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कौन थे बिना कानून की डिग्री लिए CJI बनने वाले कैलाशनाथ वांचू?

TFI Desk द्वारा TFI Desk
22 April 2025
in चर्चित
निशिकांत दुबे ने X पोस्ट में भारत के पूर्व CJI कैलाशनाथ वांचू का ज़िक्र किया है

निशिकांत दुबे ने X पोस्ट में भारत के पूर्व CJI कैलाशनाथ वांचू का ज़िक्र किया है

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कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों को लेकर हो रही चर्चा के बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का एक और ‘X’ पोस्ट चर्चा का केंद्र बन गया है। इससे पहले दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और CJI संजीव खन्ना पर गंभीर टिप्पणियां की थीं जिसके बाद BJP ने दुबे के बयान से किनारा कर लिया था। अब निशिकांत दुबे ने अपने पोस्ट में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कैलाशनाथ वांचू का ज़िक्र किया है जिनके पास कानून की कोई डिग्री नहीं थी। निशिकांत ने अपने पोस्ट में लिखा है, “क्या आपको पता है कि 1967-68 में भारत के मुख्य न्यायाधीश कैलाशनाथ वांचू जी ने क़ानून की कोई पढ़ाई नहीं की थी।”

क्या आपको पता है कि 1967-68 में भारत के मुख्य न्यायाधीश कैलाशनाथ वांचू जी ने क़ानून की कोई पढ़ाई नहीं की थी ।

— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) April 21, 2025

कौन थे कैलाशनाथ वांचू?

भारत के 10वें मुख्य न्यायाधीश रहे कैलाशनाथ वांचू भारतीय सिविल सेवा (ICS) के अधिकारी थे। सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर के मुताबिक, 25 फरवरी 1903 को मंदसौर (मध्य प्रदेश) में जन्मे जस्टिस वांचू अपने परिवार से पहले व्यक्ति थे जो न्यायाधीश बने थे। वांचू की शुरुआती पढ़ाई कानपुर से हुई और उन्होंने इलाहाबाद के मुनीर सेंट्रल कॉलेज से बीए किया था। 1924 में ICS परीक्षा पास करने के बाद वे ट्रेनिंग के लिए यूनाइटेड किंगडम चले गए। वे पेशे से वकील नहीं थे और उनकी कानूनी शिक्षा ICS प्रशिक्षण के दौरान मिली आपराधिक कानून की जानकारी पर आधारित थी।

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वांचू 1926 में भारत लौटे और संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में सहायक मजिस्ट्रेट और कलेक्टर के रूप में अपनी नौकरी की शुरुआत की। 1937 आते-आते वे सत्र और ज़िला न्यायाधीश बन गए थे और 1947 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उन्हें कार्यवाहक न्यायाधीश नियुक्त किया गया जिसके 10 महीने बाद ही वे स्थाई न्यायाधीश बन गए। इसके बाद 1951 में वे राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और नवंबर 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद वे राजस्थान उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश बनाए गए थे। 1958 तक वांचू इस पद पर कार्य करते रहे और इसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनाए गए।

11 अप्रैल 1967 को तत्कालीन CJI के सुब्बा राव ने अचानक पद से इस्तीफा दे दिया और भारत के राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस के विरोधी विपक्ष के उम्मीदवार बन गए। उन्होंने रिटायरमेंट से 3 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक, 12 अप्रैल 1967 को वांचू को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया और वे 24 अप्रैल 1968 तक इस पद पर रहे। अपने कार्यकाल के दौरान वांचू ने सुप्रीम कोर्ट में 355 फैसले लिखे और 1,286 बेंचों में हिस्सा लिया था। वांचू के 326 निर्णयों का आगे चलकर विभिन्न मामलों में हवाला दिया गया था। जस्टिस वांचू ने मुख्य रूप से श्रम, संवैधानिक कानून और संपत्ति के कानून से जुड़े के मामलों पर निर्णय दिए थे।

जज के अलावा भी वांचू ने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया था। 1950-51 में वांचू उत्तर प्रदेश न्यायिक सुधार समिति के अध्यक्ष रहे। फरवरी 1953 में उन्होंने भारत सरकार को नए आंध्र राज्य के वित्तीय और अन्य प्रभावों पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। वे 1954 में इंदौर गोलीकांड की जांच के लिए गठित एकल सदस्यीय आयोग के सदस्य रहे। 1955 में वे धौलपुर उत्तराधिकार मामले की जांच आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए और उसी वर्ष भारत के विधि आयोग के सदस्य भी बनाए गए। सुप्रीम कोर्ट से रिटायरमेंट के बाद वांचू को रेल मंत्रालय द्वारा रेलवे दुर्घटना जांच समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था और अप्रैल 1968 से अगस्त 1969 तक वे इस पद पर रहे। 1970-1971 के बीच वांचू ने प्रत्यक्ष कर जांच समिति के अध्यक्ष के रूप में कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच की थी और पश्चिम बंगाल में नेताओं के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाले एकल सदस्यीय आयोग में रहे।

गोलकनाथ मामले में वांचू ने क्या कहा?

1967 में आए गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला दिया कि भारतीय संसद संविधान के भाग III में संशोधन नहीं कर सकती, क्योंकि इसमें नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन है। अदालत ने कहा कि मौलिक अधिकार इतने महत्वपूर्ण हैं कि संसद भी उन्हें छू नहीं सकती। इस फैसले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. सुब्बा राव ने ‘भविष्यगत प्रवर्तन सिद्धांत’ (Doctrine of Prospective Overruling) को पहली बार भारत के न्यायिक ढांचे में पेश किया। इस सिद्धांत के तहत अदालत ने निर्णय को भविष्य में लागू करने की बात कही ताकि पिछले कानूनों और कार्यवाहियों पर उसका असर न पड़े।

हालांकि, इस फैसले में न्यायमूर्ति वांचू ने असहमति जताई। अपने अलग मत में उन्होंने कहा कि संविधान ने संसद को पूरे संविधान में संशोधन करने का अधिकार दिया है, जिसमें भाग III यानी मौलिक अधिकार भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि ‘भविष्यगत प्रवर्तन’ जैसा सिद्धांत संविधान संशोधन के मामलों में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया को अनिश्चित बना सकता है। बाद में 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ का निर्णय पलट दिया और यह स्पष्ट किया कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, बशर्ते वह संविधान की मूल संरचना को न बदले।

स्रोत: सुप्रीम कोर्ट, कैलाशनाथ वांचू, निशिकांत दुबे, CJI, Supreme Court, Kailashnath Wanchoo, Nishikant Dubey,
Tags: CJIKailashnath WanchooNishikant DubeySupreme Courtकैलाशनाथ वांचूनिशिकांत दुबेसुप्रीम कोर्ट
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