कांग्रेस की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन रविवार को पटना में रोड शो और जनसभा के साथ हुआ। 16 दिनों तक चली इस यात्रा में राहुल गांधी ने 22 जिलों और 110 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया और करीब 1300 किलोमीटर की दूरी तय की। यात्रा के अंतिम दिन उन्होंने दावा किया कि “एटम बम” के बाद अब “हाइड्रोजन बम” फूटने वाला है, जिससे पूरे देश को “वोट चोरी” का सच सामने आ जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह के बयानों से जनता का भरोसा जीता जा सकता है?
रैली में राहुल गांधी का हमला
पटना की सभा में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर जोरदार प्रहार किया। उन्होंने कहा, “वोट चोरी का मतलब सिर्फ चुनावी गिनती की गड़बड़ी नहीं है, बल्कि यह आरक्षण, रोजगार, शिक्षा और युवाओं के भविष्य की चोरी है। इसके बाद गरीबों के राशन कार्ड और किसानों की जमीन तक छीन ली जाएगी।”
राहुल गांधी ने पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को भी “चोरी” बताया और चेतावनी दी कि इस बार “हाइड्रोजन बम” फूटेगा। हालांकि उनके इस बयान ने लोगों में ज्यादा उत्सुकता से ज़्यादा संशय ही पैदा किया है।
यात्रा का सफर और राजनीतिक नतीजा
17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई इस यात्रा में राहुल गांधी के साथ तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और द्रमुक नेता एम.के. स्टालिन जैसे नेता भी शामिल हुए। यात्रा का मकसद विपक्षी एकजुटता दिखाना और बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जनता के बीच माहौल बनाना था। लेकिन यात्रा के दौरान कई जगह भीड़ का उत्साह उम्मीद के मुताबिक़ नहीं दिखा। कुछ जिलों में यह सवाल भी उठा कि क्या लोग नारों से आकर्षित हो रहे हैं या फिर सिर्फ राजनीतिक रैलियों की पुरानी शैली को दोहराया जा रहा है।
“बम” की राजनीति और जनता का भरोसा
राहुल गांधी के “एटम बम” और “हाइड्रोजन बम” वाले बयान को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल है, लेकिन जनता के बीच इसका असर सीमित दिखता है। स्थानीय विश्लेषक मानते हैं कि बिहार जैसे राज्य में मतदाता अब भाषणबाज़ी से ज़्यादा अपने रोज़मर्रा के जीवन से जुड़े मुद्दों पर वोट करते हैं।
एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, “यहां लोग यह देख रहे हैं कि उन्हें घर मिला या नहीं, राशन समय पर पहुंच रहा है या नहीं, सड़क और बिजली की स्थिति बेहतर हुई या नहीं। बड़े-बड़े बयानों का असर अब सीमित रह गया है।”
विकास बनाम नारेबाज़ी
बिहार के गांवों और कस्बों में लोग यह मानते हैं कि चुनावी वादों और बम-धमाके जैसी भाषा से ज्यादा अहम उनके जीवन में आई ठोस बदली हुई स्थितियां हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना से लाखों गरीब परिवारों को पक्के मकान मिले। मुफ्त राशन योजना ने महामारी के बाद राहत दी। आयुष्मान भारत से गरीबों का इलाज संभव हुआ। सड़क और बिजली परियोजनाओं से गांव-गांव कनेक्टिविटी बढ़ी। यही कारण है कि मतदाताओं के बीच यह चर्चा आम है कि चुनावी शोर-शराबे की बजाय उन्हें ऐसी सरकार चाहिए जो काम करे और स्थिरता दे।
चुनावी समीकरण पर असर?
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। विपक्षी महागठबंधन इस यात्रा के ज़रिए सरकार विरोधी माहौल बनाना चाहता है, लेकिन क्या जनता सिर्फ नारों पर भरोसा करेगी? अभी तक के हालात बताते हैं कि मतदाता ठोस योजनाओं और विकास के आधार पर ही निर्णय लेने के मूड में हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी का “हाइड्रोजन बम” बयान सुर्खियों में भले आ गया हो, लेकिन यह वोटरों की प्राथमिकताओं में ऊपर नहीं है। जनता चाहती है कि उन्हें रोजगार के अवसर, बुनियादी सुविधाएं और स्थिर शासन मिले।
कुल मिलाकर, पटना में राहुल गांधी की रैली ने विपक्ष को एक मंच पर तो जरूर दिखाया, लेकिन जनता के बीच सवाल यही गूंज रहा है कि “बम-धमाके वाले भाषण से हमारे जीवन में क्या बदलेगा?” बिहार की राजनीति का असली इम्तिहान अब उसी जनता के हाथ में है, जो विकास और स्थिरता को सबसे ऊपर रखती है।