कम्युनिस्ट चीन की वुल्फ वॉरियर विदेश और कूटनीति को आप जानते ही होंगे लेकिन पिछले कुछ दिनों में तथाकथित रक्षा विशेषज्ञ और मीडिया का एक धड़ा बता रहा है कि चीन अपनी इस आक्रामक विदेश नीति से पीछे हट रहा है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हो रहा है? क्या वास्तव में चीन वुल्फ वॉरियर कूटनीति से पीछे हट रहा है? या फिर इसके उल्ट चीन वुल्फ वॉरियर कूटनीति को और आक्रामक करने जा रहा है? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत समेत तमाम देश चीन की इस नीति से प्रभावित होते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे चीन वुल्फ वॉरियर कूटनीति से पीछे नहीं हट रहा है बल्कि उसे और धार दे रहा है?
चीन विदेश नीति के मामले में सदैव से ही आक्रामक रवैया अपनाता आया है। इसकी ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति और विदेश मंत्रालय के पूर्व प्रवक्ता ‘झाओ लिजियान’ से दुनिया के सभी देश भली-भांति परिचित हैं लेकिन लिजियान का ‘डिपार्टमेंट ऑफ बाउंड्री और ओसन अफेयर्स’ में ट्रांसफर होने के बाद अधिकतर अखबार और विशेषज्ञ कयास लगा रहे हैं कि चीन ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति को त्यागकर अब नर्म रूख अपनाएगा। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है चीन ने खिलाड़ियों को बदला है लेकिन खेल का मैदान और नियम अभी भी वही हैं।
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चीन ने दुनियाभर में अपनी तानाशाह की छवि को सुधारने के लिए विदेश मंत्रालय के कुछ पदों में बदलाव किया है। एक ओर ‘वांग ई’ को हटाकर ‘किन गैंग’ को विदेश मंत्री बनाया है तो वहीं दूसरी ओर ‘वुल्फ वॉरियर’ डिप्लोमेट कहे जाने वाले ‘झाओ लिजियान’ को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से सीमा और समुद्री मामलों के विभाग में स्थानांतरित कर दिया है। चीन के विदेश मंत्री ‘किन गैंग’ के काम करने के तौर तरीके को देखने के बाद कुछ राजनीतिक विश्लेषक इन परिवर्तनों को वुल्फ वॉरियर कूटनीति में नरमी के संभावित संकेतों के रूप में देख रहे हैं। लेकिन चीन की विदेश नीति को समझने से पहले ‘वुल्फ वॉरियर’ और ‘झाओ लिजियान’ के बारे में विस्तार से जानना अत्यंत आवश्यक है।
‘वॉल्फ वॉरियर’ कूटनीति क्या है?
चीन की ‘वुल्फ वॉरियर’ की कूटनीति को आसान भाषा में कहा जाए तो इसका मुख्य उद्देश्य आक्रामक तरीके से अपने प्रतिद्वंदियों का सामना करना है। चीन ने पिछले वर्षों में इसी कूटनीति के द्वारा दुनियाभर के कमजोर देशों में अपना वर्चस्व कायम किया है। एक प्रकार से देखा जाए तो यह चीन की विदेश नीति का मूल है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इसी नीति के तहत अपने एजेंडे तय करती है।
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कौन हैं झाओ लिजियान?
झाओ लिजियान चीन के एक महत्वपूर्ण सरकारी अधिकारी हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वुल्फ वॉरियर की कूटनीति दुनिया भर में लिजियान के कारण ही चर्चा का विषय बनी है। चीन में लिजियान को वुल्फ वॉरियर कूटनीति का सबसे बड़ा योद्धा माना जाता है। साल 2015 में लिजियान चर्चा का विषय तब बने जब इन्हें पाकिस्तान के चीनी दूतावास में डिप्टी के तौर पर तैनात किया गया था। साल 2019 तक लिजियान इस पद पर रहे और अधिकतर पाकिस्तानी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे। लिजियान अक्सर पाकिस्तान की स्थानीय संस्कृति की प्रशंसा करते रहते और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में चीन के योगदान के बारे में बताते रहते। यही नहीं पाकिस्तान में रहने के दौरान लिजियान ने अपने ट्विटर हैंडल पर नाम बदलकर मोहम्मद लिजियान झाओ कर लिया था। हालांकि इसे कुछ समय के बाद हटा दिया था।
क्या चीन अपनाएगा नर्म रुख?
वांग ई और लिजियान के विदेश मंत्रालय से जाने के बाद यह कहना कि चीन ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति को छोड़कर विदेश नीति में नर्म रूख अपनाएगा कहना जल्दबाजी होगा। क्योंकि चीन विस्तारवाद की नीति के साथ काम करता है फिर चाहे वह वन बेल्ट वन रोड का प्रोजेक्ट हो या फिर साउथ चाइना सी और प्रशांत महासागर में लगातार विस्तार करना। झाओ लिजियान को सीमा और समुद्री मामलों के विभाग में स्थानांतरित करना चीन की ‘वुल्फ वॉरियर’ कूटनीति का अगला कदम है। जिसके सहारे वह दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में प्रमुखता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। उदाहरण के लिए साउथ चाइना सी के माध्यम से होने वाले समुद्री व्यापार के आंकड़ों को देख सकते हैं। किस प्रकार वहां से 246 लाख करोड़ा का सालाना व्यापार होता है। ये दुनियाभर में होने वाले समुद्री व्यापार का एक तिहाई हिस्सा है। इसलिए चीन दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए मृदुभाषी ‘किन गैंग’ को विदेश मंत्री के रूप में आगे कर ‘झाओ लिजियान’ के माध्यम से छिपकर अपनी वुल्फ वॉरियर कूटनीति को और आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम करता हुआ दिख रहा है।
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