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‘The LallanTop’ पर डॉ विकास दिव्यकीर्ति की रामायण व्याख्या सुनी? अब अतुल मिश्रा का प्रत्युत्तर पढ़िए

विकास दिव्यकीर्ति अपने तर्कों की पुष्टि के लिए जो प्रामाणिक तथ्य लाये थे वे सभी अप्रामाणिक हैं, झूठ हैं, मिथ्या हैं।

Atul Kumar Mishra द्वारा Atul Kumar Mishra
18 November 2022
in संस्कृति
अतुल मिश्रा, विकास दिव्यकीर्ति

Source- TFI

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कुछ दिनों पूर्व दृष्टि आईएएस कोचिंग संस्थान के संस्थापक डॉ विकास दिव्यकीर्ति के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे। उनमें से एक वीडियो मैंने देखा जोकि शंबूक वध से संबंधित था। क्योंकि मैं बाल्यावस्था से ही वाल्मीकि रामायण और वेदव्यास रचित महाभारत का अध्ययन करता आया हूं तो श्री राम के हाथों शंबूक वध की कथा को निराधार सिद्ध करना मेरे लिए कोई दुष्कर कार्य नहीं था। मैंने डॉ विकास दिव्यकीर्ति के कथन को कुछ प्रमाणों द्वारा ध्वस्त किया। वीडियो लोगों ने काफी सराहा, उसे यूट्यूब पर लगभग चार लाख लोगों ने और फेसबुक पर 8 लाख से अधिक लोगों ने देखा। मुझे कुछ आलोचना भी मिली, मुझे विकास दिव्यकीर्ति के पैरों की धूल बताया गया। इसे अंग्रेजी में Ad-Hominem अटैक कहते हैं जिसका अर्थ होता है तथ्यों और विषय की बात न कर लेखक या वक्ता को उसके रूप, वस्त्र, शिक्षा, जाति, वर्ण इत्यादि के आधार पर खरी खोटी सुनाना ताकि वो कहना या लिखना बंद कर दे पर मैं रुकने वालों में से नहीं हूं।

वर्ष 2012 में जब मैंने द फ्रस्ट्रेटेड इंडियन बनाया था, तब से लेकर 2022 तक अर्थात् पिछले 10 वर्ष में मुझे अनेक उत्साहवर्धक संदेश मिले हैं, अनेक घृणापूर्ण आक्षेप मिले हैं, परंतु इन दस वर्षों में मैंने अपमान का भय करना और सम्मान का मोह करना छोड़ दिया है। इसलिए आपका प्रेम और घृणा दोनों स्वीकार है। 2 दिन पूर्व मैंने लललनटॉप चैनल पर विकास दिव्यकीर्ति जी का दूसरा वीडियो देखा। इसमें वो अपने तर्कों की पुष्टि के लिए प्रामाणिक तथ्य लाये थे लेकिन मैं ये सिद्ध कर दूंगा कि उन्होंने जो भी तथ्य प्रस्तुत किए हैं वो सभी अप्रामाणिक हैं- झूठ हैं- मिथ्या हैं।

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अब पूजा छोडते हैं और चलते हैं फिल्म शोले की ओर। जय मर चुका है। वीरू क्रोध से तमतमाया है। वो जाकर गब्बर को मौत के घाट उतार देता है। गब्बर का बेटा जिसे अभी तक जनता ने नहीं देखा है, वो अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने की शपथ लेता है। उसके उपरांत वह गब्बर से भी बड़ा डाकू बनता है। अब ठाकुर लोभी है और वो गब्बर के बेटे से वीरू को मरवाकर खुद ही डकैत बन जाता है। आपको लग रहा होगा कि मैं मार्ग भटक गया हूँ लेकिन ऐसा नहीं है। इन तीनों उदाहरणों का एक ही कारण है जिसके तीन पहलू हैं।

William Shakespeare का उदाहरण भाषायी शुद्धता को प्रमाणित करने के लिए लिया गया है। वाल्मिकीकृत रामायण के सभी पर्वों और उत्तर कांड में आकाश-धरा का अंतर है अगर हम संस्कृत की जटिलता की बात करें। ये मेरा निजी मत नहीं, संस्कृत पंडितों के बड़े समूह का यह तर्क है कि उत्तर कांड परिशिष्ट है, मूल कथा नहीं। और उनका तर्क पात्रों के व्यक्तित्व मे परिवर्तन को लेकर नहीं वरन केवल और केवल संस्कृत की गुणवत्ता को लेकर है। ज्ञात हो कि वाल्मिकी आदि कवि हैं, विश्व के पहले कवि जिन्होंने ईश्वर के विधान से एक क्रौंच पक्षी की हत्या जैसे लघु विषय पर इस श्लोक की रचना की थी।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।।

यह विश्व का पहला श्लोक था और इन्हीं श्लोकों के माध्यम से उन्होंने रामायण की रचना की। यही श्लोक आगे चलकर संस्कृत काव्य के मुख्य निर्माण इकाई बने।

सत्यनारायण भगवान की पूजा का उदाहरण सरल था, यह आपको इसलिए बताया गया क्योंकि ये आज कल होने वाली कथाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय है। श्रोतागण जानते होंगे कि सत्यनारायण भगवान अथवा किसी भी व्रत-पूजन कथा के उपरांत फल-श्रुति का एक अतिरिक्त अध्याय होता है, जिसमें कथा को सुनने के पुण्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन होता है। जैसे इस कथा को सुनने वाले स्वर्ग जाते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं, संतानप्राप्ति होती है, धन, सम्पदा में वृद्धि होती है। अब कथा सुनने के बाद कथा सुनने का फल आए, यही तो तार्किक भी है। वाल्मीकि रामायण में भी कुछ ऐसा होता। युद्ध कांड के कुछ अंतिम श्लोक भगवान राम की इस पावन कथा को सुनने की फल श्रुति को संरेखित करते हैं।

मैं कुछ श्लोक सुनाता हूँ।

युद्ध कांड के 128वें सर्ग के एक सौ छहवें श्लोक में वाल्मीकि जी कहते हैं:

सर्वे लक्षणसम्पन्नाः सर्वे धर्मपरायणाः ।।

दशवर्षसहस्राणि रामो राज्यमकारयत् ।

सभी जन अच्छे गुणों से सम्पन्न थे, सभी धर्मपरायण थे, ऐसे काल में भगवान राम ने 10 हज़ार वर्षों तक राज किया। युद्ध कांड के 128वें सर्ग के ही 107वें और 108वें श्लोक में वाल्मीकि जी कहते हैं:

धर्मयं यशस्यमायुष्यं राज्ञां च विजाअवहम् ।।

आदिकाव्यमिदं चार्षं पुरा वाल्मीकिना कृतम् ।

पठेद्यः शृणुयाल्लोके नरः पापात्प्रमुच्यते ।।

अर्थात् इस विश्व में जो भी व्यक्ति इस पावन कथा को जोकि आदिकवि वाल्मीकि ने लिखी है, किसी सुपात्र के मुख से श्रवा करेगा उसके सभी पाप धुल जाएंगे। इसी सर्ग के 116वें श्लोक में वाल्मीकि जी कहते हैं:

विनायकाश्च शाम्यन्ति गृहे तिष्ठन्ति यस्य वै ।
विजयेत महीं राजा प्रवासि स्वस्तिमान् भवेत् ।।

अर्थात् इस कथा को सुनने वाले व्यक्ति के कष्ट मिट जाते हैं, यदि वह राजा हो तो विजयी होते हैं और अगर प्रवासी हों तो स्वस्थ और सकुशल रहते हैं।

ये तो फल श्रुति जैसा लग रहा है न। परंतु रामायण की कथा तो अभी बाकी है। पूरा उत्तर कांड बाकी है। अभी तो धोबी का आक्षेप होगा, सीता का त्याग होगा, शंबूक वध होगा, लवकुश जन्म होगा, वाल्मीकि जी का प्रवेश होगा, राम सीता मिलन और पुनः अग्नि परीक्षा होगी तो वाल्मीकि जी जैसे महान कवि अचानक फल श्रुति क्यों प्रारम्भ कर देते है? क्योंकि वाल्मीकि ने कथा यहीं समाप्त कर दी थी।

शोले का उदाहरण इसलिए दिया क्योंकि यह बॉलीवुड का सबसे चर्चित चलचित्र है और संभवतः आप सभी ने यह देखा भी होगा। तो मूल शोले में गब्बर का बेटा क्यों नहीं दिखा? ठाकुर का चरित्र तीन सौ साठ डिग्री कैसे घूम जाता है। उत्तर काफी सरल है क्योंकि ऐसा कोई पात्र है ही नहीं और ऐसा कोई चरित्र परिवर्तन भी नहीं। और अगर पात्र ही नहीं तो कथा कैसी? ठीक वैसे ही जैसे कोई शंबूक नहीं, कोई धोबी नहीं, कोई अन्य पात्र नहीं। और अगर चरित्र परिवर्तन नहीं तो सीता का परित्याग भी नहीं, भूमि में उनका प्रवेश भी नहीं। कुछ भी नहीं।

तो जिस उत्तर कांड के संस्कृत को पंडित वाल्मीकि की शैली नहीं मानते, जिस उत्तर कांड से पहले ही फल श्रुति हो चुकी हो और जिस उत्तर कांड में नए चरित्र और पुराने चरित्रों का चरित्रपरिवर्तन हो चुका हो वो सनातन इतिहास का कोढ़ है, पाप है, मिथ्यावादन है।

और पढ़ें: बागेश्वर धाम: धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का वास्तविक सच क्या है?

कभी सोचा है, श्री राम के चरित्र को धूल धूसरित करने के लिए केवल उत्तर कांड में ही उदाहरण क्यों मिलते हैं। बाल कांड में क्यों नहीं, अयोध्या कांड में क्यों नहीं, अरण्य कांड में क्यों नहीं, किष्किंधा कांड में क्यों नहीं, सुंदरकाण्ड में क्यों नहीं, युद्ध कांड में क्यों नहीं? क्योंकि ये सभी वाल्मिकीकृत थे। भगवान ब्रह्मा ने उनके मानस पटल पर पूरी राम कथा अंकित कर दी थी और वाल्मीकि स्मरण कर सब लिखते थे। जो वाल्मीकि ने लिखा वही रामायण है। उसके अलावा सब रामायण की अच्छी या बुरी प्रतिलिपियाँ हैं। गीता प्रेस के छापने मात्र से उत्तर कांड मूल रामायण का भाग नहीं बन जाता।

तुलसी रामायण मूल रामायण नहीं है

कंब रामायण मूल रामायण नहीं है

कालिदास रामायण मूल रामायण नहीं है

भास्कर रामायण मूल रामायण नहीं है

भवभूति रामायण मूल रामायण नहीं है

और रामानन्द सागर रामायण मूल रामायण नहीं है

केवल वाल्मीकि रामायण मूल रामायण है।

और अंत में डॉ विकास दिव्यकीर्ति से मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं ट्विटर पर भी समय बिताता हूं और अध्ययन में भी। मैं आपकी तरह बुद्धिजीवी नहीं परंतु इतना मूर्ख भी नहीं जो आपके (विकास दिव्यकीर्ति) स्वांग को समझ न सकूं। अगर कुछ पढ़ने में जीभ कटती है तो मत पढ़ो, लज्जा आती है तो मत पढ़ो और अगर पढ़ना ही है तो स्वांग मत करो।

देवता होकर मानवों के साथ मानव बन कर रहने वाले युगपुरुष हैं राम। समाज से बहिष्कृत अहल्या को तारने वाले हैं राम। रावण के अभिमान का मर्दन करने वाले योद्धा हैं राम। पिता की आज्ञा पर राज्य अर्पण करने वाले पुत्र हैं राम। वनवासियों को योद्धा बनाने वाले सेनानी हैं राम। सीता के एक आंसू पर लाखों का संहार कर डालने वाले प्रेमी हैं राम। और आज भी जिनका उदाहरण दिया जाये वैसे अद्वितीय राजा हैं राम। शोध का नहीं, आस्था का विषय हैं राम। यूपीएससी बोर्ड के वामपंथी विचारकों की कुत्सित और विकृत मानसिकता का प्रदर्शन करने का माध्यम नहीं हैं राम। उम्मीद करता हूं कि आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे। धन्यवाद।

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Tags: प्रभु श्रीरामरामचरितमानसवाल्मीकि रामायण
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