काठमांडू की गलियों में अक्सर यह वाक्य सुनाई देता है-“भारत हर जगह घुस आता है।” यह कोई मज़ाक भर नहीं है, बल्कि दशकों से गढ़ा गया वह नैरेटिव है जिसे पश्चिमी मीडिया, विदेशी एनजीओ और कुछ वामपंथी ताकतें मिलकर नेपाल में बोती रही हैं। भारत और नेपाल का रिश्ता हमेशा आत्मीय रहा है। धार्मिक परंपरा, संस्कृति और इतिहास दोनों को एक डोर में बाँधते रहे हैं। पशुपतिनाथ के दर्शन के बिना कोई भारतीय यात्रा अधूरी नहीं मानता, और मिथिला संस्कृति से लेकर गोरखा शौर्य तक सब भारतीय पहचान का हिस्सा हैं। मगर इस आत्मीय रिश्ते को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतों ने लंबे समय से साज़िश की है।
संविधान आंदोलन और मधेश की पीड़ा
2015 में जब नेपाल ने नया संविधान लागू किया, तो मधेशी समुदाय ने खुलकर विरोध किया। मधेशियों की माँग थी कि उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व और अधिकार दिए जाएँ। भारत ने इस पर चिंता जताई और कहा कि संविधान सबको साथ लेकर चले। लेकिन इस वाजिब चिंता को विदेशी मीडिया और नेपाल की वामपंथी सरकार ने भारत के “हस्तक्षेप” के रूप में दिखाया।
सीमा पर आंदोलन करते मधेशी खुद ही ट्रक और पेट्रोल पंप रोक रहे थे, मगर द गार्जियन और बीबीसी ने हेडलाइन बनाई—“India blocks supplies to Nepal.” यही से “भारत नाकेबंदी” का झूठ फैलाया गया। हकीकत यह थी कि भारत ने नेपाल को संविधान में समावेशिता के लिए आगाह किया था, लेकिन इसे आक्रामकता बताकर भारत विरोधी नैरेटिव खड़ा कर दिया गया।
ओली सरकार और विवादित नक्शा
2020 में केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट सरकार ने नेपाल की संसद में एक नया नक्शा पारित किया, जिसमें भारतीय भूभाग-लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा-को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया।
सवाल यह है कि यह कदम क्यों उठाया गया? दरअसल, इसी समय भारत ने चीन के खिलाफ लद्दाख में सड़कें और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना शुरू किया था। चीन को इसका संदेश देना था कि नेपाल भारत के खिलाफ खड़ा है। ओली सरकार ने वही किया जो बीजिंग चाहता था। यहां भी पश्चिमी मीडिया और विदेशी थिंक टैंक चुप रहे। उन्होंने यह नहीं पूछा कि नेपाल को अचानक यह नक्शा बदलने की ज़रूरत क्यों पड़ी? बल्कि उन्होंने इसे “नेपाल की संप्रभुता” और “भारत से मुक्ति” का कदम बताकर उछाला। यह साफ़ दिखाता है कि नैरेटिव गढ़ने वाली ताकतें केवल भारत को बदनाम करने में लगी हैं।
चीन का पैसा, नेपाल की राजनीति
नेपाल में चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के नाम पर अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट्स का वादा किया। काठमांडू-पोखरा रेलवे लाइन, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स और सड़कें-सबका ऐलान हुआ। लेकिन इन प्रोजेक्ट्स में से आधे भी ज़मीन पर नहीं उतर पाए।
इसके बावजूद नेपाल के वामपंथी नेताओं ने भारत पर “विकास में अड़ंगा” डालने का आरोप लगाया। दरअसल, चीन का पैसा केवल प्रोजेक्ट्स तक नहीं था। काठमांडू विश्वविद्यालय के रिसर्च प्रोग्राम्स, मीडिया हाउसों को विज्ञापन, और नेताओं के विदेश दौरों तक में बीजिंग ने फंडिंग की। यह सारा खेल भारत की छवि धूमिल करने और नेपाली राजनीति को चीन की ओर झुकाने के लिए था। 2019 में नेपाल के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने साफ कहा था—“BRI से नेपाल को नया युग मिलेगा।” लेकिन 2023 आते-आते यही मंत्री यह मानने को मजबूर हुए कि चीन ने केवल कर्ज का बोझ डाला है।
पश्चिमी मीडिया और विदेशी एनजीओ की भूमिका
पश्चिमी मीडिया लगातार नेपाल को यह सिखाता रहा कि भारत उसकी आज़ादी में बाधा है। “India meddling in Nepal politics”, “Nepal resists Indian hegemony” जैसी हेडलाइनें बनाई गईं। विदेशी एनजीओ भी इसी एजेंडे पर चलते रहे। एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने नेपाल पर रिपोर्टें छापीं, जिनमें तराई आंदोलन में हुई हिंसा के लिए भारत को जिम्मेदार बताया गया।
अमेरिकी और यूरोपीय फंडिंग वाले एनजीओ, खासकर “लोकतंत्र” और “मानवाधिकार” के नाम पर, नेपाल में युवाओं को यह समझाने लगे कि भारत का सांस्कृतिक जुड़ाव असल में “राजनीतिक दबाव” है। जबकि असलियत यह है कि भारत ने हमेशा नेपाल की संप्रभुता का सम्मान किया।
भारत के लिए नेपाल का रणनीतिक महत्व
नेपाल केवल पड़ोसी देश नहीं है, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक धरोहर दोनों के लिए बेहद अहम है।
हिमालय और हिंद महासागर का गलियारा
भारत की भौगोलिक सुरक्षा हिमालय से शुरू होती है। नेपाल का भूभाग भारत और चीन के बीच बफर ज़ोन की तरह है। अगर नेपाल भारत के खिलाफ इस्तेमाल हो जाए, तो हिमालय की दीवार कमजोर पड़ सकती है। यही कारण है कि भारत चाहता है कि नेपाल स्थिर और भारत-हितैषी रहे।
चीन की रोकथाम
नेपाल चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का अहम हिस्सा है। अगर चीन यहाँ पूरी तरह जम जाए, तो भारत की उत्तरी सीमा पर रणनीतिक दबाव और बढ़ जाएगा। नेपाल की अस्थिर राजनीति का सबसे बड़ा लाभ बीजिंग को मिलता है। इसलिए भारत को यहाँ स्थिरता और दोस्ताना माहौल बनाए रखना अनिवार्य है।
हिंदू राष्ट्र की सांस्कृतिक भूमिका
नेपाल कभी दुनिया का इकलौता हिंदू राष्ट्र था। वहाँ की पहचान राम, सीता और पशुपतिनाथ से जुड़ी है। आरएसएस और भाजपा का राष्ट्रवाद इस सांस्कृतिक धरोहर को भारत और नेपाल की साझा आत्मा मानता है। यही वजह है कि विदेशी ताकतें इसे कमजोर करना चाहती हैं। अगर नेपाल हिंदू पहचान से दूर होता है, तो भारत की सांस्कृतिक धारा भी चोटिल होती है।
आरएसएस और भाजपा का दृष्टिकोण
भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की विचारधारा हमेशा मानती रही है कि नेपाल केवल पड़ोसी देश नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर है। संघ ने नेपाल में कभी शाखाएँ नहीं चलाईं, मगर उसकी दृष्टि साफ रही—भारत-नेपाल का रिश्ता रक्त और संस्कृति का है।
भाजपा सरकार ने भी यही दिखाया। 2015 के भूकंप में भारत ने सबसे पहले राहत पहुँचाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था—“नेपाल के दुख और संकट में भारत का हर नागरिक साथी है।” लेकिन विदेशी मीडिया ने इसे भी दबाव की राजनीति बताई। यह वही दृष्टिकोण है, जो भारत के राष्ट्रवादी पक्ष को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया।
नेपाल की जनता और भारतीय रिश्ता
नेपाल की आम जनता भारत से दूरी नहीं चाहती। वे आज भी बनारस में पढ़ाई करने आते हैं, मुंबई और दिल्ली में नौकरी करते हैं, और अपने परिवारों को भारत से जोड़े रखते हैं। दशैँ और तीज जैसे पर्व भारत और नेपाल दोनों में समान भाव से मनाए जाते हैं।
लेकिन जब विदेशी एजेंसियां नेपाल की राजनीति में घुसपैठ करती हैं, तब यह रिश्तों पर संदेह का धुआं फैलाया जाता है। यह वही रणनीति है जो पाकिस्तान में अपनाई गई—भारत को दुश्मन बनाओ और समाज को बांटो। फर्क सिर्फ इतना है कि नेपाल की ज़मीन पर इसे “विदेशी मदद” और “लोकतांत्रिक सुधार” के नाम पर बेचा जा रहा है।
विदेशी ताकतों की साजिश
नेपाल का भारत विरोधी नैरेटिव असल में नेपाल का नहीं, बल्कि विदेशी ताक़तों का रचा हुआ है। ओली सरकार का विवादित नक्शा, 2015 की कथित नाकेबंदी, और चीन के प्रोजेक्ट्स की झूठी चमक—सब यह दिखाते हैं कि कैसे नेपाल को भारत से दूर करने की कोशिश की गई।भारत के लिए नेपाल सिर्फ पड़ोसी नहीं, बल्कि हिमालय की सुरक्षा, हिंद महासागर की रणनीति और हिंदू संस्कृति की धरोहर है। यही वजह है कि आरएसएस और भाजपा का राष्ट्रवाद नेपाल को परिवार का हिस्सा मानता है।
भारत और नेपाल का रिश्ता हिमालय जितना पुराना और गहरा है। इसे न तो बीजिंग की चाल तोड़ सकती है, न ही वाशिंगटन पोस्ट की कोई रिपोर्ट। जरूरत केवल इस बात की है कि नेपाल की जनता साज़िशों को पहचाने और भारत को दुश्मन नहीं, परिवार माने। यही भारत की आत्मा है, और यही विदेशी ताकतों के लिए सबसे बड़ा खतरा।