प्रयागराज के महाकुंभ में मौनी अमावस्या के मौके पर हुई भगदड़ के बाद प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। इस घटना में कई लोगों के मारे जाने की खबरें हैं जबकि कई लोग घायल भी हुए हैं। यह पहला मौका नहीं है जब कुंभ में इस तरह के दुखद हादसे हुए हों। 1820 में कुंभ में भगदड़ में सैकड़ों लोगों की मौत के बाद से लेकर आज़ादी के बाद 2013 तक कुंभ में ऐसी कई दुखद घटनाएं हुई हैं और इनमें हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई है। इस लेख में जानेंगे कुछ ऐसे ही दुखद हादसों के बारे में…
1820 में हरिद्वार में मारे गए थे 485 श्रद्धालुओं
हरिद्वार में 1820 में कुंभ में मची भगदड़ में 485 में श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। कामा मैकलेन ने अपनी किताब ‘Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad, 1765-1954‘ में इस घटना को लेकर लिखा है, “इस दुखद घटना को देखने वाले मजिस्ट्रेट ने लिखा, ‘यह धार्मिक उन्माद का कृत्य था…मैं यह मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हूं कि अगर कोई बल प्रयोग किया जाता, तो इन्हें रोका जा सकता था’।” मैकलेन ने लिखा, “1820 के इस हादसे के बाद स्नान घाटों के लिए व्यापक कार्य किए गए थे।” मैकलेन ने बताया है कि ऐसी ही घटनाएं 1840, 1906 और 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में हुईं थीं।
1954 में नेहरू की मौजूदगी में कुंभ में मारे गए थे 1000 लोग
भारत की आज़ादी के बाद का पहला कुंभ 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित किया गया था। यह शहर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का था और वे इसकी व्यवस्थाओं में रुचि ले रहे हैं। 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या के दिन संगम नगरी में स्नान के लिए लाखों लोग इकट्ठा हुए थे लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते नेहरू की मौजूदगी में भगदड़ मच गई थी। प्रधानमंत्री नेहरू के साथ राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी स्नान के लिए प्रयागराज पहुंचे थे और प्रशासनिक अमला दोनों ही बड़े नेताओं की आगवानी के लिए आवभगत में लगा हुआ था।
नेहरू और राजेंद्र प्रसाद के शाही स्नान के लिए वीआईपी व्यवस्था कर अन्य श्रद्धालुओं को स्नान करने से रोक दिया गया था। जैसे ही नेहरू और राजेंद्र प्रसाद की कार किला घाट की ओर बढ़ने लगी तो लोगों में उन्हें देखने की होड़ लग गई। इलाके में हो रही बारिश की वजह से चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी। इसके बाद अचानक भीड़ से चिल्लाने की आवाज़ें आनीं शुरू हुईं और कई लोग ज़मीन पर गिरते चले गए थे। इस घटना में करीब 1,000 लोगों की मौत हो गई थी।
1986 कुंभ भगदड़ में मारे गए 200 लोग
1986 के हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन किया गया था। इस मेले में स्नान करने के लिए 14 अप्रैल 1986 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री हरिद्वार पहुंचे थे। इस दौरान आम श्रद्धालुओं को तट पर पहुंचने से रोक दिया गया था जिससे भीड़ बेकाबू हो गई थी। इसकी बाद पूरी तरह स्थिति प्रशासन के नियंत्रण से बाहर हुई और वहां भगदड़ मच गई। इस घटना में 200 से ज़्यादा लोगों की मौत होने का दावा किया जाता है। इस घटना की जांच के लिए वासुदेव मुखर्जी कमिटी बनाई गई थी और उस कमिटी ने कहा था कि मुख्य स्नान पर्वों पर वीआईपी लोगों को नहीं आना चाहिए।
1992 में उज्जैन में 50 लोगों की मौत
1992 में मध्य प्रदेश के उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ मेले में भगदड़ मच गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के दौरान, इस दर्दनाक हादसे में 50 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। इस सिंहस्थ के समापन के दौरान विभिन्न अखाड़ों ने मेले के समापन समारोह का विरोध भी किया था। इसके पीछे अखाड़ों में अन्य लोगों को बुलाए जाने समेत कई तरह की मांगें थीं। हालांकि, बाद में यह विवाद खत्म हो गया था।
2003 में नासिक में 39 लोगों की मौत
महाराष्ट्र के नासिक में 2003 में नासिक कुंभ में भगदड़ मचने से कम से कम 39 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। 27 अगस्त को हुए इस हादसे में 100 से अधिक लोग घायल भी हुए थे। यह बुधवार का दिन था और नासिक कुंभ में दूसरे शाही स्नान हो रहा था और गोदावरी के पवित्र जल में स्नान करने के लिए 30,000 से अधिक तीर्थयात्री रामकुंड की तरफ बढ़ रहे थे, जिन्हें पुलिस ने रोक दिया था जिससे साधु पहले स्नान कर सकें। मीडिया रिपोर्ट् के मुताबिक, इस दौरान एक साधु ने चांदी के सिक्के भीड़ में फेंक दिए थे जिन्हें लूटने के लिए अफरा-तफरी का माहौल बन गया था और भगदड़ हो गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दिन गोदावरी में स्नान करने के लिए करीब 50 लाख लोग नासिक में मौजूद थे।
2010 में हरिद्वार में कुंभ में 7 लोगों की मौत
2010 में कुंभ का मेला हरिद्वार में लगा हुआ था और 14 अप्रैल को वहां भगदड़ मच गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस घटना में 7 लोगों की दुखद मृत्यु हो गई थी और करीब 15 लोग घायल हो गए थे। बाताया जाता है कि शाही स्नान के दौरान साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच झड़प के चलते यह भगदड़ हुई थी। जूना अखाड़े की पेशवाई के दौरान हुई घटना के बाद जूना अखाड़े ने शाही स्नान का बहिष्कार कर दिया था।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रमुख मेलाधिकारी आनंदवर्धन ने बताया था, “यह हादसा बिड़ला पुल के पास तब हुआ जब एक महामंडलेश्वर की गाड़ी वहां से जा रही थी और बेकाबू हुई इस गाड़ी ने कुछ लोगों को टक्कर मार दी जिसमें दो लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।” जबकि प्रत्यक्षदर्शियों ने साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच कहासुनी की बात कही थी।
2013 में प्रयागराज में 42 लोगों की हुई मौत
2013 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित किए गए कुंभ मेले के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी और रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में करीब 42 लोगों की मौत हो गई थी। 2013 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी और आज़म खान को कुंभ मेले का प्रभारी बनाया गया था। इस मेले में करीब 10 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद और 10 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज स्टेशन पर 20 लाख से ज्यादा लोग आ गए थे। इस दौरान प्रयागराज जंक्शन पर 24 घंटों में केवल 250 ट्रेनों ही मौजूद थी और भीड़ आने से व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासनिक तालमेल ना होने के चलते बड़ी संख्या में श्रद्धालु रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए थे और रेलवे पुलिस ने लोगों को समझाने के बजाय उन्हें भगाना शुरू कर दिया था। इसके चलते लोगों में नाराज़गी फैल गई थी और वहां हुई अफरा-तफरी के बाद भगदड़ हो गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस घटना के दौरान रेलवे कुंभ वार्ड में ताला लगा हुआ था और जब बहुत समय बाद ताला खुला तो वहां रूई पट्टी को छोड़कर कोई व्यवस्था नहीं थी। इस घटना के बाद चार लोगों की मौत तो इलाज नहीं मिलने की वजह से ही हो गई थी और लोग कफन तक के लिए भटक रहे थे।
आज़म खान ने भगदड़ और लोगों की मौत के बाद इस्तीफा दे दिया था लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था। इसके बाद आज़म खान ने 13 फरवरी 2013 को एक कार्यक्रम में कहा था कि चैनल वाले छोटी सी बात का बतंगड़ बना देते है।