लक्ष्मण रेखा की कहानी: गोस्वामी तुलसीदास ने प्रभु श्रीराम की कथा को सुंदर रूप में अपने कृति रामचरित मानस में प्रस्तुत किया है, लेकिन कई बार ऐसा प्रतीत होता है मानो वे अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को अधिक स्थान दे रहे हैं। प्रभु श्रीराम की कथा में कई बार गोस्वामी तुलसीदास स्पष्ट रूप से दिखते हैं जिसके अनेक उदाहरण भी मिलते हैं। इस लेख में जानेंगे कि कैसे जिस लक्ष्मण रेखा का उदाहरण देकर आज स्त्री को कथित रूप से ‘मर्यादा’ सिखाई जाती है, अथवा हमारी संस्कृति को बदनाम किया जाता है, उस रेखा (लक्ष्मण रेखा की कहानी) का दूर-दूर तक मूल रामायण से कोई नाता नहीं है।
लक्ष्मी जी को कोई बांध नहीं सकता
कभी तूफान को झाड़ू से रोका है? कभी ज्वार भाटा को खूंटे से बांधने का प्रयास किया है? लक्ष्मी जी को एक स्थान तक सीमित करना भी एक ऐसा ही हास्यास्पद विचार है, परंतु इस संबंध में तुलसीदास की सोच कुछ और ही जान पड़ती है। अपने ‘रामचरित मानस’ में उन्होंने ऐसी कई बातें लिखी है जिसका मूल रामायण में उल्लेख ही नहीं है।
इसी तरह एक प्रश्न उठता है कि क्या लक्ष्मण रेखा का कोई अस्तित्व था? वाल्मीकि रामायण में तो बिल्कुल नहीं। लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी तो शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिए आ गया। परंतु वे तुच्छ सिद्ध हुए, क्योंकि लड़ाई में राम ने केवल नाराच तीरों के माध्यम से खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला।
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अब शूर्पणखा ने जा कर अपने भाई रावण से शिकायत की। प्रारंभ में रावण तनिक भी इच्छुक नहीं था, उलटे उसने शूर्पणखा के अति कुरूप मुख का स्वयं ही उपहास उड़ाया। परंतु देवी सीता के लावण्य का उल्लेख सुनते ही वह उसे पाने को उद्यत हुआ और उसने अविलंब मारीच को स्वर्णमृग बनाकर भेजा, जिसे पाने की अपनी इच्छा देवी सीता ने श्रीराम के सामने रखी। लक्ष्मण को सीता की रक्षा की आज्ञा देकर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को लेने निकल गए। श्रीराम के हाथों मारीच मारा गया पर मरते-मरते मारीच ने श्रीराम की ध्वनि निकालकर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुनकर देवी सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को श्रीराम के पास जाने को कहा।
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लक्ष्मण रेखा की कहानी – लक्ष्मण रेखा का कोई उल्लेख नहीं
लक्ष्मण इतने उत्सुक नहीं थे, परंतु सीताजी की अधीरता को देखते हुए उन्होंने श्रीराम के पास जाने का निर्णय लिया और वो चले गए। इस बीच देवी सीता और लक्ष्मण के बीच संवाद भी है। अब लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली देवी सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर किया और अपने लंका ले गया। बीच मार्ग में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और जटायु के आघात से उद्वेलित रावण को चंद्रहास तक का प्रयोग करके उसे अधमरा करना पड़ा। यहां पर किसी लक्ष्मण रेखा का कोई उल्लेख नहीं है।
ध्यान देना होगा कि वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड में श्रीराम की आवाज देवी सीता को सुनाई दी, तो वह अधीर हो उठीं। वह चाहती थीं कि लक्ष्मण अविलंब श्रीराम की सहायता को जाएं परंतु लक्ष्मण सुरक्षा कारणों से सीताजी को अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहते थे। परंतु जब देवी सीता ने लक्ष्मण को जाने के लिए पूर्ण रूप से विवश कर दिया तब लक्ष्मण क्रोधित हुए और आवेश में अमंगल के आगमन की बात भी कर दी। परंतु आपने आवेश को तुरंत भांपते हुए उन्होंने आगे जो कहा उसे जानना चाहिए और जो इस श्लोकों से यह स्पष्ट झलकता भी है–
“गमिष्ये यत्र काकुत्स्थ स्वस्ति तेऽस्तु वरानने।।3.45.33।।
रक्षन्तु त्वां विशालाक्षि समग्रा वनदेवताः”।
अर्थात, “मैं तो चला अपने प्रिय श्रीराम के पास, जहां भी वे होंगे। आप प्रसन्न रहना। इस वन के सभी देवता आपकी रक्षा करें!”
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लक्ष्मण रेखा की कहानी – सत्य कुछ और ही है
यहां आप स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि कहीं भी लक्ष्मण रेखा का उल्लेख नहीं है। तद्पश्चात क्या हुआ, यह सभी को पता है। सीताजी का हरण हुआ, और उन्हें बचाने के प्रयास में जटायु वीरगति को प्राप्त हुए। अब सीता को न पाकर राम अत्यन्त दुःखी हुए और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उन्होंने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीताजी को हरण और दक्षिण दिशा की ओर उन्हें ले जाने की बात बताने का उल्लेख होता है। इसके जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अन्तिम संस्कार करके सीताजी की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़ गए।
इन सबके बीच कहीं भी ऐसी बात नहीं हुई है कि देवी सीता के लक्ष्मण रेखा ‘लांघने’ के कारण ये सारे प्रकरण हुए? नहीं, परंतु हमें निरंतर यही बताया गया कि एक लक्ष्मण रेखा थी, जिसके अंदर देवी सीता को रहना था और जिसे लांघने के कारण उनका हरण हुआ। यह बिल्कुल मिथ्या है। पहली बात तो यह कि देवी सीता साक्षात् देवी लक्ष्मी का अवतार थीं जिन्हें कोई किसी सीमा में नहीं बांध सकता था और दूसरी बात यह कि सनातन संस्कृति में स्त्री को बांधने की, उसे सीमाओं में जकड़ने की कोई संस्कृति नहीं है।
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अपने निजी विचारों को दूसरों पर थोपना नहीं चाहिए, परंतु तुलसीदास के रामचरित मानस में ऐसा गाहेबगाहे दिख ही जाता है,जिसका एक उदाहरण लक्ष्मण रेखा की बनायी गयी कथा है। इतना ही नहीं इस असत्य को न जाने कब हम लोगों ने सत्य मान लिया जिसका अनुचित लाभ हमारे धर्म पर लांछन लगाने वाले निकृष्ट लोग उठाते हैं।
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