Human Rights Watch Report: अमेरिका स्थित ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ नाम की एक वेबसाइट ने कई देशों की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें उसने भारत को भी शामिल किया है। इस रिपोर्ट में शिक्षा का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, महिला एवं अल्पसंख्यक अधिकार, शरणार्थी अधिकार, जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियां और विदेश नीति जैसे कई विषयों को ध्यान में रखते हुए 2022 को आधार बनाकर एक रिपोर्ट तैयार की है। लेकिन इस रिपोर्ट में जिस प्रकार भारत की छवि को पेश किया गया है उसे लेकर कई प्रकार के प्रश्न उठ रहे हैं। इसीलिए ‘Human Rights Watch’ की इस report का बिंदुवार विश्लेषण करते हुए जानेंगे कि आखिरकार इस रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसे लेकर लोग इसे शंका की दृष्टि से देख रहे हैं?
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जम्मू-कश्मीर पर पेश किए गए आंकड़े
ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी रिपोर्ट में सबसे पहले जम्मू-कश्मीर में हटाए गए अनुच्छेद 370 को लेकर लिखा है। Human Rights Watch Report में दावा किया गया है कि सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के तीन वर्षों बाद भी हिंसा जारी है। रिपोर्ट में अक्टूबर माह तक 229 लोगों के मारे जाने का दावा भी किया गया ह। साथ ही Human Rights Watch Report में इससे संबंधित किसी जांच के सार्वजनिक न होने का दावा भी किया गया है। लेकिन ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा दिए गए आंकड़े मनगढ़ंत लगते हैं क्योंकि सरकार दावे तो कुछ और ही कहानी बयां करते हैं।
दिसंबर 2022 में ही केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया था कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में 168 प्रतिशत की कमी आई है और आतंकवाद के वित्त पोषण से जुड़े मामलों में दोषसिद्धि दर 94 प्रतिशत से अधिक है। अन्य आंकड़ों पर गौर करें तो जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक (DGP) दिलबाग सिंह ने बताया था कि वर्ष 2022 में 56 पाकिस्तानी नागरिकों सहित कुल 186 आतंकवादी मारे गए थे और इस दौरान 159 को गिरफ्तार किया गया। इस दौरान उन्होंने यह भी दावा किया कि हाल के समय में यह साल सबसे सफल वर्ष रहा। उन्होंने यह भी कहा था कि इस वर्ष के दौरान नागरिक हताहतों की संख्या में भी भारी कमी आई और केवल 24 मामूली कानून व्यवस्था की घटनाएं हुईं। हालांकि प्रयास इस संख्या को शून्य करना है। इसीलिए जम्मू-कश्मीर को लेकर Human Rights Watch Report में किए गए दावे मनगढ़ंत और वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को बदनाम करने का षड्यंत्र प्रतीत होते हैं।
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अल्पसंख्यकों पर अत्याचार
Human Rights Watch ने अपनी Report में एक बिंदु अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव, हिंसा और अधिकारों को लेकर भी रखा गया है, जिसमें कहा गया है कि देश में मुस्लिमों को दबाने के लिए एक ओर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से वंछित किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक की तरह बर्ताव किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई ये है कि जब भारत में “शाहीन बाग” जैसा अल्पसंख्यकों का आंदोलन हुआ तो उन्हें किसी भी प्रकार से जबरदस्ती हटाने का प्रयास नहीं किया उल्टा सरकार ने उनकी समस्या को सुलझाने के लिए बातचीत करने का प्रयास किया था। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा जो भी योजनाएं चलाई जा रही हैं उनका लाभ अल्पसंख्यकों को अधिक ही मिलता होगा। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की बेहतरी के लिए सरकार ने तीन जैसी कुरीति को भी समाप्त करने का कार्य किया है। ऐसे में रिपोर्ट में जो दावे किए गये है वे एकतरफा ही प्रतीत होते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर Human Rights Watch ने अपनी Report में भारतीय मीडिया को आधार बनाया है। उसका कहना है कि भारत में मीडिया को अपना काम करने को लेकर न के बराबर स्वतंत्रता है। यदि पत्रकार सरकार के विरोध में बोलते हैं तो उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल में डाल दिया जाता है। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। वर्तमान समय में भारत में बहुत से लोग सोशल मीडिया पर सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना कर रहे हैं और वो ऐसा करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं।
Human Rights Watch द्वारा तैयार की गई Report में भारत की विदेश नीति को लेकर लिखा गया है कि भारत ने म्यांमार में होने वाली हिंसा को लेकर चुप्पी क्यों साधी हुई थी? यही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर वोट न करने को लेकर भी रिपोर्ट में भारत का घेराव किया है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने जो कुछ कहा उसे Human Rights Watch ने अपनी Report में बड़ी ही चतुराई से छिपा लिया गया। जैसा कि सर्वविदित है कि भारत हमेशा से ही शांति का पक्षधर रहा है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में रुचिरा कंबोज ने भारत का प्रतिनिधत्व करते हुए कहा कि “म्यांमार की स्थिति जटिल है, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव सभी पक्षों को एक समावेशी राजनीतिक संवाद को आगे बढ़ाने के बजाए असमंजस की स्थिति में डाल सकता है। इसलिए म्यांमार की समस्या का समाधान आपसी समझौता है उसके अलावा कुछ नहीं।” भारत की विदेश नीति को देखा जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत ने किसी का पक्ष लिए बिना अपसी समझौता करने और शांति बहाली की ही बात कही है। ऐसे में भारत पर विदेश नीति पर इस प्रकार से प्रश्न उठाना, गलत प्रतीत होता है।
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रिपोर्ट में भारत की आलोचना ही क्यों है?
Human Rights Watch की Report को पढ़ने और समझने के बाद एक प्रश्न उठता है कि आखिकार इस रिपोर्ट में भारत की आलोचना क्यों की गई है और इसका उद्देश्य क्या है? दरअसल, ह्यूमन राइट्स वॉच अमेरिकन स्थित एक वेबसाइट है और पिछले कुछ समय से भारत लगातार अंतरराष्ट्रीय स्तर में अमेरिका की बातों को दरकिनार कर रहा है। फिर चाहें वो प्रतिबंधों के बाद रूस से कच्चा तेल खरीदना हो या फिर डॉलर को आउट करने के लिए रुपये में व्यापार को बढ़ावा देना हो। ऐसे में यह कोई बड़ी बात नहीं कि वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट में सिर्फ उन्हीं बातों पर जोर दिया गया जो भारत की छवि को खराब करें। आज बड़ी बड़ी कंपनियां भारत की ओर आकर्षित हो रही हैं। क्योंकि भारत व्यापार के लिए एक बड़ा बाजार भी हैं और व्यापार करने के लिए एक सुरक्षित स्थान भी। ऐसे में इन मनगढ़ंत रिपोर्ट का एक उद्देश्य भारत में विदेशी निवेश को कम करने का षड्यंत्र भी लगता है। क्योंकि जो लोग Human Rights Watch Report को पढ़ेंगे वो उसी नजर से भारत को देखेंगे।
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