Anti-Conversion Law: भारत में हमेशा से ही अलग अलग धर्मों और विचारधारा के लोग एक साथ रहते आ रहे हैं। परंतु समस्या यह है कि कुछ समुदाय के द्वारा इसी का गलत फायदा उठाया जाता है। आज के समय में देखा जाये तो अवैध धर्मांतरण देश के लिए चिंताजनक विषय बन गया है। वहीं जब बात लव जिहाद की आती है, तो यह विषय और भी गंभीर हो जाता है। देश में अवैध और जबरन तरीके से किए जाने वाले धर्मांतरण पर अलग-अलग भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने कानून बनाए। इसके जरिए सरकार ने मासूम बच्चियों की जिंदगी बर्बाद होने से और इस्लामिस्टों के चुंगल से बचाने का प्रयास किया। धर्मांतरण विरोधी कानूनों (Anti-Conversion Law) के कारण इस्लामिस्ट अपने एजेंडे में सफल नहीं हो पा रहे, यही कारण है कि वो अब इसके विरोध में उतर आए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दरअसल, धर्मांतरण कानून के खिलाफ इस्लामिस्टों का एक धड़ा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस्लामिक संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका लेकर गया है। याचिका में कहा कि ये कानून अंतरधर्म शादी करने वाले जोड़ों को “परेशान” करने का एक साधन हैं। याचिका में इन राज्यों के कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। बता दें कि इससे पहले सोमवार को यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल और मध्य प्रदेश, में ‘ लव जिहाद’ कानूनों के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों से दो हफ्तों में लिखित नोट के जरिए जानकारी मांगी है कि संबंधित राज्यों में हाईकोर्ट में सुनवाई की स्थिति क्या है? हाईकोर्ट्स में इनसे संबंधित कितनी याचिकाएं लंबित हैं?
गुरुवार को जमीयत उलमा-ए-हिंद ने गुरुवार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें धर्मांतरण विरोधी कानून (Anti-Conversion Law) को संवैधानिक वैधता की चुनौती दी गई। याचिका में जिन कानूनों को रद्द करने की मांग की गई, वो है- उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021, उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्र अधिनियम 2021 और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021।
याचिका में तर्क दिया गया है कि कानून अंतर-धार्मिक जोड़ों को आपराधिक केसों में फंसाने का साधन बन गया है। याचिका में तर्क दिया गया कि अंतरधार्मिक विवाह में शामिल व्यक्तियों को परेशान करने के लिए इन कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। (Anti-Conversion Law) अधिनियम के प्रावधान व्यक्ति को अपने विश्वास का खुलासा करने को विवश करते हैं, जिससे उसकी निजता पर हमला होता है।
देखा जाये तो अवैध और जबरन धर्मांतरण देश की एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। देश के हर कोने से ऐसी तमाम खबरें आये दिन ऐसी खबरें सामने आती रहती हैं जहां जबरन धड़ल्ले से लोगों का अवैध धर्मांतरण करवाया जा रहा है। कभी लालच देकर, कभी धोखे से, तो कभी अन्य माध्यम से ईसाई मिशनरियां और इस्लामिस्ट देश में काफी लंबे समय से धर्मांतरण का गंदा खेल खेल रहे हैं।
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ठप पड़ गया इस्लामिस्टों का धंधा
बता दें कि धर्म परिवर्तन के कई ऐसे मामले अक्सर ही सामने आते रहते हैं, जब मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों से पहचान छिपाकर शादी करते थे और फिर उनका जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव डालते थे जो कि एक चिंताजनक स्थिति है। इसके चलते ही धर्मांतरण विरोधी कानून (Anti-Conversion Law) लागू लाया गया था। जिनमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि लड़के को शादी से पहले अपनी असल पहचान लड़की को बतानी होती है। इतना ही नहीं जिलाधिकारी से इसकी अनुमति भी ली जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी जबरन धर्मांतरण को गंभीर विषय माना था। नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने दबाव, धोखे या लालच से धर्म परिवर्तन करवाने की कथित घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए बड़ी बात कही है। कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह के धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो यह देश की सुरक्षा को तो हानि पहुंचाएगा ही साथ ही यह नागरिकों के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए भी बहुत घातक है। इसी के चलते कोर्ट ने अवैध धर्मांतरण के विरुद्ध सख्त कानून की मांग पर केंद्र सरकार से अपना जवाब दाखिल करने को भी कहा था।
इस पूरे प्रकरण से यह तो सामने आ ही गया है कि भाजपा शासित राज्य की सरकारों ने जिन उद्देश्यों के लिए यह कानून (Anti-Conversion Law) बनाया था वह सही साबित हो रहे है क्योंकि इससे इस्लामिस्टों का धंधा ठप हो रहा है और वो अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल नहीं हो रहे। यही कारण है कि धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रभावी होने से उन्हें इतना दर्द हो रहा है यानी धर्मांतरण विरोधी कानून ने एकदम सही जगह पर चोट पहुंचाई।
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