G7 Price Cap: रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के स्टैंड से पश्चिम को मिर्ची लगी। हमारे बयानों से पश्चिम को मिर्ची लगी। रूस से भारत के तेल खरीदने के कारण पश्चिम को मिर्ची लगी, लेकिन देश अनावरत आगे बढ़ता रहा और अपने स्टैंड पर कायम रहा। नतीजा यह हुआ कि पश्चिमी देश षड्यंत्र रचते रह गए, भारत पर दबाव बनाते रह गए, तिकड़म लगाते रह गए लेकिन देश रूका नहीं। पश्चिम ने रूस की अर्थव्यवस्था पर चोट करने के इरादे से क्रूड ऑयल पर प्राइस कैप (G7 Price Cap) तक लगा दिया और रूस के साथ-साथ भारत की मुश्किलें बढ़ाने की कोशिश की लेकिन अब इस मुश्किल परिस्थिति का भी समाधान निकल गया है।
यहां समझिए पूरा खेल
दरअसल, हाल ही में G7 देशों ने रूस के तेल पर प्राइस कैप (G7 Price Cap) लगा दिया। भारत को तेल बेच रहे रूस पर नकेल कसने की मंशा से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने 65 डॉलर से 70 डॉलर प्रति बैरल का कैप लगाने की योजना बनाई थी, जिसे 5 दिसंबर से लागू भी कर दिया गया। हालांकि, भारत ने स्पष्ट तौर पर इन सारी चीजों से स्वयं को अलग रखा है। दूसरी ओर रूस ने G7 के फैसले पर ऐतराज जाहिर किया है और धमकी दी है कि वह उन देशों को तेल की आपूर्ति नहीं करेगा जो G7 Price Cap का समर्थन या सहमति दे रहे हैं।
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ज्ञात हो कि G7 Price Cap लागू होने के बाद पश्चिमी देशों ने इंश्योरेंस सर्विसेस और टैंकर चार्टरिंग पर बैन लगा दिया है और भारत के मामले में भी स्थिति ऐसी ही है। भारत इनकी इंश्योरेंस सर्विसेस और टैंकर चार्टरिंग पर निर्भर न रहे, ऐसे में अब रूस, भारत की सहायता हेतु सामने आया है। इंश्योरेंस सर्विसेस और टैंकर चार्टरिंग पर बैन लगने के बाद रूसी उप प्रधानमंत्री ने भारत को बड़ी क्षमता वाले शिप को लीज पर देने और उसके निर्माण में सहायता करने की पेशकश की है। अब रूस के सहयोग से भारत की निर्भरता पश्चिमी देशों से समाप्त हो जाएगी और देश आत्मनिर्भर होकर तेल के आयात पर स्वतंत्र होगा।
नई दिल्ली में रूसी दूतावास ने कहा कि रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने भारत के राजदूत से शुक्रवार को मुलाकात की थी। रूसी उप प्रधानमंत्री ने भारत को बड़ी क्षमता वाले शिप को लीज पर देने और उसके निर्माण में सहायता करने की पेशकश की है। एलेक्जेंडर नोवाक ने शुक्रवार को मास्को में भारतीय राजदूत पवन कपूर के साथ मीटिंग की थी।
रूसी दूतावास ने बताया कि बीते आठ महीनों में भारत में रूस से तेल निर्यात काफी बढ़ा है। भारत में रूसी तेल निर्यात बढ़कर 16.35 मिलियन टन हो गया है। रूस से तेल शिपमेंट के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। दोनों देशों के बीच बढ़ रही करीबी भी पश्चिमी देशों को घाव देने का काम कर रही है। पश्चिमी की ओर से लगातार भारत का विरोध किया जा रहा है लेकिन मोदी सरकार के लिए ‘देशहित’ सर्वोपरि है।
जयशंकर ने कही थी ये बात
आपको बता दें कि रूस से तेल खरीदना जारी रखने पर जोर देते हुए विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने हाल ही में कहा था कि सरकार, भारतीय नागरिकों के हित में बेस्ट डील पॉलिसी पर विश्वास रखती है। उन्होंने कहा कि सरकार, भारतीय कंपनियों को रूस से तेल खरीदने के लिए कोई दबाव नहीं बनाती न ही उनको वहां से तेल खरीदने के लिए कहती है लेकिन भारतीय लोगों के हित में बेस्ट डील की एक बेहतर पॉलिसी को जारी रखने के लिए रोकेंगे नहीं।
एस.जयशंकर ने कहा कि हम अपनी कंपनियों से रूसी तेल खरीदने के लिए नहीं कहते हैं। हम अपनी कंपनियों से तेल खरीदने के लिए कहते हैं। अब यह वह तय करते हैं कि उनके लिए सबसे अच्छा विकल्प क्या है। बाजार में तेजी पर निर्भर करता है कि वह कहां से बेस्ट डील पाएं। उन्होंने कहा कि सरकार बस यही चाहती है कि भारतीय कंपनियां, यहां के लोगों व कंपनी हित में काम करें, उन पर कोई दबाव हम नहीं बना रहे हैं। यानी कुल मिलाकर बात यही है कि पश्चिमी देशों की तमाम कोशिशों को किनारे करते हुए भारत ने अपना स्टैंड क्लीयर रखा है और अब रूस-भारत की दोस्ती का यह नया अध्याय यह पूरी तरह से तय कर रहा है कि दुनिया की कोई भी शक्ति भारत को रोक नहीं सकती है.
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