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केजरीवाल: राजनीति के आइटम गर्ल/ब्वाय

Rohit Kumar द्वारा Rohit Kumar
24 June 2016
in मत
केजरीवाल
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बालकाल की तीन प्रमुख प्रवृतियाँ होती हैं। बवाली प्रवृति, सवाली प्रवृति और कव्वाली प्रवृति । बचपन में हरेक बालक में इन तीनो में से एक न एक प्रवृतियाँ अवश्यमभावी रूप से पायी जाती हैं। अरविन्द केजरीवाल के अल्प राजनितिक कैरियर पर एक सरसरी निगाह डालने से यह साफ़ झलक जाता है कि बचपन में केजरीवाल में ये तीनो प्रवृतियाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रही होंगी, विशेषकर ‘बवाली और कव्वाली’ । बवाली प्रवृति के इस कव्वाली नेता ने अपने सवाली प्रवृति का एक और नायाब नमूना पेश करते हुए कुछ दिन पहले दिल्ली के उपराज्यपाल को लिखे अपने एक पत्र में यह कहकर एक नए बवाल को जन्म दे दिया कि पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के वर्तमान सांसद महेश गिरी का हत्या के एक मामले में संलिप्त होने की आशंका है ।

महेश गिरी ने केजरीवाल के इस दोषारोपण के जवाब में उन्हें दिल्ली के कॉन्स्टीच्युशनल क्लब में खुली बहस की चुनौती दे डाली और कहा की वह उन पर लगाए गए आरोपों को या तो साबित करें अथवा इस्तीफा दें । बात-बात पर किसी को भी खुली बहस की चुनौती देने वाले भारतीय आध्यात्मिक राजनीति के इस शंकराचार्य ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बवाल क्रिएट कर, महेश गिरी का चरित्र हलाल कर, चुपके से एक कोना पकड़ लिया। आजतक केजरीवाल ने जिन-जिन को खुली बहस की चुनौती दी है उनमे किरण बेदी और शीला दीक्षित के नाम प्रमुख हैं। जब महेश गिरी ने उन्हें चुनौती दी तब कोने में सटक लिए । ठीक इसी प्रकार दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर भीमसेन बस्सी ने उन्हें जब खुले मंच पर बहस के लिए आमंत्रित किया था तब भी वह चुपके से सटक लिए थे। प्रशांत भूषण ने भी दिल्ली जनलोकपाल विधेयक पारित होने के पश्चात उन्हें इस पर खुली बहस की चुनौती दी थी जिससे भी केजरीवाल ने भीरुतापुर्वक मुंह मोड़ लिया था। यह सारा वृतांत उनके ‘ट्वीट एंड रन’ (पहले ‘हीट एंड रन’) प्रक्रिया में असीम श्रद्धा का परिचायक है ।

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महेश गिरी इंतज़ार करते रहे परन्तु केजरीवाल नियत समय एवं स्थान पर खुली बहस के लिए नही पहुचे । महेश गिरी ने केजरीवाल को इस बहस के लिए पत्र लिखने के अलावा दिल्ली के चौक-चौराहे पर पोस्टर लगा-लगा कर केजरीवाल को बहस की चुनौती दी। आखिर केजरीवाल इतने बेवकूफ भी नही हैं की खुली बहस करके राजनितिक सूली पर लटक जायें ।अंततः महेश गिरी को ही केजरीवाल के आवास पर जाना पड़ा, फिर भी केजरीवाल टस से मस न हुए। हालांकि वह ट्विटर पर बैठकर सारी स्थिति का जायजा अवश्य ले रहे थे। महेश गिरी उनके आवास के बाहर धरने पर बैठ गए और अनशन प्रारंभ कर दिया। फिर भी केजरीवाल दुम दबाये घर के अन्दर दुबके रहे। नतीजतन ऐसा हुआ की ट्विटर पर दो दिनों तक ‘बाहर आओ केजरीवाल’ , हैशटैग ट्रेंड करता रहा । गिरी के अनशन में समर्थन देने बीजेपी के बड़े-बड़े नेता केजरीवाल के आवास के बाहर अनशन स्थल पर पहुंचे जिनमे सुब्रमण्यम स्वामी जैसे दिग्गज भी शामिल थे । अंततः गृह मंत्री राजनाथ सिंह मौके पर पहुँच, महेश गिरी को जूस पिलाकर उनका अनशन तुड़वाया ।

इस पूरे घटनाक्रम में महेश गिरी ने केजरीवाल को उन्ही की भाषा में करारा जवाब दिया। मेरा मानना है क़ि खुली बहस की चुनौती देने की केजरीवाल के संस्कारी राजनितिक प्रवृति को एक गहरा आघात लगा है। परन्तु केजरीवाल के इस युद्ध-कला के कौशल को मुझे स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नही है क़ि 49 दिन की सरकार चलाने के अनुभव ने उन्हें ‘रणछोड़  प्रवृति’ का पारंगत बना दिया है।

हालाँकि उपरोक्त प्रथम दृश्य से ही इस पूर्ण घटनाक्रम का पटाक्षेप नही हो जाता है । अभी तो दुसरे दृश्य में ‘अरविन्द आगमन’ बाकी ही है । दो दिन तक ‘बाहर आओ केजरीवाल’ ट्रेंड करते रहने के बावजूद घर में दुबके रहने वाले केजरीवाल एकाएक सीधे प्रेस कांफ्रेंस में अवतरीत हुए और आते ही आते नरेन्द्र मोदी पर मायावती की तरह पुर्जी पढ़-पढ़ कर आरोप लगाना प्रारंभ कर दिया। केजरीवाल ने कहा कि नरेन्द्र मोदी के इशारे पर ही उनके खिलाफ वाटर टैंकर स्कैम में एफआईआर दर्ज की गयी है। अब ये तो केजरीवाल ही बता सकते हैं की वह नरेन्द्र मोदी के इशारों को अपने तृतीय नेत्र से कैसे देखते और समझते हैं परन्तु उनकी अगली बात बहुत ही मार्मिक लगी। वही ! स्वयं की निर्भीकता वाली । उन्होंने कहा, ‘मोदी जी कुछ भी कर लें केजरीवाल आपसे नही डरता’।

अब दो दिन तक ‘बाहर आओ केजरीवाल’ ट्रेंड करते रहने के बावजूद जो इंसान घर में दुम दबा के पड़ा हुआ हो और एकाएक बाहर निकलकर स्वयं को निर्भीक एवं निडर घोषित करने लग जाए तो उसकी निडरता एवं निर्भीकता के जरुर कुछ गहरे अर्थ एवं मायने होंगे। मैं मांग करता हूँ क़ि केजरीवाल के अदम्य साहस एवं निर्भीकता पर शोध हो और केंद्र सरकार बाकायदा एक ‘केजरीवाल निर्भीकता अनुसन्धान केंद्र खोले’।

केजरीवाल ने आगे कहा की वह राहुल गाँधी नही हैं जो मोदी जी से डर जायेंगे। अब इसका जवाब तो राहुल गाँधी को ही अपने नित्य अज्ञातवास से वापस आने के पश्चात देना होगा जो बराबर अपनी सफ़ेद कुरता को कलाई से मोड़ते हुए बांह तक पर ले जाकर कृत्रिम आक्रामकता में यह कहते नज़र आते हैं कि, “मोदी जी आप मेरे पीछे अपने कितने भी चमचे छोड़ लो, मैं आपसे डरनेवाला नही”। इस बात का फैसला केजरीवाल और राहुल गाँधी आपस में कर लें तो ज्यादा अच्छा होगा की कौन मोदी जी से डरता है और कौन नही । खैर, राहुल गाँधी के बारे में तो मैं अभी कुछ नही कहूँगा पर केजरीवाल की निडरता और निर्भीकता का तो मैं भी कायल हूँ। मैं भी मानता हूँ क़ि केजरीवाल पूर्णतः निडर हैं और वह किसीसे नहीं डरते। अरे ! जो स्वयं के बच्चों के जिंदगी की झूठी कसम खाने से नही डरा वह नरेन्द्र मोदी से भला क्या ख़ाक डरेगा ? इसलिए केजरीवाल की निर्भीकता किसी भी संशय से परे है।

केजरीवाल ने हिंदी व्याकरण में समास बहुत ढंग से पढ़ा होगा क्योंकि एक वाक्य के आरोप में अनेक व्यक्तियों को घसीटने की कला उनमे अद्भुत है। एक ही वाक्य में और एक ही सांस नें उन्होंने नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी और रोबर्ट वाड्रा सबको लपेट किया। हालाँकि शिला दिक्षित का अब उनके आरोपों में यदा-कदा ही जिक्र होता है, विशेषकर अब तो वाटर टैंकर स्कैम वाले एफआईआर में वह केजरीवाल की सहआरोपी बन चुकी हैं। अब शायद दोनों लोग साथ मिलकर केंद्र सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ संघर्ष करेंगे। हाँ तो बात हो रही थी केजरीवाल के घसीटन और लपेटन प्रवृति की।

उन्होंने अपने आरोप में रोबर्ट वाड्रा को भी लपेटते हुए कहा की ‘मोदी जी मैं रोबर्ट वाड्रा नही हूँ जिससे आप समझौता कर लोगे’ । अब इस बात पर तो मैं भी सहमत हूँ। इसके लिए मैं केजरीवाल की मर्दानगी की दाद देता हूँ। केजरीवाल किसी मर्द से समझौता नही करते बल्कि करते हैं तो सिर्फ औरतों से और वह भी अपने समकक्ष से। शीला दिक्षित के खिलाफ 370 पेज का सबुत अभी भी ‘केजरीवाल बैंक ऑफ़ आनेस्टी’ के लॉकर में बंद है। हाँ, मात्र एक बार केजरीवाल ने एक मर्द से भी समझौता करने की कोशिश की थी मगर कामयाब न हो पाए तो मात्र औरतों से समझौता वाली सिद्धांत को ही आत्मसात कर लिया। वह मर्द थे राहुल गाँधी।

प्रशांत भूषण ने आम आदमी पार्टी से निष्कासन के तुरंत बाद केजरीवाल को लिखे अपने खुले पत्र में यह दावा किया था केजरीवाल अपने 49 दिनों की सरकार से भाग जाने के बाद दुबारा सरकार बनाने के लिए किसी भी हद तक निचे गिरने को तैयार थे।

प्रशांत भूषण के अनुसार इसके लिए केजरीवाल ने प्रसिद्ध सामजिक कार्यकर्ता निखिल डे से यह अनुनय-विनय किया था क़ि वह राहुल गाँधी से कहकर आम आदमी पार्टी को समर्थन दिलवा दें। परन्तु निखिल डे ने ऐसा करने से तुरंत साफ़ मना कर दिया था। यह है केजरीवाल के समझौते का एक संक्षिप्त इतिहास। आज यदि सौभाग्यवश शेक्सपियर जीवित होते तो केजरीवाल की नाटकीयता का कायल हो चुके होते। उनके हरेक नाटक का मुख्य पात्र केजरीवाल ही होता। मुझेे गहरा अफ़सोस है भारतीय कला जगत के दुर्भाग्य पर की एक ही अभिनेता जो न जाने कितने ऑस्कर जीतकर ला सकता था भारत के लिए, आज भारतीय राजनीती का आइटम गर्ल बनकर किचरोधन मचाये हुए है ।

http://www.ndtv.com/india-news/eyes-set-on-kejriwal-subramanian-swamy-seeks-details-of-his-iit-admission-1422725

Tags: AAPArvind KejriwalMaheish GirriModiPrashant BhusanRahul GandhiRobert Vadraअरविन्द केजरीवालमहेश गिरी
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