सोने की चम्मच लेकर आविर्भूत हुए कुछ विरले ही होते हैं जो विरासत रूपी धन और सम्पदा को सही से संभाल पाते हैं अतएव अपने पुरखो से मिली विरासत को आगे बढ़ाना हर किसी के बस की बात नही है।
अब महाराष्ट्र पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ही देख लीजिए हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे ने जो विरासत उद्धव ठाकरे को दी थी, उस विरासत को संभाल तो छोड़ ही दीजिए अपितु उन्होंने वो काम किए जिसके बालासाहेब ठाकरे नितांत विरुद्ध थे।
आज माननीय उद्धव ठाकरे के पास ना बाल साहेब ठाकरे की शिवसेना है और ना ही बाल साहेब जैसी कुशालता और यही उनके पतन का कारण बनता जा रहा है . और इस असफ़ल्ता से उद्धव इतने बौखला गए हैं कि वो अब हिंदू विरोधी बयानाबजी पे उतारु भो गये है.
हिंदुओं पर निशाना साधते हुए विवादित बयान
दरअसल, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने हिंदुओं पर निशाना साधते हुए विवादित बयान दिया है अपने बयान में उद्धव ने कहा कि क्या हमारे देश को आजादी गोमूत्र छिड़कने से मिली थी? क्या ऐसा हुआ कि गोमूत्र छिड़का गया, और हमें आजादी मिल गई? ऐसा नहीं था। स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया था, और फिर हमें आजादी मिली।
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एकनाथ शिंदे के गुट को शिवसेना पार्टी का चुनाव चिह्न सौंपे जाने के चुनाव आयोग के फैसले से क्रुद्ध महाराष्ट्र के पूर्व सीएम ने कई विवादित बयान दिए।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग एक “चुना लगाओ आयोग” है। इतना ही नही हताश उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग को “सत्ता में लोगों का गुलाम”भी कहा।
मीडिया रिपोट्स में दावा किया जा रहा है कि उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया, उन्होंने सरदार पटेल का नाम चुराया। इसी तरह, उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को चुरा लिया और बाला साहेब ठाकरे के साथ ऐसा ही किया। उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि वे मोदी के नाम पर वोट मांगें, न कि शिवसेना के नाम पर और बाला साहेब ठाकरे की फोटो के बिना।
पर उद्धव ठाकरे को समझना होग की जब उद्धव ठाकरे को बाला साहब के द्वारा मिले मूल सिंधातों का पालन करने का समय था तब वो नही कर पाए, परिणाम यह है कि उद्धव ठाकरे से शिवसेना और उसका चुनाव चिन्ह तीर कमान छिन चुका है।
चुनाव आयोग ने वास्तविक शिवसेना मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समूह को माना है और इसी समूह को वास्तविक शिवसेना का चुनाव चिन्ह तीर और कमान दिया है। जिससे उद्धव का वर्चस्व धाराशाही हो गया और उसी समय उद्धव कुर्सी के लिए कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने चले गए थे। पर अफ़सोस उद्धव ठाकरे ना सरकार चला पाए और ना नियमित विरासत संभाल पाए।
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उद्धव ठाकरे ने अपना रास्ता बदलकर अपने ही पिता की विरासत की हंसी उड़वा दी
सार्वजनिक रैली के दौरान हताश उद्धव ठाकरे ने कहा कि लोगों को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो लोग हमारे ‘धनुष और तीर’ (पार्टी चिन्ह) को चुराकर वोट मांगने आते हैं, वे चोर हैं। हमें यह तय करना है कि जिनका स्वतंत्रता संग्राम से कोई संबंध नहीं है और पशु प्रवृत्ति है, उन्हें 2024 में दफन कर देना चाहिए। हमें शपथ लेनी है कि हम भारत माता को गुलामी के चंगुल में नहीं आने देंगे। उन्होने ने ये भी कहा महाराष्ट्र जो तय करेगा मैं करूंगा, अगर आप लोग मुझे घर जाने के लिए कहेंगे तो मैं जाऊंगा, लेकिन मैं घर पर नहीं बैठूंगा।
देखिये जिस कुर्सी के लिए उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब के सिधांतों से समझौता किया वो कुर्सी भी चली गई और बाले साहेब से विरासत के रुप में मिली पार्टी भी चली गई। और इसके साथ साथ उद्धव ठाकरे का बच-कुचा प्रभाव भी चला गया. अब हताश उद्धव ठाकरे कभी चुनाव आयोग को कोसते हैं तो कभी भाजपा को जब कहीं नही चलती तो हिंदूत्व के विरोध में बोलने लग जाते हैं।
तिकड़मों के बल पर उद्धव ठाकरे ने विश्वासघात कर सत्ता हथियाई और कई वर्षों तक महाराष्ट्र के निवासियों का खून चूसा। नैतिकता और आत्मसम्मान की उद्धव को तनिक भी चिंता नही थी, उनके लिए सत्ता ही सर्वोपरि थी। पर कहते है न समय क नयाय किसी से परहेज नहिन् करता और आज स्थिति यह है कि एक समय में महाराष्ट्र पोलिटिकल डायनेमिक्स निर्धारित करने वाले परिवार के पास आज न तो न सत्ता है, न गठबंधन, न शौर्य, न सम्मान, और तो और विरासत भी नहीं है।
बालासाहेब ठाकरे की हमेशा से ही एक अलग पहचान थी। बाला साहेब ने अपनी विरासत को आगे ले जाने के लिए उद्धव ठाकरे का चुनाव किया था। लेकिन उद्धव ठाकरे, बाला साहेब ठाकरे की विरासत को आगे ले जाने में असफल साबित हुए। जिस हिंदुत्व का हुंकार बाबा साहेब भरा करते थे आज उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने अपना रास्ता बदलकर अपने ही पिता की विरासत की हंसी उड़वा दी है. और इसी कारण हेतु सौर्य बल पराक्रम में विश्वास रखने वाले, साहेब ठाकरे को मानने वाले अधिकतर जन शिव सैनिक एकनाथ शिंदे की तरफ आ गए।
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