपने मलाड छाप कूमेडी से ऊपर उठे भी हो? ये वो राजू भैया थे जिन्होंने न लालू यादव को छोड़ा न दाऊद इब्राहिम को। 2010 में, श्रीवास्तव अपने शो के दौरान अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) और पाकिस्तान पर मजाक भी किया करते थे लेकिन उन्हें पाकिस्तान से धमकी भरे फोन आए और चेतावनी दी कि वे इन पर मजाक न करे, पर कुछ उखाड़ पाए? आप तो भाई अपने नेक्स्ट लेवल कचरा जॉक्स को भी पादरियों के समक्ष डिफेन्ड नहीं कर पाए। राजू भाई तो जहां भी होंगे, लोगों को बिना लाग लपेट हंसा ही देंगे, क्या आप बिना एक गाली, बिना किसी फूहड़ शब्द के हंसा पाओगे?

वो भी छोड़िए, हमरे गजोधर भैया तो ऐसे थे कि उन्हें किसी प्रोपगेंडा, फ़रोफगेंडा की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। ये तो वो प्राणी है जो लालू यादव की खटिया उन्हीं के सामने खड़ी कर दें और स्वयं लालू यादव तक हंसे बिना न रह पाएं।

अब ये कथित अभिव्यक्ति के गदरहे क्या सोनिया गांधी या अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध ऐसा बोलने का दुस्साहास कर सकते हैं? राजू भाई की तुलना में ये जो नये मुश्टंडे आए हैं, अपने आप को कॉमेडियन बोलते हैं तनिक इन पर भी कृपा दृष्टि डालते हैं। इनके लिए हास्य बाद में और एजेंडा पहले आता है और एजेंडा में भी सर्वप्रथम ये महत्वपूर्ण है कि अल्पसंख्यकों का हित सर्वोपरि हो।

उदाहरण के लिए आज कॉमेडी के नाम पर या तो ऐसे चुटकुले सुनाए जाएंगे, जिनका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है या फिर उनमें कूट-कूट कर नौटंकी और एजेंडा भरा होगा। इस समस्या पर चर्चित अभिनेता, कॉमेडियन एवं लेखक रिकी जर्वेस ने प्रकाश डाला, जब उन्होंने एक शो में ये बोला।

The struggle is real 😂pic.twitter.com/SR0WFCKmt0

— Ricky Gervais (@rickygervais) September 15, 2022

इस क्लिप का अर्थ स्पष्ट था कि अल्पसंख्यकों का कोई सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं हो सकता और जो लोग कथित रूप से शोषक हैं, वे भले ही स्वयं संख्या से अल्पसंख्यक क्यों न हों उन्हें अपनी लड़ाई लड़ने का कोई अधिकार नहीं। यानी लोगों के लिए मनोरंजन बाद में आएगा, एजेंडा पहले आ जाएगा। यह अब केवल पाश्चात्य जगत तक सीमित नहीं है, इस विषबेल ने भारत में भी जड़ें जमा ली है।

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नये नवेले कॉमेडियन

आज से कुछ वर्ष पहले तक क्या आपने कुशा कपिला, मुनव्वर फारूकी, कुणाल कामरा, समय रैना जैसे कॉमेडियन के बारे में सुना था? इनके उल्लेख मात्र पर आप आज भी खोपड़ी खुजाने लगेंगे – ये हैं कौन? पर इनके कबाड़ को न सिर्फ हमें झेलना पड़ता है, अपितु विरोध करें, तो कहते हैं, इस देश में इंटोलरेन्स बढ़ रही हैं? भई न तो ये कोई परेश रावल, जिनके बिना कोई फिल्म अधूरी लगे, न ये राजपाल यादव, जिनके स्क्रीन पर आने से चार चांद लग जाए, न ये कादर खान, जिन्हें कोई भी रोल दे दीजिए, आग लगा दें। इनके अगर आप जोक सुन लो तो भोलेनाथ की सौगंध, तेज प्रताप यादव आपको देव माणूस लगेगा! भाई एजेंडा-एजेंडा ही करना तो दिल्ली प्रेस क्लब किस दिन के लिए है?

परंतु ये स्थिति आज से पूर्व तो थी नहीं? एक समय ऐसा भी होता था जब कलाकार वास्तव में लोगों को हंसाने के लिए प्रयास करते थे और उनके प्रयास में भरपूर परिश्रम होता था। महमूद जैसे हास्य कलाकार हों, चेतन सशीतल जैसे वॉइसओवर आर्टिस्ट हो या फिर राजू श्रीवास्तव, राजपाल यादव जैसे हास्य कलाकार, इनके चुटीले तंज ऐसे होते थे कि आज भी लोग न केवल इनके प्रशंसक हैं अपितु इनके अभिनय के लिए लालायित हैं। वैसे भी फिर हेरा फेरी के परम प्रिय कचरा सेठ को कैसे भूल सकते हैं?

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि हास्य के इस मनोरम बगिया को किसी की कुदृष्टि लग गयी? कुदृष्टि तो किसी की नहीं लगी परंतु बीमारी अवश्य लगी, जो संगीत का व्यवसायीकरण था। हास्य का भी अंधाधुंध व्यवसायीकरण होने लगा और इसका सबसे बड़ा उदाहरण था – कॉमेडी नाइट्स विद कपिल। द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज से निकलकर आए कपिल शर्मा ने अपने अनोखे शैली में लोगों को हंसाना प्रारंभ किया।

फॉर्मेट भी ओरिजिनल नहीं था क्योंकि ये अंग्रेजी शो – द कुमार्स एट नंबर 42 की कॉपी था लेकिन लोग इसके पीछे हाथ धोकर पड़ गए। परंतु जब कलर्स को इनकी नौटंकी पसंद नहीं आयी तो यह अपनी दुकान लेकर सोनी की ओर निकल पड़े और द कपिल शर्मा शो का पिटारा खोल लिया और फिर जो कॉमेडी की चीर फाड़ प्रारंभ हुई, उसका अब न आदि है न अंत! शायद इसीलिए एक-एक करके कपिल शर्मा शो से कलाकार और दर्शक दोनों विदा होने लगे और अब शो का वही स्टेटस है जो फिल्म उद्योग में बॉलीवुड का और पत्रकारिता में NDTV का।

आज हास्य कला का जो हाल आप देख रहे हैं, उसमें कुछ योगदान तो निस्संदेह वामपंथी कलाकार और काफी योगदान कपिल शर्मा जैसे निकृष्ट लोगों का है लेकिन अधिकतम योगदान व्यवसायीकरण की अंधाधुंध होड़ का है। परंतु क्या अब कोई आशा नहीं है? नहीं ऐसा भी नहीं है। अभिनय में यदि इरफान खान हमें छोड़ कर नहीं जाते तो वो तो थे ही, उनके अतिरिक्त अनुभव सिंह बस्सी, अभिषेक उपमन्यु जैसे कलाकार एवं मेक जोक ऑफ और द कोवर्ट इंडियन (जबकि ये कॉमेडी नहीं है) जैसे यूट्यूब चैनल सिद्ध करते हैं कि यदि मनोरंजन करना है तो बिना अपशब्द, बिना फूहड़ता के भी मनोरंजन संभव है। राजू श्रीवास्तव जैसे रत्न विरले हैं, इन्हे अंधेरें में भी ढूंढने चलो, तो शायद ही मिलेगा।

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