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संविधान की आड़ में मानवाधिकार के पैरोकार कैसी कैसी दलीलें देते हैं

Shubham Upadhyay द्वारा Shubham Upadhyay
20 April 2017
in मत
संविधान कश्मीर
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देश में कुछ भी होता है लोग संविधान को उठाकर ले आते हैं। आज देश में हर मुद्दे पर सबसे पहले संविधान की दलील दी जा रही है। लाउडस्पीकर से लेकर वंदे मातरम और जन-गण-मन गाने और नहीं गाने के लिये भी संविधान से उठाकर तर्क दिये जा रहे हैं। लेकिन आखिर ये कैसा संविधान है जिसमें किसी एक मुद्दें पर स्वीकृति नहीं हो रही, हर मुद्दें पर घोर विरोधाभास है। भारत एक बहुलवादी राष्ट्र है, अनेकता में एकता इसकी पहचान है। भारत के संविधान निर्माताओं के अनुसार यह संविधान देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के प्रावधानों का आदर करने का कोई कारण अवश्य देता है, लेकिन आज के परिपेक्ष्य में यही नम्यता या यूँ कहे कि यही उदारवादी नीति देश में बनते ख़राब माहौल का एक कारण भी है। आज कश्मीर की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है उसका कारण भी संविधान का अत्यंत उदार होना ही है। कोई भी संविधान यदि अत्यंत कठोर हो या अत्यधिक ही नम्य या उदार हो तो वहाँ यह पर ऐसी ही परेशानियां शुरू हो जाती है।

संविधान को पूरी जनता नहीं बल्कि एक छोटा सा समूह ही नष्ट कर देता है क्योंकि वह अपनी शक्तियां बढ़ाना चाहता है। यह एक गहरी बात है जो किसी आम व्यक्ति के समझ से परे है। कश्मीर में भारत का वामपंथी समुदाय जो मानवाधिकार और समाज सेवक के रूप में आज कश्मीरियों को भड़का कर भारत के विरूद्ध कर रहा है वह इसी का हिस्सा है।

देशविरोधी तत्वों ने कश्मीर के जनता के दिमाग में यह बात डाली कि ‘उनके पहचान को दबाया जा रहा है’, और जब किसी के मन में खुद के पहचान के दबने की बात आती है तो वह ना संविधान का आदर करता है ना ही देश का।

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भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलत नीति के चलते जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगाया गया था। यह कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा देता है। आज यही ज़रूरत से ज्यादा उदारनीति कश्मीर में चिंता का सबब बनी हुई है। हाल ही में चुनाव से लौट रहे जवानों के साथ कश्मीर के ‘भटके’ हुए नौजवानों ने मारपीट की थी, तब पुरे देश का खून खौल उठा था, फिर भी कुछ ‘विशेष प्रजाति’ के लोग उन्हें भटका हुआ ही मान रहे थे। कश्मीर में जब भी बाढ़ आती है (जोकि लगभग प्रतिवर्ष आती है) तो सेना ही उनकी मदद करती है, सेना ही उनकी जान बचाती है तो फिर ऐसा क्यों ? सेना के प्रति ऐसी सोच, ऐसी नफ़रत क्यों ? इसका कारण हैं ज़रूरत से ज्यादा उदारता। संविधान की उदारता का गलत इस्तेमाल कर दिमाग में ज़हर घोलना।

देश के पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी सिर्फ अपने वैचारिक दलाली के लिये कश्मीर में बौद्धिक आतंकवाद के सहारे लोगो के दिमाग से खेल रहे हैं। 27 वर्ष पहले जब कश्मीरी पंडितों को मारकर, प्रताड़ित कर भगा दिया, अपने ही देश में रिफ्यूजी की ज़िन्दगी जीने को मजबूर कर दिया, आज उन्ही की धरती पर ये बुद्धिजीवी रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाने का विचार कर रहें हैं। सिर्फ और सिर्फ एक छोटे से समूह की शक्ति बढ़ाकर उसे अपने हित में इस्तेमाल करने के लिये।

भारत के दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान हमेशा भारत की अस्थिरता ही चाहते हैं। बहुत से ऐसे सबूत भी मिले हैं कि पाकिस्तान और चीन अप्रत्यक्ष रूप से कश्मीर में माहौल बिगाड़ने की क्रियाकलापों में लगे रहते हैं। अब यह अप्रत्यक्ष रूप क्या होता है ? जब संविधान और मानवाधिकार की बात अलगाववादियों के लिये हो और सेना के लिये ना हो, जब कुलभूषण पर बुद्धिजीवी चुप हो जाये और याकूब के लिये रात 2 बजे भी कोर्ट रूम खुलवाने वाले हो, जब भारत माता की जय बोलने पर अतिवादी ठहरा दिया जाये लेकिन भारत के टुकड़े चाहने वालो को हीरो कहा जाये, यही तो है अप्रत्यक्ष रूप से मदद। क्या आज के कश्मीर के हालात
भारत को अस्थिर नहीं करते ? जब उसपे संवैधानिक दलील के साथ अलगाववादियों और पत्थरबाजो का समर्थन किया जाये तो क्या हालात नहीं बिगड़ेंगे ?

पाकिस्तान खुद एक ‘बनाना रिपब्लिक’ है, चीन में एक गणतंत्रात्मक तानाशाही है, लेकिन भारत ऐसा नहीं है। भारत में संविधान है, एक उदार संविधान। और इसी संविधान की आड़ में आतंकियों के लिए भी भारत में बैठे मानवाधिकार के पैरोकार संवैधानिक दलीलें देते हैं।

ज़रूरत है संवैधानिक नियमों को कठोर करने की। उदारनीति आवश्यक है किन्तु देश उससे बढ़कर है। देश है तो ही संविधान का महत्त्व है, देश ही नहीं रहेगा तो संविधान को रखकर क्या करोगे ?

Tags: कश्मीरमानवाधिकारवामपंथसंविधान
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टिप्पणियाँ 1

  1. Pravin mishra says:
    8 years पहले

    Best editorial

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