NCERT removes chapters on Mughal Empire: कैसे छाती पीट पीट के रो रहे हैं लिबरल मुगलों की सफाई पर

उफ्फ़ ये दुख, दर्द, कष्ट, पीड़ा....

NCERT removes chapters on Mughal Empire

NCERT removes chapters on Mughal Empire: Nostalgia शब्द एक दोधारी तलवार समान है। अगर किसी ऐसे वस्तु या स्थान की पुरानी यादों को सहेजकर रखा जाए, जिससे समाज और संस्कृति का कल्याण हुआ हो, तो वो स्मृतियाँ व्यर्थ नहीं जाती। परंतु हमारे यहाँ कुछ ऐसे प्राणी है, कि चाहे कोई स्थान अत्याधुनिक भी हो जाए, अथवा अपनी मूल संस्कृति को सहर्ष अपनाएँ, तो उसका विरोध करते हुए कहेंगे, “अरे वो क्या ज़माना था, जब बिजली नहीं आती, जब एक एक वस्तु के लिए लाइन में लगकर सौदेबाज़ी करनी पड़ती थी”। ऐसे ही लोगों के लिए एक वर्ल्ड फेमस संवाद है, “इनके हाथ में सोने का लोटा दे दो, फिर भी भीख ही माँगनी है!”

इस लेख में पढिये कि कैसे नई शिक्षा नीति के अंतर्गत मुगलों का उल्लेख इतिहास के पुस्तकों से हटाया गया (NCERT removes chapters on Mughal Empire) है, और कैसे इस बात से लिबरल इतना पगलाये हैं, कि इनकी बौखलाहट पर क्रोध कम और हंसी अधिक आती है।

नई शिक्षा नीति के अंतर्गत मुगलों को अनुचित सम्मान नहीं

ज्ञात हो तो कुछ माह पूर्व जनवरी 2023 में नई शिक्षा नीति को लागू करने की बात कही गई थी। इसके अंतर्गत शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने स्पष्ट किया कि अब उन नायकों को अधिक प्राथमिकता दी जाएगी, जिन्होंने वास्तव में भारतीय इतिहास को समृद्ध किया, न कि वे आक्रांता, जिन्हे फर्जी में हीरो बनाकर पेश किया गया।

अब इसी दिशा में एनसीईआरटी ने एक क्रांतिकारी निर्णय लेते हुए स्पष्ट किया है कि 2023 से 2024 के अकादेमिक सत्र में जो भी 12 वीं कक्षा में इतिहास का अध्ययन कर रहे हैं, उन्हे अब मुगलों का सम्पूर्ण इतिहास नहीं पढ़ना पड़ेगा

नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने 12वीं के पाठ्यक्रम (NCERT removes chapters on Mughal Empire) में कई बड़े बदलाव किए हैं। ये बदलाव इतिहास, नागरिक शास्त्र और हिन्दी की किताबों में हुआ है।

इतिहास की किताब से मुगल इतिहास से जुड़ी जानकारी हटाई गई है। वहीं हिंदी के पाठ्यक्रम से कविताएँ और पैराग्राफ हटाने का फैसला किया गया है।

इसके अलावा 10वीं और 11वीं के पाठ्यक्रम से भी मुगल इतिहास से जुड़ी जानकारी हटाई गई है। इससे पूर्व यूपी सरकार ने भी नई शिक्षा नीति के अंतर्गत कुछ ऐसे ही कदम उठाकर मुगलों के इतिहास का महिमामंडन बंद करने का निर्णय लिया।

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लिबरलों का विलाप तो देखिए

चोट की गई मुगल आक्रान्ताओं पे, पर इसकी पीड़ा लिबरलों को गजब की हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि भई मुगलों का इतिहास नहीं, इनके बाप दादाओं के इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई हो। विश्वास नहीं होता तो पार्ट टाइम फिल्ममेकर और फुल टाइम पत्रकार विनोद कापड़ी के सुवचन देखिए।

महोदय व्यक्त करते हैं,

“भारत के इतिहास से 331 साल , पूरे 331 साल अब इसलिए नहीं पढ़ाए जाएँगे -क्योंकि मौजूदा सरकार अब अपनी नफ़रत को खुलेआम ज़ाहिर करना चाहती है। फिर तो मुग़ल काल में बनी सारीं इमारतों को भी नेस्तनाबूद कर देना चाहिए। शुरूआत ताजमहल और लालक़िले से की जाए। दुनिया भी देखे भारत के तालिबानी”।

पॉइंट तो है, परंतु क्या कापड़ी महोदय ये बताएंगे कि ये 331 वर्ष का आंकड़ा कहाँ से जुटाया। अगर एकछत्र राज्य की बात की जाए, तो वह अकबर के काल से प्रारंभ हुआ, जब उसने पानीपत की विजय के बाद अपने राज्य का संरक्षण प्रारंभ किया। यह बात 1556 की है, जब अकबर 14 वर्ष का भी नहीं था, और जब औरंगज़ेब ने सत्ता संभाली, करीब 1658 में, तब तक भारतवर्ष में मुगल राज के विरुद्ध विद्रोह प्रारंभ हो चुका था।

उत्तर में सिख, पश्चिम में राजपूत, पूर्व में अहोम तो दक्षिण में मराठा इनके हेकड़ी की चटनी बना रहे थे। चलिए, मान लिया कि यह सब असत्य है, परंतु इस बात को आप झुठला पाएंगे कि 1737 में दिल्ली के युद्ध में मुगलों की पराजय के बाद उनका राज्य केवल दिल्ली और उसके आसपास के कुछ क्षेत्रों तक ही सिमट गया था?

अगर उस समय से भी अंदाज़ा लगाएँ, तो 1526 से 1737, माने मात्र 211 वर्षों तक ही मुगल कुछ प्रभाव डाल पाए थे, और अगर वास्तविक राज्य पे डालें, तो ये मात्र 102 वर्ष होगा, यानि 1556 से 1658 तक। इसका उत्तर देने का कापड़ी महोदय कष्ट करेंगे?

इसी बात पर ज्ञान ज़रा हटके नामक यूट्यूब चैनल ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट के माध्यम से विनोद को उन्ही की भाषा में समझाया,

“बिलकुल सही कहा, भारत सरकार ग़लत कर रही है। सरकार को मुग़लों का सही इतिहास पढ़ा के देश के बच्चो को बताना चाहिये के मुग़ल कितने निकृष्ट थे, और original तालिबानी भी। जिन्होंने देश में बने मंदिर तोड़ के आतंक के ठिकाने बनाए”।

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इनका कुछ नहीं हो सकता

अब ऐसे में स्वरा भास्कर कैसे चुप रहती? उनकी भी पीड़ा खुलकर सामने आई। महोदया कहती हैं, “देश में जहालत की कोई सीमा नहीं है। जाहिलों को वोट दो, हर संस्थान को अपने जैसा जाहिल बनाओ, और असीमित जाहिल पैदा करो। ये अनंत साइकिल है”। स्वरा जी, तनिक ठहर जाती, अपने बारे में इतना भी सच नहीं बोलना था।

ये तो कुछ भी नहीं है। रामचरितमानस को जलाने का “कल्याणकारी कार्य” करने के पश्चात अब समाजवादी पार्टी मुगलों की माला जपने में जुट गई है।

NCERT द्वारा 12वीं के पाठ्यक्रम (NCERT removes chapters on Mughal Empire) में बदलाव कर मुगलों से जुड़ी जानकारी हटाने के निर्णय को लेकर समाजवादी पार्टी विधायक इकबाल महमूद ने कहा है कि मुगलों का इतिहास पूरी दुनिया में है। सरकार के मिटाने से मुगल नहीं मिटेंगे।

इकबाल महमूद के अनुसार,

“मुगलों ने भारत को ताजमहल, लाल किला, और कुतुब मीनार जैसी इमारतें दी हैं। मुगलों ने भारत का पैसा भारत में ही लगाया। लेकिन यहाँ ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने भारत को लूटा है। मुगलों ने हिंदुस्तान को तरक्की का रास्ता दिखाया। लाल किला और कुतुब मीनार का नाम बदलने से इतिहास को नहीं बदला जा सकता। सरकार सिर्फ अपने लिए और अपने वोटों के लिए ही काम कर रही है। भारत कभी हिंदू राष्ट्र नहीं हो सकता” ।

अरे रे रे, ई तो श्रीगणेश ही गलत हुआ है। सर्वप्रथम, अगर इनके प्रिय इतिहासकारों के अनुसार भी जाएँ तो भी कुतुब मीनार मुगलों की देन नहीं है। इसे तुर्की सल्तनत के समय कथित तौर पर बनवाया गया था, और अभी तो कुतुब परिसर के गुप्त साम्राज्य से कनेक्शन पर प्रकाश भी नहीं डाला है।

इसके अतिरिक्त अगर मुगलों ने भारत का पैसा भारत में लगाया होता, तो फिर मेवाड़ से लेकर अहोम राज्य, सिख समुदाय, एवं मराठाओं को विद्रोह करने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? रही बात हिन्दू राष्ट्र की, तो भारत विशुद्ध सनातनी राष्ट्र है, इसे “हिन्दू राष्ट्र” के अतिरिक्त टैग की कोई आवश्यकता नहीं। आवश्यकता है तो बस फर्जी सेक्युलरिज़्म के बोझ को अपने सर से हटवाने की।

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