उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले के रूद्रपुर में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर हुई घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। मुस्लिम युवकों ने धार्मिक जोश में ऊंचे मोबाइल टावर पर चढ़कर हरे इस्लामिक झंडे फहरा दिए। मोबाइल टावरों पर चढ़ना सुरक्षा नियमों के खिलाफ है, फिर भी प्रशासन ने इस पर रोक नहीं लगाई। यह घटना केवल स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
मोबाइल टावर – राष्ट्र की संचार रीढ़, खेल नहीं
मोबाइल टावर केवल नेटवर्क देने के लिए नहीं हैं, यह हमारे देश की संचार व्यवस्था की रीढ़ हैं। आपातकाल, प्राकृतिक आपदा या युद्ध की स्थिति में इन्हीं मोबाइल टावर से सूचना का आदान-प्रदान होता है। इन पर चढ़कर झंडे फहराना न केवल नियम तोड़ना है बल्कि इससे किसी भी तकनीकी गड़बड़ी या तोड़फोड़ का खतरा बढ़ सकता है।
भारत की अस्मिता और धर्मनिरपेक्षता पर आघात
भारत में हर धर्म को उत्सव मनाने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार कानून और व्यवस्था की सीमाओं में ही सुरक्षित है। संवेदनशील प्रतिष्ठानों पर किसी भी धार्मिक पहचान का झंडा फहराना एक तरह से सरकारी नियमों को चुनौती देना है। इससे यह संदेश जाता है कि स्थानीय प्रशासन की पकड़ कमजोर है और कानून का पालन वैकल्पिक है।
सुरक्षा पर मंडराता खतरा
मोबाइल टावर पर लगे हाई-टेक उपकरण हैकिंग और तकनीकी तोड़फोड़ से सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। अगर यह प्रवृत्ति बढ़ी तो शरारती तत्व या असामाजिक ताकतें इसका दुरुपयोग कर सकती हैं, जिससे देश की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
प्रशासन और समाज की जिम्मेदारी
सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए?
प्रशासनिक जवाबदेही: जिलाधिकारी और पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए थी।
समुदाय की भूमिका: मौलवियों और बुद्धिजीवियों को भी अपने समुदाय को समझाना चाहिए कि धार्मिक उत्साह को कानून के दायरे में रखते हुए ही मनाया जाए।
आगे का रास्ता: कानून और राष्ट्रहित पहले
सुरक्षा प्रोटोकॉल सख्त हों – मोबाइल टावर और संवेदनशील जगहों की निगरानी बढ़े।
सख्त कानूनी कार्रवाई – नियम तोड़ने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई हो ताकि यह उदाहरण बने।
सामाजिक संवाद और जागरूकता – समाज में समझ पैदा हो कि सुरक्षा और राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं।
भारत की अस्मिता से कोई समझौता नहीं
भारत की शक्ति उसकी विविधता में है, लेकिन उसकी अस्मिता कानून के शासन और सुरक्षा व्यवस्था से परिभाषित होती है। रूद्रपुर की घटना केवल एक स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतावनी है। अगर समय रहते इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह प्रवृत्ति अन्य राज्यों में भी फैल सकती है। धार्मिक उत्साह का सम्मान है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से बड़ा कोई उत्सव नहीं हो सकता।